पीलिया
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पीलिया  

अविनाश सिंह
व्यूस : 6506 | अप्रैल 2016

पीलिया जैसे कि नाम मात्र से ही पीले रंग का संबंध मालूम होता है, शरीर का पीलापन इस रोग का मुख्य लक्षण है। पित्त पित्ताशय से निकलकर ग्रहणी में न पहुंच कर सीधे ही रक्त में मिल जाए, तो पित्त समस्त शरीर में फैल जाता है और पित्त में मौजूद बिलीरूबिन नामक रंजक पदार्थ सूक्ष्म रक्त वाहिनियों से निकलकर त्वचा, आंख और विभिन्न अंगों में फैलकर उन्हें पीला रंग प्रदान करता है, जिससे समस्त शरीर पीला लगने लगता है इसलिए इस रोग को ‘पीलिया’ कहते हैं। यकृत कोशिकाओं में पित्त का निर्माण होता है जो पित्ताशय में एकत्रित होता है। पित्त आहार के पाचन में सहायक होता है। जब आहार अमाशय से गुजरता हुआ ग्रहणी में प्रवेश करता है, तो उसी समय पित्त भी पित्ताशय से निकल कर ग्रहणी में पहुंच जाता है


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और आहार के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है किंतु जब रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ती जाती है, गुर्दे उसे छान कर रक्त को साफ करने में असमर्थ होते जाते हैं, जिससे मूत्र का रंग भी पीला होने लग जाता है।

पीलिया रोग के मुख्य भाग

- पित्त प्रणाली या यकृत कोशिकाओं का विकार ग्रस्त होना, यकृत की कोशिकाओं में क्षति या उसमें सूजन आ जाने के कारण जब यकृत बिलीरूबिन को पित्त में मिश्रित नहीं कर पाता है, तो यह बिलीरूबिन पदार्थ सीधे रक्त में मिलता है परिणामस्वरूप शरीर में पीलिया के लक्षण प्रकट होते चले जाते हैं।

यकृत कोशिकाओं की विकृति के भी दो कारण हंै: विषाणु: पीलिया कारक यह विषाणु दूषित खान-पान के द्वारा आंत स्थान में पहुंच जाता है और फिर वहां से रक्त संचरण द्वारा यकृत तक पहुंच जाता है जिससे यकृत कोशिकाएं विकृत हो जाती हैं और पित्त में बिलीरूबीन पदार्थ को मिश्रित नहीं होने देतीं और पीलिया हो जाता है। औषधि और विषाक्त पदार्थजन्य पीलिया: जब किसी विशेष रोग के कारण लगातार दीर्घ काल तक औषधियों का सेवन किया जाता है तो विपरीत प्रभाव से यकृत की कार्य क्षमता कम हो जाती है जिससे विषाक्त और हानिकारक व्यर्थ पदार्थ शरीर में ही एकत्रित होते चले जाते हैं। इन्हीं पदार्थों में बिलीरूबिन भी एक है,जिसके कारण पीलिया होता है।

-पित्ताशय एवं ग्रहणी के मध्य पित्त प्रणाली में अवरोध होने से पीलिया होता है। आहार में वसा (कोलेस्ट्राॅल) की मात्रा अधिक रहने अथवा बार-बार भारी भोजन करते रहने से शरीर में वसा का सही पाचन नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप रक्त में उसकी मात्रा बढ़ने लगती है तथा रक्त धमनियों की आंतरिक भित्तियों के ऊपर जमने लगती है जिससे उनमें अवरोध उत्पन्न होने लगता है। इस अवरोध के कारण पित्त ग्रहणी तक न पहुंच कर सीधे रक्त में मिलने लग जाता है और पीलिया होता है। रोग के लक्षण: रोगी का समस्त शरीर, चेहरा, आंखें, नाखून, होंठ आदि पीले हो जाते हैं तथा मूत्र भी गहरे पीले रंग का आने लगता है। रोगी की पाचन प्रक्रिया पूरी तरह बिगड़ जाती है एवं प्यास बढ़ जाती है। रोगी के मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है, भूख समाप्त हो जाती है। प्रायः कब्ज रहता है।

कभी-कभी दस्त भी आने लग जाते हैं। रोगी कमजोर, आलस्य, थकावट तथा बेचैनी महसूस करता है। ज्योतिषीय कारण: पीलिया रोग का संबंध यकृत से है। ज्योतिष में कुंडली के द्वादश भावों में यकृत का संबंध पंचम भाव से होता है। पंचम भाव का कारक ग्रह गुरु है। गुरु का अपना रंग भी पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में बिलीरूबिन जाता है तो शरीर के अंगों को पीला कर देता है। ऐसा पित्त के बिगड़ने से भी होता है। गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है। पीलिया रोग में बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर में फैलता है।

रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने में अपना स्थान रखते हैं। इस प्रकार पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों में जन्मकुंडली एवं गोचर में होते हैं तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है। जब तक गोचर और दशा अंतर्दशा अशुभ प्रभाव में रहते हैं तब तक जातक को रोग रहता है उसके उपरांत वह ठीक हो जाता है।

विभिन्न लग्नों में पीलिया रोग

मेष लग्न: बुध षष्ठ भाव में, सूर्य सप्तम भाव में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट, मंगल गुरु से युक्त या दृष्ट कुंडली में कहीं भी हो तो जातक को पीलिया रोग जीवन में जरूर होता है।

वृष लग्न: गुरु लग्न, पंचम या षष्ठ भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट, लग्नेश अस्त हो और मंगल से दृष्ट हो तो जातक को पीलिया या पीलिया जैसा खून की कमी का रोग होता है।

मिथुन: लग्नेश बुध अस्त होकर पंचम षष्ठ भाव में हो गुरु लग्न में मंगल से युत या दृष्ट हो, चंद्र राहु या केतु से दृष्ट होकर कहीं भी हो तो जातक को पीलिया संबंधी रोग होता है।

कर्क: लग्नेश चंद्र बुध से युक्त, राहु-केतु से दृष्ट होकर लग्न, पंचम या षष्ठ भाव में हो और गुरु सूर्य से अस्त होकर किसी भी भाव में हो तो जातक को पीलिया जैसा रोग होता है।

सिंह लग्न: सूर्य राहु केतु से दृष्ट दशम भाव में और गुरु राहु केतु से युक्त होकर षष्ठ भाव में हो और मंगल से दृष्ट हो तो जातक को पीलिया होता है।

कन्या लग्न: लग्नेश अस्त होकर षष्ठ भाव में हो, गुरु एवं लग्न दोनांे पीलिया के घरेलू उपचार

- मूली के पत्तों का रस चीनी में मिलाकर प्रातःकाल खाली पेट पीएं।

- मेंहदी की पत्तियां मिट्टी के बर्तन में पानी डालकर चैबीस घंटे तक भिगोकर रखें और प्रातःकाल खाली पेट पी लें। इससे पीलिया रोग दूर होता है।

- संतरे का रस, कच्चे नारियल का रस, फटे दूध का पानी, दही की छाछ में नमक और काली मिर्च डालकर पीना हितकारी है।

- लिव-52 की दो-दो गोली दिन में तीन बार लेने से आराम होता है।

- पुदीने का रस निकाल कर चीनी मिलाकर, सुबह दस दिन तक पीने से पीलिया में लाभ होता है।

- कच्चे पपीते के रस की बूंदों को बताशे में डालकर दो तीन सप्ताह खाने से पीलिया रोग से राहत मिलती है।

- लकड़ी के कोल्हू से या घर के जूसर से निकला हुआ गन्ने का रस पीने से पीलिया दूर होता है।

- बड़ी हरड़ और चीनी दोनों को बराबर मात्रा में ले कर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ एक चम्मच लेने से आराम होता है।

- आक के पत्ते और चीनी बराबर मात्रा में पीस, छोटी-छोटी गोलियां बनाकर, दिन में दो-दो गोली दिन में तीन बार पानी के साथ लेने से आराम होता है।


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मंगल से दृष्ट हो, चंद्र भी राहु-केतु एवं मंगल गुरु के किसी भी तरह के प्रभाव में हो तो जातक को खून की कमी या पीलिया जैसा रोग होता है।

तुला लग्न: गुरु पंचम या षष्ठ भाव में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र मंगल भी राहु-केतु के प्रभाव में कुंडली में कहीं भी हो, सूर्य शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को पीलिया हो सकता है।

वृश्चिक लग्न: बुध लग्न में राहु केतु से युक्त या दृष्ट, मंगल सूर्य से अस्त हो, गुरु वक्री होकर षष्ठ भाव में हो या षष्ठ भाव पर उसकी दृष्टि हो तो जातक को पीलिया होने की संभावना होती है।

धनु लग्न: सूर्य षष्ठ भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र लग्न में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को पीलिया हो सकता है।

मकर लग्न: लग्नेश शनि और षष्ठेश गुरु राहु-केतु के प्रभाव में पंचम, षष्ठ या लग्न में हो और चंद्र, मंगल सूर्य से अस्त या सूर्य के प्रभाव में हो तो जातक को पीलिया जैसा रोग हो सकता है।

कुंभ लग्न: लग्नेश शनि अस्त हो, मंगल और चंद्र राहु या केतु से युक्त, दृष्ट होकर षष्ठ भाव में हो और गुरु के भी प्रभाव में हो तो जातक को पीलिया हो सकता है।

मीन लग्न: षष्ठेश सूर्य राहु-केतु से युक्त या दृष्ट लग्न में हो, शुक्र शनि एक दूसरे पर दृष्टि रखते हुए षष्ठ भाव में, मंगल पंचम भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को पीलिया या खून की कमी रहती है।



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