दीपावली मुख्यतः पांच पर्वों का पर्व है- धनत्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज (यम द्वितीया)। धनत्रयोदशी इस बार 7 नवंबर 2007 को धनत्रयोदशी या धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी को धन्वन्तरि जयंती और धनत्रयोदशी दोनों ही मनाने का विधान है।
धनत्रयोदशी के दिन अपने भवन के मुख्य द्वार पर प्रदोष काल में यमराज को दीप एवं नैवेद्य आर्पित करते हुए यह प्रार्थना करें कि हमारे घर में किसी प्रकार का कोई रोग और कष्ट न हो। इस दिन निम्न मंत्र का 3 बार उच्चारण करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। मृत्युना पाश दंडाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज प्रीयतामिति।। इस दिन नए बर्तन खरीद कर लाना शुभ माना जाता है। आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वंतरि का जन्म इसी दिन माना जाता है।
अतः इस दिन स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि का आवाहन अवश्य करना चाहिए क्योंकि औषधियों में अमरत्व का वास होता है। इस दिन तुलसी, आंवले, हरड़, बहेड़े आदि की पूजा करने से काया स्वस्थ रहती है। नरक चतुर्दशी 8 नवंबर 2007, कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या नरक चैदस के रूप में मनाने की परंपरा है।
इस पर्व को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन कुबेर की पूजा भी की जाती है। इस दिन प्रातः उठ कर सूर्योदय से पहले एक तुंबी (लौकी) को अपने सिर पर से घुमाने के बाद स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से नरक का भय नहीं रहता है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। इस दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है।
दीपावली इस वर्ष दीपावली 9 नवंबर 2007 को मनाई जाएगी। हिंदुओं के लिए इस पर्व का अत्यधिक महत्व हैं वैसे पूरे भारत वर्ष में और अन्य देशों में भी जहां भारतीय मूल के लोग हैं, यह पर्व सभी संप्रदायों एवं धर्मों को मानने वालों के द्वारा हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन लोग बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ लक्ष्मी एवं गणेश का पूजन करते हैं। दीपावली की रात्रि को महानिशीथ काल की संज्ञा दी गई है। तंत्र की साधना, लक्ष्मी पूजा एवं काली पूजा के लिए इस रात्रि से बढ़कर कोई भी समय नहीं होता। अतः साधक एवं भक्त लोग इस रात्रि की प्रतिक्षा में रहते हैं एवं इसकी पूजा एवं उपासना में पूरे मनोयोग से सम्मिलित होते हैं।
इस दिन सभी घरों, दुकानों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों में महालक्ष्मी का पूजन अवश्य होता है। व्यापारी लोग खाता-बही, तिजोरी एवं तुला की पूजा भी करते हैं। प्रत्येक स्थान को दीप जलाकर प्रकाशित किया जाता है। क्योंकि यह प्राशपर्व भी है। इस दिन मिठाइयां एवं उपहारों को बांटने की परंपरा भी है।
दीपावली के दिन लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है। और भक्तों एवं साधकों के धन तथा समृद्धि की वृद्धि होती है। स्वच्छ वस्त्र, आभूषण, फूल माला, इत्र आदि से सज्जित होकर दीपक प्रज्वलित कर श्री लक्ष्मी विष्ण् ाु के मंत्रों का जप कर उनके यंत्र व तंत्र की पूजा और भजन अर्ध रात्रि तक करते रहना चाहिए।
श्री यंत्र, कुबेर यंत्र, महालक्ष्मी यंत्र, कनक धारा यंत्र, सरस्वती यंत्र, गणेश-लक्ष्मी यंत्र, मृत्युंजय यंत्र, वास्तु यंत्र, विष्णु यंत्र, व्यापार वृद्धि यंत्र, कार्य सिद्धि यंत्र, संतान गोपाल यंत्र आदि की आवश्यकतानुसार पूजन कर सिद्ध करके घर में यथास्थान रखने से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है, घर के सदस्यों की आयु लंबी होती है और वे स्वस्थ रहते है।
दीपावली से पूर्व ही लक्ष्मी पूजन के लिए लक्ष्मी गणेश की मूर्ति या चित्र, चैकी, धूपबत्ती, दीपक, गुलाब की अगरबत्ती, पुष्प, पुष्पमाला, शुद्ध जल, गंगाजल, मिठाई, चांदी का सिक्का, लाल और पीला वस्त्र, कमलगट्टे या स्फटिक की माला, सुपारी, अक्षत आदि सभी आवश्यक वस्तुएं ले आनी चाहिए। शुभ मुहूर्त में चैकी पर लाल वस्त्र बिछाकर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके, चित्र को पुष्प माला पहना कर धूप, अगरबत्ती और शुद्ध घी के 5 और अन्य सरसों के तेल के दीपक जलाएं। जल से भरे कलश पर मौली बांधकर रोली से स्वस्तिक का चिह्न अंकित करें। फिर गणेश-लक्ष्मी जी का तिलक करें, पुष्प अर्पित करें और हाथ में पुष्प, अक्षत, सुपारी, सिक्का और जल लेकर संकल्प करें।
घर मं े जिस स्थान पर रुपये या आभूषण रखे हों, उस स्थान पर घी का दिया जलाएं। अंत में मां लक्ष्मी जी की आरती करें। लेखनी, बहीखाते और तुला का पूजन व्यापारी वर्ग के लिए विशेष लाभदायक होता है। गोवर्धन पूजा 10 नवंबर 2007, कार्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा गोवर्धन पूजा तथा अन्नकूट का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन व्रज में गोवर्धन पूजा एवं परिक्रमा का विधान है।
लोग अपने गोधन की पूजा कतरे हैं एवं गोवंश के संवर्धन का प्रण लेते हैं। यह दिन विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। चित्रगुप्त जी की पूजा भी इसी दिन की जाती है। भाईदूज 11 नवंबर 2007 कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को भ्रातृद्वितीया या यमद्वि तीया के रूप में मनाने का रिवाज है। इसे भाई दूज भी कहा जाता है।
इस दिन यमुना में स्नान, दीपदान आदि का महत्व है। इस दिन बहनें, भाइयों के दीर्घजीवन के लिए यम की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। जो भाई इस दिन अपनी बहन से स्नेह और प्रसन्नता से मिलता है, उसके घर भोजन करता है, उसे यम के भय से मुक्ति मिलती है। भाइयों का बहन के घर भोजन करने का बहुत माहात्म्य है।
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