चंद्र-कुंडली (लाल किताब) पं. उमेश शर्मा ला ल-किताब पद्धति में चंद्र कुंडली का अपना एक अलग महत्व है। इसमें चंद्र-कुंडली द्वारा पत्नी और महादशा के बारे में जाना जाता है। लाल-किताब के लेखक ने इस पद्धति में महादशा को ज्यादा महत्व नहीं दिया है और चंद्र कुंडली बनाने का अपना एक अलग सिद्धान्त दिया है।
उदाहरण: जन्म- 15 सितम्बर 1985, समय- 15ः20, स्थान- देहली लाल-किताब पद्धति से चन्द्र कुंडली इस प्रकार बनेगी कि जातक की जन्म कुंडली की लग्न संख्या लेकर उसमें चन्द्र स्थापित करके शेष ग्रह वैसे ही लिख देंगे जैसे ऊपर चन्द्रकुंडली में दिये हुए हैं। उपरोक्त कुंडली नं. 1 को अब लाल-किताब पद्धति के अनुसार कुंडली को घुमा कर लग्न में राशि नं.1 ले आयेगें जैसा कि उदाहरण नं0 1अ. में दिखाया गया है। इस प्रकार यह लाल-किताब पद्धति से बनी हुई चन्द्र कुंडली होगी। अब इस चन्द्र कुंडली से उस व्यक्ति की पत्नी का हाल उसी तरह देखेगें जिस तरह जन्म कुंडली से उस व्यक्ति का हाल देखा था। वर्षफल भी उसी हिसाब और ढंग पर देखा जायेगा जैसे जन्मकुंडली से देखते हैं।
35 वर्षीय चक्कर लाल-किताब पद्धति का यह सूत्र अपना अलग ही प्रभाव रखता है। इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह जातक पर अपना विशेष प्रभाव उन वर्षों में करता है जब वह 35 साला चक्कर में दौरा कर रहा होता है। प्रत्येक ग्रह कब और कितने वर्ष तक प्रभावी रहेगा, इसे निम्न तालिका से जाना जा सकता है।
1. बृहस्पति=06 वर्ष।
2. सूर्य =02 वर्ष।
3. चन्द्रमा=01 वर्ष।
4. शुक्र=03 वर्ष।
5. मंगल=06 वर्ष।
6. बुध=02 वर्ष।
7. शनि=06 वर्ष।
8. राहु=06 वर्ष।
9. केतु=03 वर्ष।
इस प्रकार 35 साल में प्रत्येक ग्रह अपना अपना विशेष प्रभाव लिए हुए जातक के जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ता है। जातक की कुंडली में ज्यादा से ज्यादा यह चक्र तीन बार आता हैं। 35 साला चक्र का प्रारम्भ कब होगा इसके दो मत हैं।
प्रथम मत के अनुसार जन्मकुंडली में जो ग्रह लग्न में हो उस ग्रह से 35 साला चक्र का प्रारम्भ होगा। एक से ज्यादा ग्रह होने पर ग्रहक्रम में जो ग्रह पहले आये, उस ग्रह से 35 साला चक्र की शुरुआत होगी।
दूसरे मत के अनुसार 35 साला चक्र का प्रारम्भ जन्म समय के ग्रह से होता है, बाद में बृहस्पति फिर क्रमवार ग्रह अपना अपना चक्कर लगाते हैं। जातक की उम्र और ग्रह की उम्र दोनों अलग अलग बातें हैं। यह जरुरी नहीं कि जातक की उम्र जब 35 वर्ष पूरी हो तो ग्रहों का 35 साला चक्कर भी पूरा हो। यह नीचे दिये गये उदाहरण से जाना जा सकता है।
उदाहरण: जन्मतिथि- 15.09.1985, जन्मसमय- 15ः20, वार- रविवार, स्थान-देहली। अब इसमें जन्मदिन का ग्रह = सूर्य , और जन्म-समय का ग्रह = शुक्र है। अब 35 साला चक्र जन्मसमय के ग्रह शुक्र से आरम्भ होगा। इसका क्रमवार होना निम्न प्रकार से होगा:
शुक्र=03वर्ष
बृहस्पति=06वर्ष
सूर्य =02वर्ष
चन्द्रमा=01वर्ष
शुक्र=03 वर्ष
मंगल=06वर्ष,
शनि=06वर्ष,
राहु=06 वर्ष,
केतु=03वर्ष कुल मिला कर 38 वर्ष हुए।
इस प्रकार ग्रहों का पहला 35 साला चक्कर जातक के जीवन के 38वें वर्ष में पूरा होगा। इस प्रकांर द्वितीय चक्कर बृह$सूर्य आदि क्रम से चलेगा जो 35 वर्ष का होगा क्योंकि दूसरे चक्कर में जन्मसमय के ग्रह से क्रम प्रारम्भ न हो कर, सीधे बृहस्पति से शुरु होगा और फिर इसी प्रकार तीसरा। इस प्रकार जातक के जीवन में यह ज्यादा से ज्यादा तीन बार आता है और जो ग्रह पहले चक्कर में अशुभ फल देते थे वे दूसरे चक्कर में शुभ फल देते है।
लाल-किताब पद्धति का यह भी एक अनोखा सूत्र है। मध्य के ग्रह 35 वर्षीय चक्कर में प्रत्येक ग्रह के लिए नियत समय में अन्य ग्रह भी उसके अन्र्तगत अपना प्रभाव रखते हैं। किस ग्रह के प्रभावी समय में कौन-कौन सा ग्रह अपना प्रभाव कितने समय तक रखता है उसको निम्न तालिका द्वारा जाना जा सकता है। उपरोक्त नियम का उपयोग वर्षफल में भी होता हैं। उदाहरण के लिए मान लें कि वर्षफल में बृहस्पति पंचम भाव में आ जाये तो प्रथम 04 मास वह अपना फल देने की बजाय केतु वर्षफल में जैसा बैठा हो वैसा ही फल देगा अगले 04 मास स्वयं अपना एवं अतिम 04 मास जैसा सूर्य बैठा हो वैसा फल देगा।
मान लें कि वर्षफल में अगर बृहस्पति पंचम भाव में हो और केतु अष्टम भाव में हो तो वर्षफल के पहले चार मास जातक के मामा के लिए अच्छे न रहेगें क्योंकि केतु का पक्का घर है खाना नं0 6 जो कि मामा का कारक भाव हैं। इसी प्रकार से अन्य ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंडली के वर्षफल का विश्लेषण करेगें।
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