भगवान शिव को ही रुद्र कहा जाता है। ग्रंथों में उल्लेख है कि रुद्र जब व्यथित होकर घोर तपस्या पर बैठे, तो उनके नेत्रों से पृथ्वी पर कुछ अश्रुकण गिरे, जिनसे एक फल की उत्पत्ति हुई। उनके अश्रुकणों से उत्पन्न होने के कारण ही इसे रुद्राक्ष की संज्ञा दी गई। दुलर्भ ग्रंथ ‘निघण्टु भूषण’ में बटादि वर्गः खंड में वर्णित श्लोक में रुद्राक्ष के नाम तथा गुण धर्म बताए गए है। रुद्राक्षं च षिवाक्षं च शर्वाक्षं भूतनाषनम्। पावनं नीलकंठाक्षं हराक्षं च षिवप्रियम।। अर्थात रुद्राक्ष, षिवाक्ष, शिर्वाक्ष, भूतनाषन, पावन (पवित्र), नीलकठाक्ष, हराक्ष, षिवप्रिय, आदि रुद्राक्ष के नाम हैं। रुद्राक्ष के आयुर्वेदिक तथा धार्मिक गुण-धर्म भी उक्त शास्त्र मे वर्णित हैं। इसके अनुसार रुद्राक्ष अम्ल, उष्ण, वातनाषक, रूप निवारक, सिर की पीड़ा को दूर करने वाला तथा भूतबाधा और ग्रहबाधा को हरने वाला है।
सामान्यतः पंचमुखी रुद्राक्ष सरलता से उपलब्ध होते है। सामान्य कार्यों की सिद्धि हेतु पंचमुखी रुद्राक्ष प्रयोग में लाना चाहिए। विषेष कार्यों की सिद्धि के लिए तज्जन्य रुद्राक्ष का प्रयोग करना चाहिए। ग्रंथों में अलग-अलग रुद्राक्ष के अलग-अलग मंत्रों, उनकी जप तथा प्रयोग विधियों, फलों आदि का विधान है। यहां इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
एक मुखी रुद्राक्ष के अधिष्ठाता भगवान शिव का मूल मंत्र - ¬ नमः षिवाय षिवाय नमः ¬ उक्त मंत्र के जप से कामनाओं की पूर्ति और सूर्य ग्रह की शांति तथा अनुकूलता की प्राप्ति होती है। दो मुखी रुद्राक्ष के अधिष्ठाता भगवान अद्र्वनारीष्वर का मूल मंत्र - ¬ ऐं गौरी वद्वद् गिरि परमेष्वरी सिद्ध्यर्थम् ऐें सर्वज्ञनाथ पार्वतिपतये सर्वलोक गुरो शिव शरणम त्वां प्रपन्नोस्मि पालय ज्ञानम प्रदापय।। उक्त मंत्र का जप विद्या एवं दिव्य ज्ञान की प्राप्ति तथा बुध ग्रह की शांति एवं अनुकूलता के लिए किया जाता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष (देवता अग्नि) का मूल मंत्र- ¬ नमो भगवते श्री षिवाय नम पुरतः ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल साधय साधय सर्वदुष्टेभ्यों हूं फट स्वाहा उक्त मंत्र के जप से कष्टों से रक्षा तथा कार्य सफल होते हंै। मंगल ग्रह की शांति एवं शुभ फल की प्राप्ति, कष्ट निवारण, शीघ्र विवाह, मुकदमे तथा अन्य क्षेत्रों में विजय आदि के लिए इस मंत्र का जप विषेष प्रभावशाली है। चार मुखी रुद्राक्ष (देवता ब्रह्मा) का मूल मंत्र- ¬ नमो सृष्टि रूपाय वागीष्वराय सवितानाथाय तुभ्यं प्रसीद प्रसीद प्रसीदार्थिनो मे।। गुरु ग्रह की शांति तथा अनुकूलता, यषोवृद्धि तथा संतान की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप किया जाता है।
पंचमुखी रुद्राक्ष के देवता कालग्नि रुद्र का मूल मंत्र- ¬ हूम् हूम् हूम् महाकाल प्रसीद प्रसीद हूम् हूम् हूम् फट स्वाहा ।। उक्त मंत्र का जप नवग्रह शांति तथा अष्ट सिद्धि-नव निधि, यष, विजय, आरोग्य, दिव्य शाक्ति, सुख-शांति ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति और ऋण, रोग, शत्रु जन्य संकट, बाधाओं आदि से मुक्ति हेतु किया जाता है। इस प्रकार इस दिव्य वनस्पति के कई रूप हंै। यह एक से चैदह मुखी तक का होता है। इनके उचित उपयोग से जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।