हिदी भाषी क्षेत्रों में सभ्यता और सांस्कृतिक साम्य होने के कारण दीपावली मनाने के तरीके में फर्क नही है लेकिन उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत में दीपावली महापर्व मनाने के तौर तरीकों में कुछ फर्क आ जाता है क्योंकि दक्षिण भारत में द्रविड़ जाति की संस्कृति से मिली-जुली सभ्यता है जबकि उत्तर भारत में ऐसी बात नहीं है।
मध्यप्रदेश, झारखंड, आसाम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा इत्यादि राज्यों में आदिवासियों की संख्या अधिक है। इसलिए आदिवासी बहुल क्षेत्रों में दीपदान तो किया जाता है लेकिन आदिवासी लोग- स्त्रियां एवं पुरुष दोनों - मिलकर मंदिर पर नृत्य करते हैं। धनतेरस के समय यम के निमित्त जो दीया जलाया जाता है, वह घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। कामना की जाती है कि वह दीप अकाल मृत्यु के प्रवेश को रोक सके।
ऐसा विवेक जगाए जो स्वास्थ्य, शक्ति और शांति दे। यम की बहन यमुना नदी जिन क्षेत्रों में बहती है, उन क्षेत्रों में यह विषेश पूजा का दिन भी है। उस दिन श्रद्धालु यमुना में यम को मनाने की भावना से स्नान करते हैं। दीपावली महापर्व का पहला दीप जलाकर शुरू हुए महोत्सव का एक अंग नये बरतन खरीदना भी है ताकि लक्ष्मी पूजन के लिए भोग, प्रसाद अपने घर में ही नये बरतन में बन सकें।
हिंदी भाषी क्षेत्रों में दीपावली के दिन घरौंदा बनाने की भी परंपरा है। उसमें कई प्रकार के अनाज मिट्टी के बरतनों में रखे जाते हैं। इसके पीछे यही भावना है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना घर हो और वह अनाज से भरा रह जब वर्षा काल बीतता है और धरती हरी भरी होती है, नई फसल की शुरुआत सारे दुख दारिद््रय को दूर फटकारने लगती है। लोग इसी खुशी में बड़े ही आनंदपूर्वक दीपावली मनाते हैं।
पंजाब प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात इत्यादि राज्यों में दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इन राज्यों में दीपावली के अवसर पर लोग दीप तो जलाते ही हैं, साथ ही साथ सामूहिक रूप से नृत्य भी करते हैं- राजस्थान में राजस्थानी नृत्य होता है तो गुजरात में गुजराती नृत्य। बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश इत्यादि राज्यों में दीपावली महापर्व के दिन मध्य रात्रि में, प्रायः सिंह लग्न में लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं।
इन राज्यों में घरों में घरौंदा बनाने के अतिरिक्त रंगोली बनाते हैं जो व्यक्ति विशेष की कलाकृति का बोध कराते हैं। उत्तरांचल में तो विशेष रूप से पूरे घर-आंगन में महिलाएं गेरू का लेप कर उसके ऊपर बेस्वार (चावल का आटा) से लक्ष्मी के चरण चिह्न बनाती हैं और उनके ऊपर मिट्टी के दीये जलाती हैं। लोग घरों एवं अपनी-अपनी दुकानों के सामने केले के वृक्ष काट कर गाड़ते हैं और उनमें बांस के फट्ठे इत्यादि लगाकर दीप जलाते हैं।
कुछ लोग आकाशदीप, (कंदील) बनाते हैं और उसके बीच में बिजली का बल्ब लगा देते हैं। बच्चे फुलझड़ियां पटाखे आदि बाजारों से खरीदते हैं। प्रत्येक घर में मिठाइयां बनती हैं। जो गणेश जी को एवं लक्ष्मी जी को प्रसाद के रूप में मिठाई चढ़ाई जाती हैं। प्रत्येक घर की सफाई एवं पुताई भी होती है।
