हम अप न े श् ा र ी र क े आवश्यकता स े अधिक बढ़ते भार को लेकर चिंतित रहते हैंए और यह स्वाभाविक भी है। किंतु यदि हम तन मन को संतुलित रखें तो अपने भार को भी संतुलित रख सकते हैं। हमारा शरीर शारीरिक तंत्र का एक चमत्कार है।
आयुर्वेद में कम आहार लेने की आवधारणा आदि काल से ही रही है और आज भी यह उतना ही अर्थपूर्ण है। आयुर्वेद के सिद्ध ांत के अनुसार दोषों में असंतुलन के कारण भार में वृद्धि होती है या मोटापा बढ़ता है। ये दोष शरीर के पांच तत्वों के प्राबल्य के अनुरूप होते हैं। इन तत्वों में किसी एक की प्रबलता हो सकती है।
शरीर की रचना में वायु की भूमिका भी अहम होती हैए जो श्वासोच्छ्वास और पाचन प्रणाली के लिए जरूरी है। वाुय के संचार के लिए जगह चाहिए। शरीर की कार्य प्रणाली पर नियंत्रण के लिए वायु की जरूरत होती है। वायु की इस कार्य प्रणाली के फलस्वरूप ही हम सांस लेते छोड़ते हैंए हमारा भोजन पचता है और हम मल मूत्र का त्याग करते हैं। जल का निर्माण मुख्यतः रक्त और ऊतक द्रव के मेल से होता है।
जीवित रहने के लिए शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती हैए जो चयापचय से मिलती हैए और पाचन आग से होता है। जल और वायु चयापचय के मुख्य कारक हैं। चयापचय वायुए भोजन और जल को समस्त प्रणाली के माध्यम से संसाधित करता है। शरीर की मूल बनावट में ऊतकोंए अस्थियों और खनिजों के मेल की भूमिका अहम होती है।
ये तत्व पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं। कोशिकाओं के एक साथ रहने और मांसपेशियोंए अस्थियों और स्नायुओं की रचना के लिए पृथ्वी तत्वों तथा जल की जरूरत होती है। इस तरहए ऊपर वर्णित ये सभी पांच तत्व शरीर की रचना के लिए अनिवार्य हैं। संतुलित भार के लिए इन तत्वों में संतुलन जरूरी है और यह हमारे आहार पर निर्भर करता है।
आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार वायु और गगन तत्वों की प्रबलता वाले वात प्रधानए जल और अग्नि तत्वों की प्रबलता वाले पित्त प्रधान और पृथ्वी तथा जल की प्रबलता वाले कफ प्रधान होते हंै। वात प्रधान लोगों में वायुए पित्त प्रधान लोगों में चयापचय और कफ प्रधान लोगों में शारीरिक संरचना संबंधी गड़बड़ी की प्रवृत्ति होती है।
वात प्रधाान लोग हल्के तथा दुबले पतले होते हैं। वे दूसरों की तुलना में अधिक तेजी से काम करते हैं। उनके आकारए प्रकारए भाव भंगिमा और क्रियाकलाप में विविधता होती है। वे उत्साहीए कल्पनाशील और शीघ्र उत्तेजनशील होते हैं। उनमें चिंताए कब्जए निद्राल्पताए अनियमित भूख और पाचन में गड़बड़ी की प्रवृत्ति होती है।
उनमें जरूरत से ज्यादा काम करने की प्रवृत्ति होती है और वे शीघ्र थक जाते हैं। वे लंबे होते हैं। उनके नितंब तथा कंधे संकुचित होते हैं। उनके हाथ और पैर लंबे तथा दांत बाहर निकले हुए हो सकते हैं। भावनात्मक स्तर पर वे अस्थिर होते हैं। पित्त प्रधान लोग दरम्याने कद के होते हैं। उनका चयापचय सुदृढ़ होता है। वे बुद्धिजीवीए तेजए महत्वाकांक्षीए स्पष्टवादीए साहसी और विवादप्रिय होते हैं।
उन्हें भूख तेज आती है और उनका पाचन तंत्र मजबूत होता है। वे भोजन समय पर करते हैं और इसमें आधे घंटे की भी देर होने पर बेचैन हो उठते हैं। उनकी त्वचा नम होती है और उनके बाल समय से पहले ही सफेद हो जाते हैं। कफ प्रधान लोगों की शारीरिक बनावट भारी होती है। वे शक्तिशाली होते हैं। उन्हें भूख कम लगती है और उनका पाचन कमजोर होता है। भावनात्मक और संवेगात्मक स्तर पर वे सुदृढ़ होते हैं। वे सहनशील और क्षमाशील होते हैं।
