स्वास्थ्य ही धन है -यह बात बचपन से ही हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। ये सर्वथा उचित भी प्रतीत होता है। क्योंकि स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ कार्य कर सकता है। जीवन में हस्तरेखाओं के अध्ययन, मनन एवं चिंतन करने का काफी सुअवसर मिला और मैंने देखा कि जब-जब हस्तरेखाओं में किसी भी तरह का विकार उत्पन्न होता है, जातक उससे संबंधित विभिन्न रोगों से ग्रस्त रहता है। मैंने अपनी पत्नी का हाथ देखा। उनकी मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा पर गहरे काले धब्बे थे। कुछ ही दिनों के बाद वह बीमार हो गई। शीघ्र ही उनकी तबीयत गंभीर हो गई। करीब एक साल तक उसका इलाज चला। एक साल बाद जब मैंने उनका हाथ पुनः देखा तो काले धब्बे के वे निशान जो बीमारी के पहले थे, गायब हो चुके थे। बीमारी के दौरान रेखाओं पर उभर आए उन दोषों के निवारण के लिए मैंने कुछ उपाय किए। जैसे मैंने उनसे कुछ पूजा-पाठ करवायी और जरूरी रत्न भी धारण करवाए। साथ ही उन्हें गणेश जी का स्मरण करते हुए निम्नलिखित मंत्र का मन ही मन पाठ करने की सलाह दी- औषध जान्हवी तोय। वैद्यो नारायणो हरिः।।
उचित समय पर किए गए उपाय से लाभ हुआ और मेरी पत्नी स्वस्थ हो गई। दूसरा, एक बच्चे के हाथों का अध्ययन किया तो पाया बालारिष्ट योग बन रहा है। बच्चा उस समय छः साल का था। थोड़े दिन बाद पता चला कि उसके फेफड़े में विकार है। समय रहते बच्चे का इलाज कराया गया, वह बच्चा अब पूर्ण स्वस्थ है। अभी उसकी उम्र 35 साल है। हाथों में बृहस्पति पर्वत का दबा होना एवं राहु पर्वत से बृहस्पति पर्वत का संयोग होना लीवर का रोग देता है। इसी तरह बुध पर्वत का अच्छा न होना, साथ ही राहु पर्वत पर विशेष उभार होना त्वचा का रोग देता है।
शुक्र पर्वत का कमजोर होना, साथ ही मंगल का कमजोर होना नपुंसकता जैसा रोग दे सकता है। वस्तुतः किसी भी व्यक्ति का हाथ उसके व्यक्तित्व का दर्पण है। व्यक्ति के साथ घटने वाली प्रत्येक घटना का स्पष्ट संकेत हथेलियों में उपस्थित रेखाओं द्वारा मिल जाता है। हाथ में सभी नक्षत्रों, ग्रहों एवं दिशाओं का वास है। सभी प्रकार के देवी देवताओं का वास है। सभी तीर्थंकरों का वास है। इसीलिए कहा जाता है- कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती। कर पृष्ठे ब्ऱह्मा, प्रभाते कर दर्शनम्।।