खिड़कियों, दरवाजों की रंग, एवं वारनिश इत्यादि से पुताई होती है जिससे पुराने भवन भी नये प्रतीत होते हैं। मकानों की उम्र बढ़ जाती है। दीपावली की रात्रि में लोग अपने घरों में पूरी रात प्रकाश जलाकर रखते हैं, कुछ लोग रात्रि जागरण भी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी जी भ्रमण करती हैं और घरों के दरवाजे को खुला रखने से लक्ष्मी का आगमन होगा।
हिंदी भाषी क्षेत्र में जहां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, दीपावली के दिन चांदी का सिक्का खरीदते हैं। अमीर लोग गहना इत्यादि खरीदते हैं। पश्चिम बंगाल में दीपावली की मध्यरात्रि में लोग काली की पूजा अर्चना करते हैं। आसाम, मणिपुर, नागालैंड त्रिपुरा इत्यादि पूर्वी राज्यों में भी काली की पूजा की जाती है।
दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसलिए आसाम में स्थित कामाख्या देवी के मंदिर में काफी संख्या में लोग दीपावली की मध्य रात्रि में तंत्र साधना करते हैं। दीपावली महापर्व कर्मठता एवं जागरूकता का संदेश देता है।
रात भर जागकर प्रतीक्षा करने का अर्थ है जागरूक रहते हुए पुरुषार्थ करना। उद्यमी, प्रयत्नशील और पुरुषार्थी व्यक्ति पर ही लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। दीपावली महापर्व की रात्रि शोभा देखने पर परीलोक की कल्पना साकार हो उठती है। लक्ष्मी और काली एक दूसरे की पर्याय हंै। कामाख्या में सती का कामक्षेत्र गिरने से कामाख्या शक्ति पीठ बना। परंपरागत भाषा में असम को कामरूप प्रदेश के रूप में जाना जाता है।
यहां दीपावली महापर्व के अवसर पर तांत्रिक लोग रात्रि के समय विशेष रूप स े शक्ति साधना म ंे जटु े रहत े हं।ै यह जाग्रत शक्ति पीठ है। कालका पुराण के अनुसार कामाख्या का मंदिर नरकासुर द्वारा निर्मित है। दीपावली, वैसे तो पूरे भारतवर्ष में समान रूप से मनाई जाती है, फिर भी स्थानभेद से कुछ आंचलिक विशेषताएं देखने को मिलती हैं।
लक्ष्मीपूजा, दीप जलाना, मिठाइयां बांटना, खील-बतासे बां. टना, पटाखे, फुलझड़ियां, कंदील आदि तो दीपावली में सामान्य रूप से शामिल होते ही हैं परंतु कुछ आंचलिक संदर्भों में विशेष रूप से दीपावली के मनाए जाने का उल्लेख करना उचित होगा। पंजाब: दुनिया में सबसे आलीशान दीपावली पंजाब के अमृतसर गुरुद्वारे में मनाई जाती है।
दुनिया की सबसे मशहूर दीपावली अमृतसर की दीपावली है। गुरुद्व ारे को ऐसे सजाया जाता है, मानो आकाश से सारे तारे उतर कर उसमें आ समा गए हों। आतिशबाजी में भी अमृतसर अव्वल है। पंजाब एवं अन्य राज्यों में भी दिन में लोग खरीददारी करते हैं। मकानों की पुताई की जाती है। दीपमाला सजाई जाती है। लक्ष्मी पूजा की जाती है। घर में सभी लोग बैठकर लक्ष्मी की पूजा करते हैं।
लोग बाजारों से तरह-तरह की मिठाइयां व पटाखे खरीदते हैं। दीपावली के पर्व को बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी मिल कर मनाते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे के घर मिठाइयां बांटते हैं। लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं। रात के समय चारों ओर सिर्फ पटाखों की ही गंूज सुनाई देती है। आकाश भी दिखाई नहीं देता। चारों तरफ रंग बिरंगी रोशनियां देखने को मिलती हैं।
