सार में सबसे अधिक गौरवशाली उपाधि मां की ही है। और भारतवर्ष में तो प्रत्येक स्त्री मां बनना अपना परम सौभाग्य समझती है। किंतु कई बार भाग्य साथ नहीं देता। कई मां-बाप ग्रहों की प्रतिकूलता के कारण संतान सुख से वंचित रह जाते हैं।
ग्रहों की प्रतिकूलता में एक महत्वपूर्ण योग है ‘पितृ दोष योग’। लग्न कुंडली में किन ग्रहों की स्थिति से पितृ दोष बनता है यह सामान्यतः सभी जानते हैं। किंतु अलग-अलग ग्रहों की स्थिति से निर्मित पितृदोष के उपाय भी पृथक -पृथक प्रणाली से किए जाने चाहिए। संतान प्राप्ति में बाधक पितृदोष कारक ग्रह का प्रभाव लग्न, पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर पड़ता है। पंचम भाव के साथ-साथ सप्तम भाव का विचार शुक्राणु एवं रज के लिए तथा भावत भावम सिद्धांत के अनुसार पंचम से पंचम नवम का अध्ययन आवश्यक है।
धर्म एवं भाग्य से ही संतान प्राप्ति होती है अतः नवम भाव का अध्ययन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। पितृदोष कारक ग्रहों की निम्न स्थितियों में पितृदोष होता है।
- राहु का नवम भाव से संबंध, दृष्टि एवं राशि या नवमेश से संबंध।
- बुध का नवम भाव से संबंध।
- सूर्य एवं शनि का दृष्टि-युति संबंध अथवा राशि से संबंध।
- चंद्र और बुध का राशि दृष्टि या युति संबंध - मेष, वृश्चिक, लग्न और लग्नस्थ मंगल।
- गुरु एवं राहु का दृष्टि युति संबंध या राशि संबंध। इनके अतिरिक्त भी कुछ और योग हंै जो पितृदोष के कारक होते हैं।
पितृदोष योग के सिद्धांतों पर गौर करंे तो ज्ञात होता है कि ऐसे ग्रहों की परिस्थतियों से पितृदोष बनता है जो ग्रह पिता-पुत्र हैं जैसे सूर्य एवं शनि चंद्र एवं बुध, लग्न एवं मंगल (उल्लेखनीय है कि लग्न को पृथ्वी माना जाता है और मंगल को पृथ्वी पुत्र) तथा पापी ग्रह राहु एवं केतु। सूर्य जब मकर या कुंभ राशि में हो, शनि से दृष्ट हो या शनि के साथ हो तो सूर्य जनित पितृदोष होता है।
बुध का नवम भाव से संबंध हो तो बुध जनित राहु का संबंध हो तो। राहु जनित पितृ दोष का अध्ययन करके उसके संतान प्राप्ति में बाधा कारक प्रभावों को जानना चाहिए। उदाहरण के लिए कुंडली-1 प्रतिष्ठित राजघराने की एक महारानी की है जो निःसंतान थी।
कुंडली-1 में बुध की पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर है। साथ ही पंचमेश बुध की राशि में द्वादश भाव में स्थित है। यदि पितृदोष की शांति विधिवत हो चुकी होती तो संतान सुख प्राप्त अवश्य होता। ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त महिला को तीन बार गर्भपात हुआ।
कुंडली-2 भी पितृदोष कारक ग्रहों की है। लग्नस्थ मेष राशि और नवम भाव पर बुध की दृष्टि से पितृदोष योग बनता है। सन् 1992 में विवाह के पश्चात् 1993 एवं 1995-1996 में तीन बार गर्भपात हुआ। पितृदोष की विधिवत शांति करवाने के पश्चात 1998 एवं 1999 म पुत्र-पुत्री सुख की प्राप्ति हुई। पितृदोष की शांति कैसे कराएं यदि सूर्य के कारण पितृदोष हो और संतान प्राप्ति में बाधक हो तो सूर्य के समान तेजस्वी भगवान कृष्ण का ध्यान-पूजन कर श्रीमद्भागवत् गीता का पाठ सूर्य संक्रांति से आरंभ करके अगली सूर्य संक्रांति तक करें। यदि संभव हो सके तो स्वयं करें।
असमर्थता की स्थिति में योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं और स्वयं श्रवण करें। फिर संतान गोपाल मंत्र का विधिवत अनुष्ठान करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यदि संतान प्राप्ति की बाधक पितृदोष स्थिति शनि से है तो महामृत्युंजय के सवा लाख जप करें या कराएं। यदि बुध या राहु बाधक है तो त्रयंबकेश्वर (नासिक-महाराष्ट्र) तीर्थ पर नारायण नागबली त्रिपिंडी श्राद्ध कराया जाना चाहिए। गुरु और राहु की शांति पुष्कर तीर्थ में और यदि मंगल या मंगल की राशि संतान प्राप्ति में बाधक हो तो पितृदोष शांति के पश्चात पुत्रेष्ठि यज्ञ अवश्य कराना चाहिए।
पितृदोष का कारण विवाह बाधा, अविवाहित होना या संतान सुख का अभाव भी हो सकता है । ऐसी ही कुंडली पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की है। उनके लग्न में उच्च के शनि की सप्तम भाव पर नीच की दृष्टि होने के कारण उन्होंने दाम्पत्य जीवन में प्रवेश नहीं किया। बुध की नवम भाव पर दृष्टि के कारण पितृदोष योग भी विद्यमान है जिसने विवाह एवं संतान सुख से वंचित रखा। ऐसी ही कुंडली पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर सदानंद सिंह की है। राहु के कारण पितृदोष बन रहा है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्राहम लिंकन भी पितृदोष से पीड़ित थे। विवाह एवं संतान सुख से वंचित रहे। मुगल बादशाह शहंशाह अकबर की कुंडली में बुध की दृष्टि के कारण पितृदोष था। जोधाबाई ने एवं स्वयं बादशाह ने मजहब की पद्धति अनुसार पैदल यात्रा कर संतान सुख प्राप्त किया था। पुष्कर तीर्थ में जोधाबाई के लिए पंडितों ने विशेष अनुष्ठान किए थे। अतः पितृदोष के कारक ग्रहों की स्थितिनुसार शांति कराना और संतान प्राप्ति के योग प्रबल बनाना आवश्यक है।