विवाह संबंधी प्रश्न पर विचार करते समय सर्व प्रथम कुंडली में सातवें भाव, सप्तमेश, लग्नेश, शुक्र एवं गुरु की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये। विवाह के लिये सप्तम भाव है। सप्तमेश को देखना इसलिये आवश्यक है क्योंकि यही इस भाव का स्वामी होता है। शुक्र इस भाव का कारक है। स्त्री/पुरूष दोनों के लिये शुक्र वैवाहिक सुख के लिये संबंधित ग्रह है। स्त्रियों के लिए गुरु पति सुख देने वाला ग्रह है। लग्नेश का सप्तमेश एवं पंचमेश के साथ संबंध भी जरूर देखना चाहिये। लग्न-कुंडली, चंद्र कुंडली एवं नवांश कुंडली को आधार बनाया जा सकता है। सप्तम भाव में सौम्य राशि हो, वहां शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो।
सप्तमेश भी शुभ स्थान में बैठा हो। सप्तमेश के साथ या सप्तम भाव पर किसी पाप ग्रह की युति/दृष्टि न हो तो जीवन साथी, सुंदर सुशील, विद्वान, अच्छे स्वभाव का व भाग्यवान होता है। विवाह का समय सप्तम भाव के स्वभाव पर निर्भर करता है। यदि बुध सप्तमेश हो तो विवाह 18 से 20 वर्ष के बीच, यदि चंद्रमा सप्तमेश हो तो विवाह 22-23 वर्ष की आयु में, मंगल सप्तमेश हो तो 20-21 वर्ष की आयु में, शुक्र यदि सप्तमेश हो तो 20 से 22 वर्ष की आयु में, गुरु सप्तमेश हो तो 24 वर्ष की आयु में, सूर्य सप्तमेश हो तो 26 वर्ष में और शनि सप्तमेश हो तो 28 वर्ष की आयु में विवाह होगा। पंचम भाव में शुक्र और चतुर्थ में राहु हो तो 31वें या 33वें वर्ष में विवाह होगा।
लग्नेश से शुक्र जितना नजदीक हो उतनी जल्दी विवाह होता है। शुक्र की स्थिति जिस राशि में हो उस दशा में विवाह होता है। गोचर में गुरु 2/5/7/9/11 वें स्थान में होने पर विवाह का योग बनता है। सप्तमेश, पंचमेश व एकादशेश की दशा-अंतर्दशा में विवाह योग होता है। शुक्र और चंद्रमा इन दोनों में जो बली हो उसकी महादशा में विवाह होता है। यदि सप्तमेश शुक्र के साथ हो तो सप्तमेश की अंतर्दशा में विवाह होता है तथा नवमेश, दशमेश और सप्तम भावस्थ ग्रह की अंतर्दशा में विवाह होता है। द्वितीयेश और सप्तमेश 1, 4, 5, 7, 9 और 10वें में हो तो विवाह का योग होता है।