शाम का समय था। समीर और संध्या बहुत ही अधीर होकर हाॅस्पीटल के बाहर चहल कदमी कर रहे थे। रह-रह कर उनकी निगाह घड़ी की ओर जा रही थी। आज दोपहर से ही उनका यही हाल था। दोनों को ही किसी का बेसब्री से इंतजार था और खाना-पीना भूलकर उसके सपनों में खोये हुए थे। तभी उन्हें सूचना मिली कि चांदनी को बिटिया हुई है तो दोनों खुशी से निहाल हो गये।
उन्होंने तुरंत उसे 500/- रुपये की बख्शीश दी और लपक कर चांदनी के रूम में पहुंच गये। संध्या ने बच्ची को दूर से देखा तो देखती ही रह गई। छोटी सी, प्यारी सी बच्ची फूल सी लग रही थी। उन्होंने चांदनी को बधाई दी और उसके खाने पीने का इंतजाम करने लगे। घर वापिस आकर सभी जगह बिटिया होने की खुशी में मिठाइयां बटवाईं और जल्द ही एक बड़े जश्न की तैयारी भी शुरू कर दी। जहां एक ओर संध्या नवजात शिशु के आगमन की तैयारी में जुटी थी वहीं समीर भगवान को धन्यवाद दे रहे थे कि आखिर इतने इंतजार के बाद भगवान उन पर मेहरबान हो गये हैं।
उनके विवाह को 12 वर्ष हो चले थे पर संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ था और डाॅक्टरों के अनुसार संध्या मां बन सकने में शारीरिक रूप से सक्षम नहीं थी। समीर ने अपने व्यवसाय में पैसे तो बहुत कमाए परंतु बच्चे का सुख न मिलने से बहुत निराश रहते थे। उन्होंने कई बार बच्चा गोद लेने की कोशिश की पर संध्या किसी अन्जान बच्चे को गोद लेने के पक्ष में नहीं थी कि तभी जैसे भगवान ने ही उनकी गोद भरने की तरकीब सूझा दी।
चांदनी और उसका पति विजय उनके घर काम करते थे। विजय उनका ड्राइवर था और चांदनी घर का काम संभालती थी। दोनों ही बहुत भले थे और घर का काम पूरी ईमानदारी से करते थे। संध्या ने जब उनसे अपने मन की बात कही तो वो अपनी संतान उन्हें देने के लिए तैयार हो गये। वे भी यही चाहते थे कि उनकी संतान को पूर्ण सुख प्राप्त हो और उसे वह सारी सुख सुविधाएं मिलें जिन्हें देने में वो सक्षम नहीं थे और फिर उन्हें यह पता था कि उनकी बेटी उनकी आंखों के सामने ही रहेगी तो उसे दो-दो मांओं का प्यार मिलेगा।
आज संध्या का इंतजार खत्म हो रहा था और उनकी राजकुमारी उनके घर आ रही थी। पूरे घर को फूलों से सजाया गया और सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाकर बच्ची का नामकरण सान्या किया गया। कुछ ही दिन में उन्होंने उसे कोर्ट के माध्यम से गोद लेने की रस्म भी पूरी कर ली। सान्या का लालन-पालन बहुत ही प्यार से किया जाने लगा। संध्या अपनी बच्ची का पूरा ख्याल रखती और उसके सभी काम स्वयं ही करती।
शुरू में चांदनी का काम और उसका बच्ची के प्रति प्यार और दुलार तो उसे अच्छा लगता था पर जैसे-जैसे सान्या बड़ी हो रही थी संध्या उसे चांदनी और विजय से दूर रखना चाहती थी। वह उसे कहीं भी ले जाने को मना कर देती थी और न ही ये चाहती थी कि वे उसे अपने रिश्तेदारों से मिलवाएं। उधर चांदनी का प्यार अपनी बेटी से बढ़ता ही जा रहा था। चाहे उसने उसे गोद दे दिया था पर थी तो वह उसकी संतान इसलिए वह बहुत दुखी रहने लगी। संध्या और समीर ने उसे दूर करने के लिए दूसरे शहर भेज दिया और उनके एकाउंट में काफी पैसा भी जमा करा दिया जहां उनका फार्म हाऊस था।
