विवाह गृहस्थ आश्रम अर्थात वंशवृक्ष की वाटिका में प्रवेश करने का प्रथम सोपान है। इस मधुर सौभाग्य की प्राप्ति हेतु हर युवा स्वप्न की कल्पनाओं में सर्वदा लीन रहता है। परंतु कल्पनाओं के इस क्रम में कुछ ऐसे सौभाग्यशाली हैं जिनकी ये आशाएं पूर्ण हो जाती हैं तो कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने संपूर्ण जीवन में इस सुख का सौभाग्य नहीं मिलता। यदि मिला भी तो उनके जीवन में वैवाहिक संबंध की यह प्रक्रिया अधिक दिनों तक यथावत नहीं रह पाती। इसके अतिरिक्त इस क्रम में कुरूप, कृपण, अपंग आदि जैसी त्रासदियों से पीड़ित ही नहीं अपितु अपराधी प्रवृत्तियों से जुड़े तत्वों के भी उदाहरण हैं
जिन्हें विवाह संस्कार के सौभाग्य से वंचित रहना तो बहुत दूर बल्कि उन्हें अनेक विवाहों अर्थात अनेक पति या अनेक पत्नियों के संयोग को भी प्राप्त करते हुए देखा गया है। यहां तक कि इस परिप्रेक्ष्य में सामाजिक व वैधानिक नियम भी टूटते देखे गए हैं। साधारणतया विवाह कार्य के पूर्ण होने में वर्तमान युग में प्रचलित धन, सौंदर्य, भौतिक सुख सुविधाओं, पद, प्रतिष्ठा आदि जैसे मापदंडों को ज्योतिषीय शास्त्र में बहुत अधिक प्रधानता नहीं दी गई है।
वास्तव में यदि ऐसे कथन पूर्ण वास्तविक होते तो इन सर्वगुणों से पूर्ण संपन्न होने वाला एक भी जातक जीवन में कभी कुंवारा नहीं रहता। अतः इन तथ्यों से जुड़े अनेक ऐसे प्रमाण विद्यमान हैं, जिन्हें समृद्धि व अति सर्वोच्च पदों के ऊपर आसीनता के बावजूद भी अपने सारे जीवन काल में विवाह संस्कार से वंचित रहना पड़ा। वस्तुतः इस शास्त्र में जन्मकुंडली में विराजमान ग्रहों की अवस्थाएं, भाव, योग व नक्षत्रों की भूमिकाएं सर्वप्रथम महत्वपूर्ण हैं।