बसंत पंचमी को सरस्वती पूजन
बसंत पंचमी को सरस्वती पूजन

बसंत पंचमी को सरस्वती पूजन  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9216 | जनवरी 2012

बसंत पंचमी को सरस्वती पूजन क्यों? रश्मि चैधरी बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजन का विधान पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को हमारे पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है।

बसंत पंचमी अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उŸारायण होते हैं।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं का एक अहोरात्र (दिन-रात) मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है, अर्थात् उŸारायन देवताआंे का दिन तथा दक्षिणायन रात्रि कही जाती है। सूर्य की क्रांति 22 दिसंबर को अधिकतम हो जाती है और यहीं से सूर्य उŸारायण शनि हो जाते हैं। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और अगले 6 माह तक उŸारायण रहते हैं। सूर्य का मकर से मिथुन राशियों के बीच भ्रमण उŸारायण कहलाता है।

देवताओं का दिन माघ के महीने में मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर आषाढ़ मास तक चलता है। तत्पश्चात् आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकादशी तक का समय भगवान विष्णु का निद्रा काल अथवा शयन काल माना जाता है। इस समय सूर्यदेव कर्क से धनु राशियों के बीच भ्रमण करते हैं जिसे सूर्य का दक्षिणायन काल भी कहते हैं। सामान्यतः इस काल में शुभ कार्यों को वर्जित बताया गया है। चूंकि बसंत पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है

अतः इस पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियांे से अति विशिष्ट महत्व परिलक्षित होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य को ब्रह्मांड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि तथा ज्ञान और बुद्धिका कारक ग्रह माना गया है। इसी प्रकार पंचमी तिथि किसी न किसी देवता को समर्पित है। बसंत पंचमी को मुख्यतः सरस्वती पूजन के निमिŸा ही माना गया है।

इस ऋतु में ‘‘प्रकृति को ईश्वर प्रदŸा वरदान खेतों में हरियाली एवं पौधों एवं वृक्षों पर पल्लवित पुष्पों एवं फलों के रूप में स्पष्ट देखा जा सकता है।’’ सरस्वती जी का जैसा शुभ श्वेत, धवल रूप वेदों में वर्णित किया गया है, वह इस प्रकार है-

‘‘या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणा-वर दण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना। या ब्रह्मा-च्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निः शेषजाडयापहा।’’

अर्थात देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित, शुभ वस्त्रों से आवृत, हाथों में वीणा धारण किये हुए वर मुद्रा में अति श्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान हैं। शारदा देवी ब्रह्मा, शंकर अच्युत आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वन्दनीय हैं। ऐसी देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेधा से युक्त करें। सरस्वती देवी के इसी रूप एवं सौंदर्य का एक प्रसंग ‘मत्स्य पुराण’ में भी आया है, जो लोकपूजित पितामह ब्रह्मा जी के चतुर्मुख होने का कारण भी दर्शाता है।

‘‘जब ब्रह्मा जी ने जगत की सृष्टि करने की इच्छा से हृदय में सावित्री का ध्यान करके तप प्रारंभ किया, उस समय उनका निष्पाप शरीर दो भागों में विभक्त हो गया। इसमें आधा भाग स्त्री और आधा भाग पुरुष रूप हो गया। वह स्त्री सरस्वती, ‘शतरूपा’ नाम से विख्यात हुई। वही सावित्री, गायत्री और ब्रह्माणी भी कही जाती है। इस प्रकार अपने शरीर से उत्पन्न सावित्री को देखकर ब्रह्मा जी मुग्ध हो उठे और यों कहने लगे- कैसा सौंदर्यशाली रूप है, कैसा मनोहर रूप है’’।

तदनतर सुंदरी सावित्री ने ब्रह्मा की प्रदक्षिणा की, इसी सावित्री के रूप का अवलोकन करने की इच्छा होने के कारण ब्रह्मा के मुख के दाहिने पाश्र्व में एक नूतन मुख प्रकट हो गया पुनः विस्मय युक्त एवं फड़कते हुए होठों वाला तीसरा मुख पीछे की ओर उद्भूत हुआ तथा उनके बाईं ओर कामदेव के बाणों से व्यथित एक मुख का आविर्भाव हुआ।