बाजार में कई-कई तरह के पटाखे देखने को मिलते हैं। गांवों के लोग भी दीपावली धूम धाम से मनाते हैं। इस दिन कई लागे दुआ भी करत े ह।ैं
हरियाणा: हरियाणा के गांव में लोग दीपावली कुछ अलग ही ढंग से मनाते हैं। दीपावली के कुछ दिन पहले लोग अपनी घरों की पुताई करवाते हैं। दीपावली के दिन घर की एक दीवार पर अहोई माता की प्रतिमा बनाई जाती है, जिस पर घर के प्रत्येक आदमी का नाम लिखा जाता है। पूजन से पहले लक्ष्मी माता का चित्र रखा जाता है। उसके आगे खील, बतासे, खिलौने रखे जाते हैं व उनके ऊपर घी डाला जाता है। उसके बाद उसे जलाया जाता है ताकि लक्ष्मी प्रसन्न हों। तत्पश्चात सारे आंगन में मोमबत्तियों व दीपकों की रोशनी की जाती है। प्रत्येक घर से चार दीपक हरेक चैराहे पर रखे जाते हैं, जिसे टोना माना जाता है। फिर एक दूसरे के घर मिठाइयां बांटी जाती हैं व उसके बाद पटाखे चलाए जाते हैं। हरियाणा के शहरों की दीपावली में एक अनोखा रिवाज आज भी प्रचलित है। उस दिन औरतें किसी भी छोटे अकेले बच्चे को देखकर उसकी गुद्दी से बाल उखाड़ लेती हैं। यह भी जादू-टोने का एक रूप है।
कोलकाता: यही एक मात्र ऐसी जगह है जहां दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन नहीं होता। यहां दूर्गा पूजन से दो दिन बाद लक्ष्मीपूजा होती है व दीपावली की रात्रि में काली पूजा होती है। घर की सजावट, व पुताई की जाती है। दीपावली तो अन्य राज्यों के समान ही मनाई जाती है, परंतु लक्ष्मी पूजा नहीं होती। घर के आंगन में विशेष रंगोली बनाई जाती है। आंगन में ही तुलसी की पूजा भी की जाती है। शेष सभी कार्य एक जैसे ही होते हंै।
बिहार: बिहार की दीपावली भी एक समान ही है। यहां लक्ष्मी पूजा का खास महत्व है। सभी घर के लोग इकðे बैठकर करते हैं। घर की सजावट व मिठाइयां बांटी जाती हैं, दीपक जलाएं जाते हैं और पटाखे चलाए जाते हैं साथ ही नए कपड़े पहनने का रिवाज भी है। इस दिन घर का बड़ा अपने से छोटे को कोई चीज धन स्वरूप देता है जैसे गाय, भैंस, बछड़ा आदि। आंगन में रंगोली भी होती है।
नेपाल: नेपाल की दीपावली अपने आप में एक अनोखी दीपावली है। पहले घर में सफेदी की पुताई की जाती है, फिर उसे सजाया जाता है। आंगन में रंगोली बनाई जाती है। सभी परिवार के लोग नए कपड़े पहनते हैं। वे अपने रिश्तेदारों को भोजन पर बुलाते हैं। घर में विशेष प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं। पूजन में लक्ष्मी, कौए, कुत्ते व अन्य देवी देवताओं की पूजा होती है। घर में चारों तरफ दीपमाला जलाई जाती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरे आकाश के तारे धरती पर उतर आए हों।
विषेष: उत्तर प्रदेश के जिला लखनपुर में दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन हवन करके किया जाता है जिमसें लक्ष्मी जी के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इसे लक्ष्मी हवन कहा जाता है। कुछ आंचलिक विभिन्नताओं के बावजूद दीपावली पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। बच्चों का तो यह विशेष प्रिय पर्व है क्योंकि बच्चों को पटाखे और मिठाइयां बहुत पसंद होती हैं।
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