लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !
लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी . मां के रूप में लक्ष्मी की आराधना करने पर मात्र लक्ष्मी से स्नेह के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। जो लक्ष्मी को मां के रूप में पूजते हैं वे धनपति नहीं बन पाते। पत्नी के रूप में भी किसी प्रकार का लेनदेन नहीं होता। उस पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकते। यदि उसे दबाएं तो वह उच्छंृखल हो सकती है। लक्ष्मी का तीसरा संबंध प्रेमिका का है जो सब कुछ देने को तत्पर रहती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में स्वीकार किया गया है। यजुर्वेद में लक्ष्मी का आवाहन करते हुए कहा गया हैए ष्ष्तू प्रिया रूप में मेरे जीवन में आए जिससे मैं जीवन में पूर्णता अनुभव कर सकूं।ष्ष् प्रेमिका को भी आबद्ध करना आवश्यक होता हैए उसे पौरुष से आबद्ध किया जा सकता है। लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !
लक्ष्मी चंचला है, एक घर में टिक कर नहीं बैठती। आज जो करोड़पति है एक झोंके में दिवालिया बन जाता है, निर्धन लक्ष्मीवान बन जाता है। यह सब लक्ष्मी की चंचल प्रवृत्ति के कारण ही है।
जीवन में लक्ष्मी की अनिवार्यता है, धनी होना मानव जीवन की महान उपलब्धि है, गरीबी और निर्धनता जीवन का अभिशाप मानी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह संपन्न बने, इसके लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहता है। यहां कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं, जिन्हें जीवन में अपनाएं तो लक्ष्मी को आपके द्वार आना ही पड़ेगा।
मां के रूप में लक्ष्मी की आराधना करने पर मात्र लक्ष्मी से स्नेह के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। जो लक्ष्मी को मां के रूप में पूजते हैं वे धनपति नहीं बन पाते। पत्नी के रूप में भी किसी प्रकार का लेनदेन नहीं होता। उस पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकते। यदि उसे दबाएं तो वह उच्छंृखल हो सकती है। लक्ष्मी का तीसरा संबंध प्रेमिका का है जो सब कुछ देने को तत्पर रहती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में स्वीकार किया गया है। यजुर्वेद में लक्ष्मी का आवाहन करते हुए कहा गया है, ‘‘तू प्रिया रूप में मेरे जीवन में आ, जिससे मैं जीवन में पूर्णता अनुभव कर सकूं।’’ प्रेमिका को भी आबद्ध करना आवश्यक होता है, उसे पौरुष से आबद्ध किया जा सकता है।
विश्वामित्र ऋषि ने लक्ष्मी की अर्चना पूजा मां के रूप में भी की है और बहन और पत्नी के रूप में भी, परंतु उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई। जब विश्वामित्र ऋषि ने लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में अपने पौरुष के माध्यम से आबद्ध किया तब लक्ष्मी को मजबूर होकर उनके आश्रम में आना पड़ा। लक्ष्मी की अर्चना मंत्र के माध्यम से भी संभव है और तंत्र के माध्यम से भी। मंत्र से तात्पर्य है प्रार्थना व स्तुति करना। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक नहीं है कि लक्ष्मी हमारी प्रार्थना स्वीकार करे ही। विश्वामित्र ने कहा है ‘‘हाथ जोड़ने से नारी वश में हो ही नहीं सकती, दीनता प्रदर्शन और गिड़गिड़ाना उसके सामने अपने को कमजोर सिद्ध करना है। इसलिए पौरुष की जरूरत होती है। और यह पौरुष तंत्र के द्वारा ही संभव है।’’
जब मंत्रों के माध्यम से लक्ष्मी विश्वामित्र के आश्रम में नहीं आई तो ऋषि ने नवीन तत्रोक्त विधि प्रचलित की जिसे ‘लक्ष्मी सपर्या विधि’ कहा जाता है। लक्ष्मी प्रकट हुई, लक्ष्मी को देखकर विश्वामित्र ने हाथ नहीं जोड़े, प्रार्थना नहीं की अपितु आंखों में आखें डालकर कहा लक्ष्मी तुम्हें मेरे आश्रम आना ही है। लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !
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