चांदनी और विजय मन मारकर वहां चले तो गये पर उनका प्यार अपनी बेटी के लिए कम नहीं हुआ। वे पंद्रह बीस दिन में यही कोशिश करते कि किसी तरह आकर सान्या से मिल लें। उनका यह प्यार संध्या को नहीं सुहाता था और उनसे दूर करने के लिए उसने अमेरिका शिफ्ट होने का मन बना लिया और शीघ्र ही अपना काम वहां पर जमाने के लिए अमेरिका चली गई। वहां पर काम करने के साथ-साथ उन्होंने सान्या की अमेरिकी नागरिकता के लिए भी आवेदन कर दिया। वहां जाकर संध्या की तवीयत खराब रहने लगी और उसको पता चला कि उसका किडनी खराब हो गया है और इतना अधिक खराब हो गया था कि उसे निकालना पड़ा।
बच्ची दस साल की हो चली है और अब जहां वह अपनी जन्मदातृ मां से दूर है वहीं दूसरी मां भी अपनी खराब तवीयत की वजह से उसकी देखभाल नहीं कर पा रही है क्योंकि अब संध्या की दूसरी किडनी भी लगभग खराब हो चुकी है और वह क्पंसलेपे पर रहती है। उसको यही चिंता रहती है कि अपनी बेटी की देखभाल किस तरह से करें और क्या वह उसके विवाह तक जीवित भी रह पाएगी या नहीं। डाॅक्टरों ने भी उसे अब जवाब दे दिया है और बचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। सान्या की किस्मत देखिये कि जहां बचपन में उसे दो मांओं का प्यार मिल रहा था वहां अब दोनों से ही वंचित हो रही थी।
आइये देखें सान्या की कुंडली के सितारे क्या कहते हैं?
सान्या का मीन लग्न और कन्या राशि है। लग्नेश गुरु और चंद्र की दृष्टि लग्न पर पड़ने से वह आकर्षक, सुंदर व सौम्य स्वभाव की है। सान्या का लग्नेश व दशमेश गुरु तथा पंचमेश चंद्रमा की केंद्र में युति होने से उसका निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद एक उच्चवर्गीय परिवार में सभी भौतिक सुख सुविधाओं के साथ लालन-पालन हो रहा है। जिन कुंडलियों में गजकेसरी योग वाला गुरु केंद्रस्थ होता है
तथा साथ ही गुरु व शुक्र इन दोनों ग्रहों की स्थिति शुभ होती है वे आर्थिक रूप से शीघ्र ही संपन्न हो जाते हैं क्योंकि गुरु धन व आय भाव का कारक है जबकि शुक्र लक्ष्मी कृपा व समस्त सांसारिक सुखों का कारक होता है। कुटुम्ब के द्वितीय भाव में कालसर्प योग बनाने वाले राहु स्थित हैं। राहु व कालसर्प योग के अलावा द्वितीय भाव पर शनि की दृष्टि भी है।
कुटुम्ब के भाव पर अलगाव कारक राहु व शनि का प्रभाव होने तथा द्वितीयेश के छठे भाव में स्थित होने व वहां पर राहु से दृष्ट होने के कारण सान्या जन्म लेते ही अपने कुटुम्ब से अलग हो गई और गोद लेने वाले माता-पिता के घर आ गई। चतुर्थ भाव का अधिपति बुध अशुभ भाव में स्थित है तथा माता का कारक चंद्रमा भी शून्य पक्ष बल वाला है क्योंकि सान्या का जन्म अमावस्या वाले दिन हुआ था। यह ग्रह योग उसका अपनी मां से अलगाव दर्शा रहा है और साथ ही दूसरी मां भी गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर मृत्यु शय्या पर है। सूर्य, राहु व शनि ये तीनों अलगाव कारक ग्रह माने जाते हैं।
जब इनमें से दो ग्रहों का प्रभाव किसी भाव पर आता है और वह भाव तथा भावेश तथा उसका कारक इन तीनों में से दो शुभ ग्रहों के प्रभाव से वंचित होते हैं तो ऐसी स्थिति में वह भाव आपके जिस संबंधी का संकेतक होता है उस संबंधी से जातक का अलगाव हो जाता है।
सान्या की कुंडली में ऐसा ग्रह योग कुटुंब भाव के अतिरिक्त मां के भाव पर हो रहा है। इसलिए उसे अपने कुटुंबी, माता व स्वजनों से अलग होना पड़ा। उसे जिस मां ने गोद लिया उसके सुख से भी वह वंचित होने के कगार पर है। आगे भविष्य में ऐसा हो सकता है कि गोद लेने वाले मां-बाप व उनके अन्य कुटुंबियों से भी उसे अलग होना पड़े।