अतः स्पष्ट है कि ऐसी शुभ, पवित्र तथा सौंदर्यशाली देवी अति धवल रूप सरस्वती देवी की उपासना भी तभी पूर्णतया फलीभूत हो सकती है जब उसके लिए स्वयं ईश्वर तथा प्रकृति ऐसा पवित्र एवं शांत वातावरण निर्मित करें जबकि हम अपने मन को पूर्णतया निर्मल एवं शांत बनाकर पूर्ण रूपेण देवी की उपासना में लीन कर दें एवं नैसर्गिक पवित्र वातावरण में रहकर मन, वचन एवं कर्म से पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति से शारदा देवी की उपासना करें एवं उनकी कृपा दृष्टि के पूर्ण अधिकारी बन जाएं। मेरे विचार से देवी सरस्वती की पूजा एवं उनकी कृपा प्राप्ति का बसंत पंचमी से अधिक शुभ और पवित्र मुहूर्त और क्या हो सकता है। जबकि प्रकृति और देवता दोनों ही हमारी उपासना में सहायक की भूमिका निभाएं।

सरस्वती व्रत का विधान और फल: बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है।

इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें फिर इस प्रकार हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार करें-

‘‘यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः। त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन,् तथा भव वरप्रदा।। वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्। वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।। लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः। एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।’’

अर्थात् ‘देवि! जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका कभी परित्याग नहीं करते, उसी प्रकार आप भी हमें वर दीजिए कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो। हे देवि! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य गीतादि जो भी विद्याएं हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुझे प्राप्त हों। हे भगवती सरस्वती देवि! आप अपनी- लक्ष्मी, मेधा, वरारिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति- इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें। इस विधि से पूजन कर मौन होकर भोजन करें।

प्रत्येक मास की पंचमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करें, उन्हें यथाशक्ति तिल, चावल दुग्ध व घृत पात्र प्रदान करें और ‘‘गायत्री में प्रीयताम्’’ ऐसा बोलंे। इस प्रकार वर्ष भर व्रत करें। व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मण को चावलों से भरा पात्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, घंटा, अन्न आदि पदार्थ भी दान करें। यदि हों तो अपने गुरु देव का भी वस्त्र, धन, धान्य और माला आदि से पूजन करें। इस विधि से जो भी सरस्वती पूजन करता है वह विद्वान, धनी और मधुर वाणी से युक्त हो जाता है।

भगवती सरस्वती की कृपा से उसे महर्षि वेदव्यास के समान ज्ञान प्राप्त हो जाता है। स्त्रियां यदि इस प्रकार सरस्वती पूजन करती हैं तो उनका अपने पति से कभी वियोग नहीं होता। सरस्वती पूजन की महिमा: श्री दुर्गासप्तशती के उŸार- चरित्र की महिमा के प्रसंग में योगाचार्य महर्षि पंतजलि का चरित्र एवं सरस्वती पूजन का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित है। ‘‘एक बार वेद वेदांग तत्वज्ञ व्याकरण ‘महाभाष्य के रचयिता उपाध्याय ‘पंतजलि’ देवी भक्त ‘कात्यायन’ ऋषि के साथ शास्त्रार्थ में पराजित हो गये।

इससे लज्जित होकर उन्होंने विजय श्री की प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती की इस प्रकार स्तुति की -

‘‘नयो देव्यै महामूत्र्ये सर्वमूत्र्यै नमो नमः। शिवायै सर्वमांगल्यै विष्णुमायै च ते नमः।। त्वमेव श्रद्धा ब्रह्मत्वं मेधा विद्या शिवंकरी। शान्तिर्बाग्मी त्वमेवासि नारायणि नमो नमः।।’’

इस स्तुति से प्रसन्न होकर देवि सरस्वती ने पंतजलि ऋषि को आकाशवाणी में कहा- विप्र श्रेष्ठा! तुम एकाग्रचित होकर मेरे उŸार चरित्र का जप करो, उसके प्रभाव से तुम निश्चित ही ज्ञान प्राप्त करोगे, कात्यायन तुमसे परास्त हो जायेंगे। इस भविष्यवाणी को सुनकर पतंजलि ने सरस्वती देवी की आराधना की और वे पुनः शास्त्रार्थ में कात्यायन को पराजित कर विजयी हुये।

भगवती विष्णु माया की कृपा से वे योगाचार्य महाविद्वान चिरंजीवी हुए। इस प्रकार उपर्युक्त मंत्र का जप बसंत पंचमी से प्रारंभ करके नियमित करने से सरस्वती जी की कृपा से श्रद्धा, बुद्धि, मेधा, विद्या शांति तथा प्रिय वाणी की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है और साधक कल्याण का भागी बनकर चिरंजीवी होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.