वे जानकारी ग्रहण करने में धीमे किंतु उच्चे कोटि की स्मरण शक्ति के स्वामी होते हैं। उनका मन शांत और स्वभाव मृदु होता है। आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुरूप शरीर रचना की जानकारी से हमें उचित आहार और व्यायाम का ज्ञान मिल सकता है। दिमाग में जो कोई भी घटना घटती है उसका असर शरीर पर पड़ता है।
जैसा कि ऊपर बताया गया है हमारे शरीर पर तीन दोषों का शासन होता है : वातए, पित्त और कफ। ये तीनों हमारे समस्त शरीर रचना विज्ञान में हमारे बोध का संचार करते हैं। हमारा भार तन मन के सामंजस्य से संतुलित रह सकता है। किंतु इसके लिए संतुलित आहार और शरीर के अनुकूल व्यायाम जरूरी है। मानसिक संतुलन दिमाग का काम है।
किसी भी तरह के असंतुलन को आयुर्वेद में विकृति कहा गया है: एक संस्कृत शब्द जिसका अर्थ प्रकृति से दूर होना है। हमें हमारे तन मन के अनुरूप आहार लेना चाहिए। हमारे खान पान और हमारी सोच का अच्छा या बुरा प्रभाव निश्चय ही हमारे शरीर की 60 खरब कोशिकाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
इसी तरह हमारे भोजन का प्रभाव वातए पित्त और कफ पर पड़ता है। कुछ खाद्य पदार्थ कफ को कम करते हैं। इन पदार्थों के सेवन से हमारे चयापचय में परिवर्तन आता है जिससे ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। इस तरहए हम कैलोरी की गणना अथवा किसी भी तरह की डाइटिंग के बगैर संतुलित भार कायम रख सकते हैं।
हल्केए सूखे और गर्म खाद्य पदाण् र्थ के सेवन से कफ संतुलित रहता है। इसे संतुलित रखने के लिए कम वसा वाला दूध लेना चाहिए। दूध उबला हुआ होए क्योंकि कच्चा और ठंडा दूध कफ को बढ़ाता है। भोजन अथवा खट्टे या नमकीन पदार्थ के साथ दूध नहीं पीना चाहिए अन्यथा इसके पाचन में कठिनाई होती है। उबालने के पहले दूध में हल्दी या अदरख डाल देना चाहिए।
इन पदार्थों में कफ को कम करने के गुण होते हैं। फलों में सेब और नासपाती का सेवन करना चाहिए। अनार और क्रेनबेरी भी लाभदायक होते हैं। शहद कफ को संतुलित रखने का सर्वोत्कृष्ट पदार्थ है। इनके अतिरिक्त हर किस्म के सेमए जौए नमक को छोड़ सभी मसालेए सब्जियां खास तौर से मूलीए शतावरए बैगनए हरी पत्तेदार सब्जियांए चुकंदरए गोभी ;ब्राॅक्कोलीद्धए आलूए पत्ता गोभीए गाजरए फूलगोभीए कद्दूए सलाद आदि और मांसाहारियों के लिए मुर्गे का मांस और मछलियां आदि लाभदायक होते हैं।
संतुलन रखने के कुछ सुझाव भोजन शांत वातावरण में करें। भोजन हमेशा बैठकर करें। जब अस्थिरता हो तो भोजन न करें। बर्फ जितने ठंडे भोजन व पेय से बचें। भोजन चबाते समय बातें न करें। भोजन धीरे.धीरे करें। जब तक पिछला भोजन पच न जाए तब तक दोबारा भोजन न करें। भोजन कर लेने के बाद कुछ मिनटों के लिए चुपचाप बैठें। जरूरत से ज्यादा कभी न खाएं। भोजन स्वाद के लिए नहीं बल्कि भोजन ;आहारद्ध के लिए करें।
मिठाइयांए नमकीन और तली हुई चीजों आदि से बचें। आयुर्वेद में आम का उल्लेख है। वात का यह रूप रक्त संचार तथा ऊर्जा के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है। इसके फलस्वरूप आलस्यए दीर्घसूत्रताए अनियमित भोजनए भूख की अनुभूति में कमी आदि के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। नमकीनए खट्टे और मीठे पदार्थों के सेवन से आम में वृद्धि होती है।
