यह क्षेत्र मनुष्य की संपूर्ण बौद्धिक, दर्शन, नैतिक, यश, कीर्ति, अध्यात्म, योग, कला, उच्च ज्ञान, चिंतन, स्वभाव, भावुकता आदि विषयों के लिए मुख्य रूप से विचारणीय हैं। दुख, पीड़ा, चिंता व संपूर्ण नाड़ी मंडल के संचालन की क्रियाएं इसी भाग से नियंत्रित होती है। ललाट का ये भाग यदि पूर्ण आभायुक्त स्वरूपों में विकसित रहा तो ऐसे जातक दार्शनिक, व्याख्याकार, दयालु, उच्च विचारक, प्रेम, स्नेही, बंधुत्व व अच्छे आदर्शों जैसे गुणों के पूर्ण धनी होते हैं। किंतु अधिक उभरे बृहत, विस्तृत व चैड़े ललाट को पूर्ण सकारात्मक नहीं माना जाता। ऐसे जातक अतिवादी होते हैं। दुर्भाग्यवश यदि इन्हें सफलता प्राप्ति व विख्यात होने का पूर्ण अवसर न मिले तो ये बुरे, निरंकुश व कुख्यात कर्मों से भी संकोच नहीं करते। नासिका भाग: यह भौहों व होंठ के मध्य का क्षेत्र है जो व्यावहारिक विषयों के लिए मुख्य रूप से विचारणीय है। इस भाग के सुंदर, आकर्षक व सुव्यवस्थित रूप से विकसित होने पर ऐसे जातक व्यवहार-कुशल, खुश मिजाज, खान-पान के शौकीन, रोमांटिक स्वभाव से युक्त तथा अत्यधिक पैनी दृष्टि रखने वाले होते हैं। पूर्ण इच्छाशक्ति व दूसरों पर शासन करने वाले ऐसे व्यक्ति व्यापार, निर्माण, कृषि, कानून राजनीति वे सैनिक कार्यों में अधिक सफल होते हैं।
चैड़े, मोटे होंठ व अविकसित नासिका या भोंडी चपटी नाक अव्यावहारिक, महत्वाकांक्षी, जिद्दी, हीनता से ग्रस्त आदि जैसी प्रवृत्तियों का परिचायक माना गया है। जैविक भाग: यह होंठ व गर्दन के मध्य का भाग है जिसके माध्यम से जातक के भौतिक, काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह-माया आदि जैसे भाव स्पष्ट होते हैं। इस क्षेत्र को तम की संज्ञा से भी विभूषित किया जाता है। इस भाग का सुव्यवस्थित, सुंदर व आकर्षक होना सकारात्मकता व अच्छाई का प्रतीक समझा गया है। इस भाग के मोटे, चैड़े व अत्यधिक विकसित होने पर स्वभाव में क्रूरता, निर्भयता, निष्ठुरता व नृशंसकारी जैसी प्रवृत्तियों की सक्रियता बनी रहती है। बुद्धि व भाव के शिथिल होने के कारण इन्हें मानसिक कष्ट का पूर्ण एहसास नहीं होता। संकुचित व अविकसित जैविक भाग शारीरिक इच्छाशक्ति के अभाव का परिचायक माना गया है। ऐसे जातक अधिकांशतया शारीरिक सुखों से विमुख रहते हैं।
मुख आकृति: ज्यामितीय या आकृति के दृष्टिकोण से जातक का मुख-मंडल भिन्न-भिन्न रूपों अर्थात वर्गाकार, वृत्ताकार, शंक्वाकार व अंडाकार स्वरूपों में विभक्त है जिसके अनुसार या बनावट के आधार पर उनके गुण, स्वभाव व प्रकृति का अवलोकन किया जाता है। वर्गाकार मुख: चैकोर व वर्गाकार मुख के जातक अधिकांश रूप से साहसी, पराक्रमी, सुव्यवस्थित, अनुशासन प्रिय, अभिमानी, कार्यकुशल, अदूरदर्शी, सुडौल व स्वस्थ रहते हंै। किसी के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करने में इन्हें तनिक संकोच नहीं होता। इनकी प्रकृति पृथ्वी तत्व से युक्त रहती है। वृत्ताकार मुख: गोल, वृत्ताकार मुख वाले जातक जल तत्व से प्रभावित रहते हैं। सामान्यतया ये मांसल, पुट्ठे, थोड़े मोटे व आलसी होते हैं।
