श्री सरस्वती पूजन पर्व बसंत पंचमी - एक शुभ मुहूत्र्त बसंत कुमार सोनी लोक प्रसिद्ध मुहूत्र्तों में बसंत पंचमी का पर्व आता है। इसे अनपूछा या अबूझ मुहूर्त की संज्ञा प्राप्त है। लोक व्यवहार की दृष्टि में इस मुहूत्र्त को स्वयम् सिद्ध माना गया है।
यह प्रत्येक शुभ कार्य में बड़ी ही श्रद्धा के साथ अपनाया जाता है। लोग बिना किसी अशुभ चिंतन किये, बिना किसी हिचक के, बगैर पंचांग शुद्धि के ही इसे मान्यता देते हैं। विवाह आदि समस्त मांगलिक कार्य बसंत-पंचमी के दिन सम्पादित करना शुभ एवं सिद्धिप्रद होता है। चारों वर्णों के लोग तथा उनके पूर्वज इस मुहूत्र्त को बड़ी ही श्रद्धा और उमंग के साथ अपनाते आये हैं और सफल भी होते देखे गये हैं।
हिंदू धर्म परंपरा से जुड़ा होने की वजह से इसका अति विशिष्ट महत्व है। यह सरस्वती पूजन का पर्व है। स्कंद पुराण के अनुसार श्री सरस्वती जी के मंदिर में विद्यादान करना पुण्य का कार्य माना गया है। ऐसे मंदिरों में धर्मशास्त्र की पुस्तकों का दान किया जाता था। विद्यालय वगैरह सरस्वती के मंदिर होते हैं। अगर लोग चाहें तो स्वेच्छा से ऐसे स्थलों पर जाकर लेखन पठन सामग्री का जैसे पेन, पेन्सिल, कापी, किताब, बस्ता आदि को दान-स्वरूप विद्यार्थियों के मध्य वितरण कर धर्म लाभ कमा सकते हैं।
यदि यह शुभ कार्य सरस्वती पूजन के महान पर्व बसंत पंचमी के दिन इच्छुक पुण्यात्मा करेंगे तो उनके पुण्य की प्रभा और अधिक चमकने लगेगी। सरस्वती-पूजन-पर्व के दिन शारदा देवी या सरस्वती देवी के मंदिर में वीणा या सितार का दान करने से संगीतज्ञों को गायन-वादन की कला में निपुणता हासिल होने लगती है।
संगीत-प्रेमियों के अतिरिक्त अन्य पुण्यार्थी लोग सरस्वती जी के मंदिर में सरस्वती -कवच, सरस्वती सहस्रनाम स्तोत्र व सरस्वती चालीसा इत्यादि की पोथियों का वितरण कर सरस्वती जी के कृपापात्र बन सकते हैं।
‘‘श्रद्धायादेयम्’’ - यह आदर्श वैदिक शिक्षा है - ‘‘श्रद्धा पूर्वक देना या दान करना चाहिए। न्याय जगत से जुड़े लोग यदि इस पर्व के दिन सरस्वती जी के मंदिर में चांदी का बना हंस ज्ञानदात्री सरस्वती को प्रसाद आदि के साथ भेंट करते हैं तो दाहिने हाथ से किये गये ऐसे कर्म या पुरुषार्थ से सफलतायें उन्हें बायें हाथ में रखी हुई प्रतीत होने लगती हैं। वे सरस्वती जी के कृपा पात्र बन जाते हैं। ऐसे भक्त जातक न्याय विद्या में पारंगत हो जाते हैं और यशस्वी होते हैं।
ऐसे लोगों को सतत छह मास तक सरस्वती जी की पूजा आराधना व स्तुति पाठ करते हुये प्रसन्न करना चाहिये। न्याय के क्षेत्र में यदि बसंत पंचमी के दिन असली प्राकृतिक मोतियों की माला सरस्वती को अलंकरण हेतु अर्पित की जायें तो उसके लिये विजय के द्वार खुल जाते हैं। शिक्षा जगत से जुड़े लोग यदि सरस्वती जयंती के दिन मंदिर में भगवती सरस्वती को श्वेत -वस्त्रालंकार धारण कराते हैं तो उनके कार्य व्यवसाय से जुड़ी हर दिशा उनके लिये हितकारिणी बन जाती है।
कई स्थानों पर अब मूर्तिकार लोग भी अपने व्यय से ही सरस्वती जी की मनमुग्धहारी सुंदर प्रतिमा का निर्माण कर ऐसी प्रतिमा को बसंत पंचमी के दिन ही पहिले से ही निश्चित किये गये किसी भी विद्यालय में, सप्रेम-भेंट कर पुण्य लाभ अर्जित करने लगे हैं। ऐसे विद्यालय के शिक्षक गण और विद्यार्थी गण नित्य भगवती ज्ञान स्वरूपा सरस्वती के दर्शन कर लाभान्वित होते हैं। इस पावन पर्व पर सरस्वती जी को मुकुट छत्र और ध्वजा भेंट करने से श्रेष्ठत्व की प्राप्ति होती है। अज्ञानंधकार दूर होता है।
काली मिर्च सदृश्य छोटे रुद्राक्ष की माला, स्फटिक, पारद अथवा असली मोती की माला भेंट करने से गणना कार्य सुगम हो जाता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि यदि कोई जातक रुद्राक्ष वाली माला बसंत पंचमी के दिन अर्पित करने का इच्छुक हो तो ऐसी माला को वे नव-दुर्गा के मंदिर में माता ब्रह्मचारिणी को चढ़ावें, चूंकि बसंत पंचमी का पर्व माघी गुप्त नवरात्रि की पंचमी तिथि अर्थात् माघ मास के शुक्ल पक्ष की पांचवी तिथि को हर वर्ष पड़ता है।
श्वेत-वर्ण की मालायें सरस्वती जी को प्रशस्त हैं। देवमूत्तियों के ऊपर डुलायी जाने वाली श्वेत वर्ण वाली मयूर पंखों के गुच्छों से निर्मित चंवर बसंत पंचमी के शुभ मुहूत्र्त में सरस्वती जी के मंदिर में भेंट करने वाला व्यक्ति चहुंमुखी प्रतिभा से संपन्न बन जाता है। माघ शुक्ल पंचमी को श्री पंचमी भी कहते हैं। इस दिन विद्या बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी की जयंती मनाई जाती है।
उत्तम विद्या और बुद्धि की कामना लेकर लोग उनका षोडशोपचार, दशोपचार अथवा मात्र पंचोपचार विधि से पूजन करते हैं। इस दिन पूर्वाभिमुख होकर श्वेत वस्त्र धारण कर निम्न मंत्र का दस माला जप करना चाहिये और दशांश हवन भी करना चाहिये और कपूर से आरती करने के पश्चात निम्न प्रार्थना भी करनी चाहिये।
1. मंत्र : ‘‘ ऊँ ऐं वद् वद्् वाग्वादिनी स्वाहा’’
2. प्रार्थना: सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने। विद्यारुपे विशालाक्षी विद्या देहि नमोस्तुते।।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन के अतिरिक्त कामदेव एवं रति का पूजन करने से गृहस्थ जीवन सुखमय बना रहता है। यह पर्व भगवान शंकर और पार्वती जी के पूजन अर्चन से भी जुड़ा है। जगह-जगह पर शिवालयों में मेले भी लगते हैं।
इस तरह से हम यह पाते हैं कि देव कार्य, मंगल कार्य इत्यादि प्रत्येक शुभ कार्यों के लिये बसंत पंचमी की तिथि अपने आप में अति विशिष्ट महत्व को संजोये रहती है।