चांद्र और सौरमास के समन्वय से उपजा अधिक मास भारतीय पंचांगों में वर्ष की गणना सौरमास से और माह की गणना चांद्रमास द्वारा होती है। चूंकि एक सौर वर्ष 365 दिन व चांद्रवर्ष 354 दिन का होता है, इस प्रकार चांद्रवर्ष की तुलना में सौर वर्ष 11 दिन अधिक बड़ा है, इस अंतर का समन्वय करने के लिए प्रत्येक ढाई वर्ष बाद एक चांद्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। यह बढ़ा हुआ चांद्रमास ही अधिक मास कहलाता है। प्रथम अमान्तमास ही अशुद्ध मास है- अधिक मास की गणना अमान्त मास आधारित पंचांगों में सटीक बैठती है। इन पंचांगो में जो संक्रांति विहीन प्रथम मास होता है, वही अधिक मास या अशुद्धमास कहलाता है
तथा इसके पश्चात जो द्वितीय मास होता है, वह शुद्धमास कहलाता है। अमान्त मास आधारित पंचांगों में चान्द्रमास का प्रारंभ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है, तथा इसकी समाप्ति कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होती है। दो अमावस्याओं के मध्य का समय (30 तिथि) अर्थात् एक अमावस्या से द्वितीय अमावस्या तक एक चान्द्रमास होता है। प्रत्येक चान्द्रमास में एक सूर्य संक्रांति होती है। दो अमावस्याओं के मध्य जब कोई सूर्य संक्रांति न हो तो ऐसा अमान्त मास अधिक मास या मलमास कहलाता है।
न्यूनतम 27 माह बाद आता है अधिक मास 30 तिथियों का एक चांद्रमास होता है एवं 360 तिथियों का एक चांद्र वर्ष होता है किंतु सौरमास की गणना से 371 तिथियों का एक सौर वर्ष होता है। इस प्रकार सौर वर्ष से चांद्र वर्ष 11 तिथि छोटा है। 11 तिथियों का यह अधिशेष बढ़ता-बढ़ता लगभग साढ़े 32 महीनों में एक चांद्रमास के बराबर हो जाता है। यह अधिक मास की मध्यमान (औसत) गणना है। स्पष्टमान से दो अधिकमासों में कम से कम 27 महीने एवं अधिक से अधिक 35 महीनों का अंतर होता है। मलमास में वर्जित कार्य अधिक मास अशुद्ध समय या मलमास होने के कारण इस महीने में विविध काम्य कर्म जैसे- गर्भाधान, विवाह, उपनयन आदि संस्कार, यज्ञ, देवप्रतिष्ठा, तुलादान, कूपखनन, तीर्थ यात्रा तथा विभिन्न प्रकार के रंगारंग महोत्सव नहीं करना चाहिये। जन्मोत्सव भी अधिक मास में वर्जित है।
वर्ष श्राद्ध अधिकमास में करें प्रत्येक वर्ष में माता-पिता की मरण-तिथि पर आप जिस प्रकार वार्षिक श्राद्ध करते आ रहे हैं, वैसा ही श्राद्ध अधिक मास में भी वह तिथि उपस्थित होने पर करना चाहिये। पूर्णिमान्त पद्धति को मानने वाले उत्तरभारतीयों के पितरों का वर्ष श्राद्ध यदि आषाढ़ कृष्ण पक्ष में पड़ता हो तो वे प्रथम आषाढ़ कृष्ण पक्ष की वह तिथि आने पर कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु पिछले वर्ष आषाढ़मास में हुई हो तो उनका प्रथम वार्षिक श्राद्ध अधिक आषाढ़मास में करना ही शास्त्र सम्मत है। मलमास हुआ पुरुषोत्तम नारद पुराण के अनुसार - प्राचीनकाल में सर्वप्रथम अधिकमास की उत्पत्ति हुई। उस मास को सूर्य संक्रांति न होने के कारण ‘मलमास’ कहा गया है
वह स्वामी रहित मलमास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कार्यों के लिये अग्राह्य माना गया। लोक निन्दा से वह अत्यंत दुखित हो गया। वह अधीर होकर भटकता हुआ भगवान विष्णु के लोक वैकुंठ में पहुंच गया। अश्रुपात करता हुआ भगवान विष्णु से बोला -‘‘कृपानिधान ! मेरा नाम मलमास है, संसार के लोगों ने मेरा तिरस्कार कर दिया है। अब मैं आपकी शरण में हूं। हे कृपा सिंधु! मेरा उद्धार करो। ऐसा कहकर मलमास भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़ा। मलमास को शरणागत हुआ देखकर भगवान विष्णु बोले - ‘‘वत्स ! तुम मेरे साथ गो लोक चलो, जो योगियों के लिये भी दुर्लभ है।
जहां पर सबके स्वामी भगवान पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण चिन्मय (दिव्य) रूप से विराजमान हैं। वहां पहुंचने पर ही तुम्हारा दुख दूर होगा।’’ मलमास को साथ लिये भगवान विष्णु ने गोलोक में पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण के निवास ज्योतिधाम को देखा। उस ज्योतिधाम के दिव्यतेज से भगवान विष्णु के नेत्र बंद हो गये। गोप-गोपिकाओं के समुदाय से घिरे श्रीकृष्ण को देखकर विष्णुजी ने उन्हें श्रद्धा से प्रणाम किया। भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया और बोले- ‘‘यह अधिकमास अर्कसंक्रमण से रहित हो जाने के कारण मलिन हो चुका है। शास्त्रविहित पुण्य कर्म के अयोग्य होने के कारण, स्वामी रहित इसकी सबने घोर निंदा की है। हे ह्रृषिकेश ! आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी इसके महान क्लेश का निवारण नहीं कर सकता। कृपया इसे संताप की पीड़ा से मुक्त कीजिये। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- विष्णो! अब मैं इसे अपने तुल्य करता हूं।
मुझमें जितने सदगुण हैं, उन सब को आज से मैंने मलमास को सौंप दिये हैं। मेरा नाम जो वेदशास्त्र और लोक में विख्यात है, आज से उसी ‘पुरूषोत्तम’ नाम से यह भूतल पर प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूं। जिस परमधाम गोलोक में पहुंचने के लिये योगी, मुनि कठोर तपस्या में रत रहते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजादि अनुष्ठान करने वाले को सुगमता से प्राप्त हो सकेगा। ‘‘जो कोई श्रद्धा-भक्ति से पुरूषोत्तम मास की पूजा करता है मरणोपरांत उसे गोलोक की प्राप्ति होती है और वहां पहुंचकर वह श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है। इस प्रकार अधिक मास बारह महीनों में सर्वोत्तम होने से पुरुषोत्तम मास बना था।
पुरुषोत्तममास में पुरुषोत्तम की पूजा- पुरुषोत्तम मास सर्वाधिक पवित्र और सर्वश्रेष्ठ होने से भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान, भजन, पूजन करना चाहिये। इस महीने में श्रीमद्भागवत गीता या पुराण का नित्य पाठ करना महान पुण्यदायक होता है। श्रीराधिकाजी सहित पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का ध्यान-स्मरण करते हुये इस मंत्र का जप करना चाहिये। गोवर्द्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्। गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।। (महर्षि कौण्डिन्य) पुरुषोत्तम मास की अमावस्या, पूर्णिमा तथा दोनों पुरुषोत्तमी एकादशियों को व्रत, पूजन एवं दान करने से मलिनता व दरिद्रता दूर होती है तथा मरणोपरांत गोलोक और पुरुषोत्तम भगवान श्री गोपाल कृष्ण की सायुज्यता प्राप्त होती है।