बाल सुंदर व आकर्षक गुणों से युक्त रहता है। नीतिगत बुद्धि का अभाव, स्वभाव में मधुरता, शर्मीलापन, कल्पनाशील, भावुक, शीघ्र क्रोध अथवा शीघ्र नरम, सहज हृदय, दयालु, छल-प्रपंचरहित, ललित व संगीत कला के प्रति रूचि आदि जैसी विशेषता इनके स्वभाव व गुणों में शामिल हैं। शंक्वाकार मुख: अग्नि तत्व से प्रभावित इस मुख के जातक जिज्ञासु, दूरदर्शी, नीतिगत कार्य करने वाले, उच्च बौद्धिक क्षमता संपन्न, ज्ञानी, तार्किक, स्पष्टवादी, क्रोधी, भावुकता का अभाव, हठी, नेतृत्व की लालसा, तीव्र स्मरण शक्ति, कूटनीतिज्ञ, कार्यों में धैर्य, कर्मठ व दार्शनिक गुण व प्रवृत्तियों से युक्त रहते हैं। ये अपने विचार व स्वाभिमान से समझौता नहीं करते हैं।
अंडाकार मुख: इनकी प्रकृति जल तत्व से प्रभावित है। प्रेमी, कामुक, सौंदर्यप्रिय, सम्मोहक, आकर्षक, व्यवहार कुशल, मृदुभाषी आदि व्यक्तित्व के ऐसे जातक के स्वभाव में चंचलता का समावेश रहता है। एक से अधिक संबंधों में ये अधिक विश्वास रखते हैं। यात्रा व भ्रमण में इनकी विशेष रूचि रहती है। ये अति महत्वाकांक्षी व उच्चाभिलाषी होते हैं। कला क्षेत्र में इन्हें विशेष सफलता प्राप्त होती है। उदासीन, स्वयं को दूर रखना, मिजाज में चिड़चिड़ापन व शीघ्र क्रोधित हो जाना इनका स्वाभाविक गुण है। मुख मंडल के प्रकार: ललाट, नासिका व ठोड़ी में किसी एक भाग के उभरे या धंसे होने अथवा तीनों के समतल होने के कारण मुख का स्वरूप मुख्यतया उत्तल, अवतल व समतल जैसे तीन प्रकार में विभक्त रहता है।
1. उत्तल मुख: इस प्रकार के मुख में ललाट, नासिका व ठोड़ी आगे की ओर वक्राकार होकर उभरी होती है जो उन्नत स्वरूप प्रतीत होता है। स्वभाव व प्रवृत्ति के होते। चिंतन व धैर्य के अभाव में ये शीघ्र ही क्रोधी व उत्तेजित हो जाते हैं। इनके विचारों में गंभीरता व शालीनता का अभाव रहता है। इन्हें दूसरों की भावनाओं की कोई एहसास नहीं होता। भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजनों व खान-पान के ये अधिक शौकीन होते हैं।
3. समतल मुख: इस प्रकार के मुख वाले जातक संतुलित स्वभाव तथा मानसिक, व्यावहारिक व जैविक तीनों ही क्षेत्रों में पर्याप्त सुदृढ़ व कुशल होते हैं। दृढ़ संकल्पी, सर्वत्र अनुसार ये कोमल, भावुक, सहज, मनोवैज्ञानिक, प्राकृतिक रहस्यों के ज्ञाता, संवेदनशील व सर्वदा विचारांे में खोये रहते हैं। सांसारिक व भौतिक संबंधी विषयों में इन्हें विशेष रूचि नहीं रहती। सामाजिक व व्यावहारिक बुद्धि का इनको अधिक ज्ञान नहीं होता।
2. अवतल मुख: इस प्रकार के जातक की ललाट व ठोड़ी बाहर की ओर उभरी व नासिका भीतर की ओर धंसी होती है जो दिखने में अवतल वक्राकर जैसा प्रतीत होता है। गुण-विशेषों के आधार पर इनका स्वभाव उन्नत प्रकार के मुख वाले जातक से पूर्ण विपरीत होता है। ये परिस्थितियों के प्रति गंभीर नहीं सामंजस्य, गुण-अवगुण पर विचार व सोच समझकर कदम बढ़ाने के फलस्वरूप इन्हें अपने जीवन कार्यों में काफी अधिक सफलता प्राप्त होती है। इनकी योजनाएं सर्वदा संगठनात्मक होती हैं। सृजनात्मकता, विश्वसनीयता, न्यायप्रियता, स्पष्टवक्ता आदि इनके विशेष गुण हैं। ये व्यवहार कुशल व महत्वाकांक्षी होते हैं।