एस्ट्रो पामिस्ट्री
एस्ट्रो पामिस्ट्री

एस्ट्रो पामिस्ट्री  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 30649 | फ़रवरी 2014

ज्योतिष में हम जन्म के समय भचक्र में ग्रहों की स्थिति, युति व दृष्टि के आधार पर उनकी ऊर्जाओं का विश्लेषण जातक की जन्मकुंडली द्वारा करते हैं। हस्तरेखा विज्ञान में इन ऊर्जाओं का विश्लेषण हथेली में विद्यमान चिह्नों और रेखाओं से करते हैं। दूसरे शब्दों में हमारी हथेली में स्वयंभू जन्मपत्री विद्यमान होती है। इसी आधार पर बहुत से विद्वानों ने जो ज्योतिष व हस्तरेखा की बारीकियों से अवगत हैं जातक की हस्तरेखाओं के आधार पर जन्मकुंडली बनाने का प्रयास किया। इसी प्रकार कुछ विद्वानों ने जन्मकुंडली के आधार पर जातक के हाथों की रेखाओं का सूक्ष्मतम अध्ययन करने का प्रयास किया। इस प्रकार के विद्वानों को ।ेजतवचंसउपेजे का नाम दिया गया है। एस्ट्रोपामिस्ट्री का विज्ञान ज्योतिष के उस विभाग की परिचर्चा करता है जो पामिस्ट्री यानी हस्तरेखा विज्ञान में प्रतिबिंबित होता है।

ज्योतिष की एक प्राचीनतम पुस्तक जिसे शताब्दियों तक उत्तर भारत में गोपनीय रखा गया और जो बीसवीें शताब्दी में ज्योतिषियों के लिए पंडित रूपचंद शर्मा के अथक प्रयासों से उपलब्ध हो सकी वह लाल किताब है। इस पुस्तक में ऐसे अनेक अध्याय हैं जहां ज्योतिष को हस्तरेखा विज्ञान से जोड़ा गया है।

उदाहरण के लिए उसमें बहुत सी उक्तियों द्वारा रेखाओं और चिह्नों को जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति से जोड़ा गया है जैसे-

- यदि कोई ग्रह पर्वत उभरा हुआ हो और उस पर सीधी खड़ी रेखा हो तो उस ग्रह को स्वगृही या उच्चराशिस्थ समझें।

- इसी प्रकार कोई ग्रह दबा हुआ या अविकसित हो तो उसे नीचराशिस्थ समझें।

- यदि किसी ग्रह क्षेत्र पर त्रिशूल, शंख, मछली, त्रिभुज या चतुर्भुज जैसी कोई आकृति हो तो उस पर अन्य ग्रहों की शुभ दृष्टि पड़ रही है।

- जब किसी ग्रह क्षेत्र पर अशुभ चिह्न जैसे द्वीप, जाल, चेन, नक्षत्र या बिन्दू आदि हों तो वह ग्रह जन्मकुंडली में अशुभ ग्रहों से दृष्ट होगा।

- जब दो ग्रह क्षेत्र किसी रेखा से जुड़े हों तो उन ग्रहों की कुंडली में युति होगी।

- जब जन्मकुंडली में राहु व केतु का जीवन पर बुरा असर हो रहा हो तो जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा शृंखलाकार होती है।

- यदि भाग्य रेखा के मूल में चार शाखाओं वाली रेखा हो। सूर्य के पर्वत पर बुध की ओर एक चक्र हो या बृहस्पति का चिह्न हो या दोनों हाथों की उंगलियों पर एक शंख अथवा एक चक्र हो या बृहस्पति के पर्वत पर एक सीधी रेखा हो तो बृहस्पति को खाना नंबर एक में समझें।

- बृहस्पति के पर्वत पर दो सीधी रेखाएं या हाथ में घर नंबर दो की जगह गुरु का चिह्न हो तो बृहस्पति को खाना नंबर दो में समझें।

- उंगलियों पर 7 चक्र या हृदय रेखा गुरु पर्वत पर जाए या बृहस्पति के पर्वत पर 7 सीधी रेखा के होने पर बृहस्पति को खाना नंबर तीन में माना जाता है।

- उंगलियों में चार शंख, बृहस्पति पर चार सीधी रेखाएं अथवा चंद्रमा पर शंख या चंद्रमा से निकली कोई रेखा बृहस्पति पर पहुंच जाए तो इसे खाना नंबर 4 में समझें।

- उंगलियों पर पांच चक्र या स्वास्थ्य रेखा का भाग्य रेखा के आरंभ में मिलन हो रहा हो तो बृहस्पति को खाना नंबर पांच में माना जाए।

- उंगलियों के पोरों में छः चक्र हों अथवा भाग्य रेखा की जड़ में केतु का चिह्न होने पर गुरु को खाना नंबर छः में माना जाता है।

- बृहस्पति का पर्वत बहुत बड़ा हो या संतान रेखा विवाह रेखा को काटती हो, अथवा भाग्य रेखा की जड़ पर बुध का चक्र हो तो बृहस्पति खाना नंबर 7 में होता है।

- बृहस्पति का पर्वत दबा हो, हृदय रेखा सीधी हो, 8 या 11 चक्र हों या 6 उंगलियां हों, भाग्य रेखा सूर्य रेखा से न मिले, भाग्य रेखा की जड़ पर त्रिकोण हो तो गुरु खाना नंबर 8 में होता है।

- भाग्य रेखा एकदम सीधी और स्पष्ट होने पर बृहस्पति खाना नंबर 9 में होता है।

- सूर्य के पर्वत पर बुध की ओर एक सीप, उंगलियों में दस चक्र, आयु रेखा चंद्र पर समाप्त होती हो। बृहस्पति और शनि के पर्वत दोशाखी रेखा से मिले तो खाना नं. दस में समझें।

- उंगलियों में 9 चक्र होने पर खाना नंबर 11 में समझें। - छः शंख या 12 चक्र (उंगलियां छः होने पर) भाग्य रेखा की जड़ में राहु का चिह्न हो या मत्स्य का चिह्न शुक्र पर्वत पर हो तो गुरु खाना नंबर 12 में हो। इस पुस्तक में ऐसे अनेक नायाब सूत्र हैं जो ज्योतिष व हस्तरेखा विशेषज्ञों के लिए विशेष उपयोगी हैं। हथेली में रेखाओं और चिह्नों द्वारा कुंडली में ग्रहों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।



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