मकर संक्रांति प्रश्न: मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में विभिन्न नामों, मान्यताओं एवं विधि से मनाया जाता है। इसको मनाने की विस्तृत विधि, मान्यताओं एवं आधुनिक परिवेश में ज्योतिषीय, पौराणिक एवं धार्मिक महत्व का वर्णन करें।
ग्रह के एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन को ‘‘संक्रांति’’ कहते ह।ंै सूर्य ग्रह के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश को ‘‘मकर संक्रांति’’ कहते हैं। भारत में विभिन्न स्थानों पर इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। भारत में यह अधो अंकित नामों से जाना जाता है।
गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण असम में मघ विहु या भोगली बिहू तमिलनाडु में ‘पोंगल’।
सिख समुदाय में लोहड़ी हरियाणा, हिमांचल प्रदेश और पंजाब में माघी।
कश्मीर घाटी में शिशुर संक्रांत।
आंध्र प्रदेश में - उगादि, संक्रांति
पर्वतीय क्षेत्रों में कुमाऊँ - मकर संक्रांति (घुधुती)
केरल में विलाक्कू महोत्सव सबरीमला मंदिर (केरल)
इसके अतिरिक्त अन्य सभी प्रांतों - उत्तरप्रदेश, बिहार, गोवा, सिक्किम, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति या संक्रांति के रूप में प्रमुखतः मनाया जाता है परंतु मनाने की रीति में पारम्परिक भेद रहता है इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उŸारायण होता है, अतः मकर संक्रांति पर्व को ‘‘उŸारायण’’ भी कहते हैं। ‘उŸारायण’ शब्द दो शब्दों ‘उŸार’$‘अयन’ शब्दों से मिलकर बना है। इसमें ‘उŸार’ शब्द दिशा से जुड़ा है तथा ‘अयन’ शब्द सूर्य की गति से जुड़ा है। जिसका अर्थ होता है ‘चलना’ (गमन/भ्रमण करना)
अर्थात उŸारायण (=उŸार$अयन) का सरल भाषा में अर्थ होता है- ‘‘सूर्य का उŸार दिशा की ओर चलना’’ उŸारायण के 6 महीनों अर्थात् माघ (जनवरी) माह से सूर्य मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करता है, जिससे दिन बड़े होने लगते हैं, फलतः रातें छोटी होने लगती हैं। उŸारायण देवताओं के दिन होते हैं, यह काल आधुनिक विज्ञान की तिथि के अनुसार 22 दिसंबर से 21 जून तक चलता है।
यह काल, प्राचीन ऋषि मुनियों के अनुसार पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। चूंकि मकर संक्रांति (उŸारायण) इस दिन का प्रारंभ दिन है अतः इस दिन किया गया दान सबसे अधिक पुण्य, अक्षय फलदायी होता है। इस कारण से अयन संक्रांति को अन्य संक्रांतिओं की अपेक्षा सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। राशियों के अनुसार संक्रांतियां निम्न प्रकार की होती हैं, जिसे निम्न तालिका में दर्शाया गया है-
उपरोक्त सभी संक्रांतियों में ‘अयन’ (गति, उŸारायण) संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण मानी गयी है। कोई संक्रांति सप्ताह के 7 दिनों में से किसी भी दिन हो सकती हैं। सप्ताह के 7 दिनों में होने वाली संक्रांति को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
इनमें से मंदा (गुरुवार) ब्राह्मणों, मंदाकिनी (बुधवार) क्षत्रियों, ध्वांक्षी (सोमवार) वैश्यों, धोरा (रविवार) शूद्रों के लिए, महोदरी (मंगल) चोरों व तस्करों, राक्षसी (शनि) शराब विक्रेताओं, हेय कर्म में प्रवृŸा लोगों के लिए तथा मिश्रिता (शुक्रवार) संक्रांति साहसिक कार्य करने वाले, कलाकारों, शिल्पियों, चित्रकारों, संगीतज्ञों आदि के लिए शुभ फलदायी होती है। मकर संक्रांति तारीख साधारणतया मकर संक्रांति (उŸारायण) प्रति वर्ष 14 जनवरी को ही होती है अर्थात 14 जनवरी को सूर्य, धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। ् मकर संक्रांति (उŸारायण) की तारीख हर 72-73 वर्षों में बदलती है।
धार्मिक महत्व संक्रांति के दिन तिल व गुड़ खाने का महत्व है क्योंकि इससे शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके सूर्य की पूजा की जाती है। ऐसा करने से बल, बुद्धि और ऊर्जा मिलती है। उसके बाद पूर्वजों को तर्पण करने का रिवाज है। अगर त्रिवेणी संगम या गंगा के पास हो, तो गंगाजी के पवित्र जल में डुबकी लगाकर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। थोड़ी देर ध्यान करने से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है।
तिल, गुड़ के लड्डू के अलावा भोजन में खिचड़ी और जलेबी आदि खायी जाती हैं। इस दिन दान का विशेष विधान है। मकर संक्रांति पर तिल एवं गुड़ से बने लड्डू आदि व्यंजनों का उपयोग करने एवं दान के पीछे यह कारण है कि तिल शनि की एवं गुड़ सूर्य की कारक वस्तुएं हैं। तिल, तेल की भी जननी है।
सूर्य जब उŸारायण में अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं तो शत्रुता के कारण दुःखी हो जाते हैं। अतः सूर्य एवं शनि दोनों को प्रसन्न रखने के लिए इस दिन लोग तिल, गुड़ से निर्मित व्यंजनों का उपयोग करते हैं।