क्या है बसंत और बसंत पंचमी का महत्त्व (बसंत पंचमी महोत्सव दिनांक 28 जनवरी 2012) नवीन राहुजा बसंत ऋतुओं का राजा माना जाता है। यह पर्व बसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। इस अवसर पर प्रकृति के सौंदर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है।
वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नयी कोपलें आने लगती हैं, तथा खेती में भी सरसों की स्वर्णमयी कांति अपनी छटा बिखेरती है। मा घ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी होती है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु आरंभ होती है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में बसंत का अति सुंदर व मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ कहकर ऋतुराज बसंत को अपनी विभूति माना है। कविवर जयदेव तो बसंत का वर्णन करते थकते नहीं है। बसंत ऋतु कामोद्दीपक होता है। इसके प्रमुख देवता काम तथा रति है। अतएव काम देव तथा रति की प्रधानतया पूजा करनी चाहिये। हमारे तंत्र शास्त्रों में भी ऋतु का बहुत महत्व है।
तंत्र शास्त्रों के अनुसार वशीकरण एवं आकर्षण से संबंधित प्रयोग एवं हवन आदि यदि बसंत ऋतु में किये जाये तो वह बहुत ही प्रभावी, शुभ एवं फलदायी रहते हैं। हमारे शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है, कथा कुछ इस प्रकार है।
जब भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता था। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी के वाणी न हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने उदासी तथा मलीनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमशः पुस्तक तथा माला धारण किये थीं।
ब्रह्माजी ने उस देवी से वीणा बजाकर संसार की मूकता तथा उदासी दूर करने के लिए कहा। तब उस देवी ने वीणा के मधुर-नाद से सब जीवों को वाणी दान की, इसलिये उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि को देने वाली है। इसलिये बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है।
सरस्वती चिदानन्दमयी, अखिल भुवन कारण स्वरूपा और जगदात्मिका है। इन्हें महासरस्वती, नील सरस्वती भी कहते हैं। मां सरस्वती ब्रह्माजी की पुत्री है। रंग इनका चंद्रमा के समान धवल, कंद पुष्प के समान उज्जवल है। चारों हाथों में यह वीणा, पुस्तक माला लिये हैं एवं एक हाथ वर मुद्रा में है। यह श्वेता पद्मासना हैं।
शिव, ब्रह्मा, विष्णु व देवराज इंद्र भी इनकी सदैव स्तुति करते हैं। हंस इनका वाहन है। जिन पर इनकी कृपा हो जाये उसे विद्वान बनते देर नहीं लगती। कालीदास का सबसे बड़ा उदाहरण सबके सामने है। संगीत और अन्य ललित कलाओं की अधिष्ठात्री देवी भी सरस्वती ही हैं। शुद्धता, पवित्रता, मनोयोग पूर्वक निर्मल मन से करने पर उपासना का पूर्ण फल माता अवश्य प्रदान करती हैं।
जातक विद्या, बुद्धि और नाना प्रकार की कलाओं में सिद्ध सफल होता है तथा उसकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। आम तौर पर लोग पूछते हैं कि बसंत पंचमी के दिन हमें क्या करना चाहिए। बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से मां सरस्वती की पूजा होती है, परंतु उसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। इस दिन प्रातःकाल तेल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिये और पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिये।
इसके बाद पितृ तर्पण और ब्राह्मण भोजन का भी विधान है। मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का बसंती वस्त्रों और पुष्पों से शृंगार किया जाता है तथा गाने-बजाने के साथ महोत्सव मनाया जाता है। यह ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं। इसीलिए ब्रजप्रदेश में राधा तथा कृष्ण का आनंद-विनोद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बसंत-ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य निखर उठता है।
पक्षियों के कलरव, पुष्पों पर भौरों का गुंजार तथा मादकता से युक्त वातावरण बसंत की अपनी विशेषता है। इस दिन सामान्य पर्व-पद्धति के समान गृह का शोधन-लेपन करके पीतांबर रंग के वस्त्र पहन कर सामान्य हवन करके बसंत ऋतु के वर्णनात्मक छंदों का उच्चारण करके केसर या हल्दी मिश्रित हलवे की आहुतियां भी देनी चाहिये। अपनी सुविधानुसार दिन में सर्वजनों सहित यानी परिवार के साथ पुष्पवाटिका, बगीचों में भ्रमण करना चाहिये।
इस दिन कामदेव के साथ रति तथा सरस्वती का पूजन भी होता है। सरस्वती पूजन से पूर्व कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करनी चाहिये। उत्तर प्रदेश में इसी दिन से फाग उड़ाना प्रारंभ करते हैं, जिसका क्रम फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता हैं। इस दिन विशेष रूप से लोगों को अपने घर में सरस्वती यंत्र स्थापित करना चाहिये, तथा मां सरस्वती के इस विशेष मंत्र का 108 बार जप करना चाहिये।
मंत्र - ‘ऊँ ऐं महासरस्वत्यै नमः’
होली का आरंभ भी बसंत पंचमी से ही होता है। इस दिन प्रथम बार गुलाल उड़ाते हैं और बसंती वस्त्र धारण कर नवीन उत्साह और प्रसन्नता के साथ अनेक प्रकार के मनोविनोद करते हैं। ब्रज में भी बसंत के दिन से होली का उत्सव शुरू हो जाता है तथा गोविंद के आनंद विनोद का उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता है। इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि बसंत पंचमी आनंद और उल्लास का पर्व तो है ही संपन्नता एवं समृद्धि का भी पर्व है अतः इसे पूरी श्रद्धा से मनाना चाहिये।
होली का आरंभ भी बसंत पंचमी से ही होता है। इस दिन प्रथम बार गुलाल उड़ाते हैं और बसंती वस्त्र धारण कर नवीन उत्साह और प्रसन्नता के साथ अनेक प्रकार के मनोविनोद करते हैं।