अदरख का रस और जीरेए हल्दीए इलायचीए दालचीनीए लौंगए सरसों के बीजए काली मिर्च आदि कफ को कम और चयापचय के स्तर में सुधार तथा आहार को वसा की बजाय ऊर्जा में बदलने में सहायता करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार जड़ी बूटियां मानव शरीर और बाह्य वातावरण के बीच कड़ी का काम करती हैं। हरीतकी संघनित वात को कम करती हैए आमलाकी ऊतकों को शक्ति देती हैंए बिभीतकी कफ को संतुलित करती है और विदांग आम निरोधी है।
इसी तरह ब्राह्मी मन को शांत रखती है और गुग्गुल वसा को कम करता है। इनके अतिरिक्त अधिकांश कड़े तीखे पदार्थ कफ को कम करते हैं। संतुलित और उपयुक्त आहार के अतिरिक्त व्यायाम भी संतुलित भार के लिए समान रूप से आवश्यक हैं। व्यायाम दोष के अनुरूप हों। वात प्रधान लोगों को कमए पित्त प्रधान लोगों को मध्यम और कफ प्रधान लोगों को श्रम साध्य व्यायाम करने चाहिए।
वात रोगियों के लिए योगए नृत्यए साइकिल चालनए पित्त रोगियों के लिए दौड़ना और तैरना और कफ रोगियों के लिए जाॅगिंगए दौड़नाए नौकायन आदि श्रेयस्कर हैं। यदि दोष संतुलित हों तो हम स्वस्थ रहते हैं और हमारा भार संतुलित रहता है। इसके विपरीत इनके असंतुलित होते ही हमारा स्वास्थ्य खराब और भार असंतुलित हो जाता है।
अच्छे स्वास्थ्य तथा संतुलित भार के लिए दोषों का संतुलित होना जीवन शैली पर निर्भर करता है। जीवन शैली को नियमित और अनुकूल रखने के लिए निम्नलिखित सुझाव अपनाएं। पित्त रोगी शांत रहेंए धूप स्नानए गर्म स्नान आदि से परहेज करें। रात में देर से भोजन न करें।
अधिक तेलयुक्त और तली हुई चीजोंए मदिराए कैफीन और भेड़ व बकरे के मांस से परहेज करें। पित्त से संबंधित आहार नियमों का पालन करें। जब क्रुद्ध और उत्तेजित हों तो भोजन न करें। घर के इर्द.गिर्द फूल लगाएं। सिर और शरीर की नारियल के तेल से नियमित रूप से मालिश करें। चांद की रोशनी में स्नान करें।
वात रोगी अपने लिए एक सुरक्षित व शांत वातावरण का निर्माण करें। प्रसन्न रहें। गर्म पका हुआ आहार लेंए गर्म पेय और गर्म रखने वाले मसालों का स्वास्थ्य सेवन करें। शीघ्र पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें। भोजन न छोड़ेंए किंतु अधिक भोजन न करें।
ठंडी हवाए शीलनए टीण्वीए रेडियो आदि से परहेज करें। पर्याप्त नींद लें। दिनचर्या बनाएंए रात को 10 बजे से पहले से जाएं। भयए चिंता आदि से मुक्ति के लिए अपने मनोभावों को व्यक्त करें। कफ रोगी भारी नाश्ता कभी न करें। सुबह 10 से शाम 6 के बीच भोजन श्रेयस्कर है। दूध से बनी चीजोंए मिठाइयोंए तेल और वसायुक्त भाजे न स े परहजे कर।ंे जब भूख लगे तभी खाएं और जब प्यास लगे तभी पीएं।
भोजन के बाद तुरंत न सोएं। खाने के बाद थोड़ा टहलें। अधिक न सोएं। शारीरिक व्यायाम और मानसिक उद्दीपन आवश्यक है। स्नान नियमित रूप से करें। दिनचर्या में परिवर्तन करते रहें।
संतुलित भार के लिए निम्नलिखित सुझावों को अमल में लाएं। भारी नाश्ते और भोजन से परहेज करें। रोज सुबह 6 से 7 के बीच व्यायाम करें। ठंडे दूधए आइसक्रीमए मिठाइयों आदि का सेवन न करें। अचारए आलू वेफरए पापड़ए चटनी आदि न खाएं।
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