भारतीय ज्योतिष के संहिता खंड, जिसे मेदिनी ज्योतिष भी कहा जाता है, में सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण का मौसम, वर्षा, खाद्यान्नों की कीमतों, राष्ट्रों एवं राष्ट्राध्यक्षों (राजाओं) के उत्थान-पतन, भूकंप आदि उत्पातों से संबंध बताया गया है। ग्रहण तथा उल्का पात जैसी खगोलीय घटनाओं का हमारे ऋषि मुनि तथा आचार्य हजारों वर्षों से अध्ययन करते आए हैं। उनके इन अनुभवों को पराशर, गर्ग, बादरायण जैसे ऋषियों तथा आचार्य वराह मिहिर ने अपने संहिता ग्रंथों में सहेज कर आने वाली पीढ़ियों को उपकृत किया। वराह मिहिर कृत वृहत संहिता के राहु चाराध्याय का यह श्लोक देखिये। भच्छायो स्वग्रहणे भास्करमर्कग्रहे प्रविशतोन्दुः। प्रग्रहणमतः पश्चश्रेन्द्रोर्भानोश्च पूर्वाद्धर् ात्।। (बृहत् संहिता, रंजन पब्लिकेशन्स, पृष्ठ संख्या 83) अनुवाद: वास्तव में चंद्रग्रहण का कारण पृथ्वी की छाया है।
अर्थात् चंद्रमा जब पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है, तब उसमें ग्रहण लगता हुआ दिखता है। सूर्य ग्रहण में चंद्रमा ग्रहण और उसके प्रभाव ग्रहण का व्यक्ति एवं समष्टि पर निस्संदेह व्यापक प्रभाव पड़ता है। सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण व्यक्ति, समुदाय एवं राष्ट्र को हर दृष्टिकोण से शुभ अथवा अशुभ रूप में प्रभावित करते हैं। 8 अक्तूबर 2014 को चंद्र ग्रहण एवं 24 अक्तूबर 2014 को सूर्य ग्रहण पड़ने वाला है। आइए देखें कि ये ग्रहण हमारे देश तथा विश्व के अन्य राष्ट्रों को किस प्रकार अच्छे या बुरे रूप में प्रभावित कर सकते हैं.... सूर्य निम्न में प्रविष्ट होता है। इसी कारण चंद्रमा का स्पर्श (ग्रहण) पश्चिम की ओर से एवं सूर्य का पूर्व की ओर से नहीं होता। वराह मिहिर के संहिता ग्रंथ का काल ई. 560 के लगभग माना जाता है।
पश्चिम में जहां जोहैनीज़ केपलर ने 1605 ई. में ग्रहण और ग्रह गति के नियमों को प्रतिपादित किया था वहीं भारत के ज्योतिषी तथा खगोलविद् इससे हजारों वर्ष पूर्व इन नियमों को भली भांति जानते थे। अतः हम कह सकते हैं कि ग्रहण तथा ग्रह गति के सिद्धांत कोई पश्चिम से लिया उधार सचिन मल्होत्रा का ज्ञान नहीं अपितु भारतीयों की विश्व को एक महान देन है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार ग्रहण के समय चंद्रमा का पात यानि, राहु-केतु सूर्य के समान या सूर्य से 1800 दूर होने चाहिए। इन तथ्यों से स्पष्ट है की प्राचीन समय में भारतीयों को ज्योतिषीय गणनाओं के द्वारा ग्रहण का समय निकालने तथा उसका अध्ययन करने का अच्छा ज्ञान था। अब हम इस वर्ष अक्तूबर माह में पड़ने वाले पूर्ण चंद्र ग्रहण तथा खग्रास सूर्य ग्रहण की कुंडलियों का विश्लेषण करते हैं। पूर्ण चंद्र ग्रहण 8 अक्तूबर 2014, 16ः20 बजे, दिल्ली की इस कुंडली में चंद्र ग्रहण मीन राशि में पड़ेगा। वराहमिहिर की बृहत संहिता के अनुसार मीन राशि में पड़ने वाला ग्रहण जल से आजीविका कमाने वालों तथा नदियों व समुद्र तटों के निकट रहने वालों के लिए कष्टकारी होता है। ग्रहण के समय की नवांश कुंडली में जलीय राशि मीन उदय हो रही है, तथा सूर्य व चंद्रमा भी जलीय राशियों के नवांश में हैं। अतः चंद्र ग्रहण के तुरंत बाद उत्तर भारत में तापमान में सामान्य से कुछ गिरावट आएगी तथा दक्षिण भारत के राज्यों विशेषकर सीमांध्र तथा तेलंगाना में अच्छी वर्षा होगी। यह चंद्र ग्रहण दक्षिण भारत के तटीय भागों जैसे तमिलनाडु, केरल, सीमांध्र इत्यादि में अच्छे उत्तर-पूर्व मानसून का संकेत है। परंतु जब मंगल धनु राशि से गोचर करता हुआ 21 नवंबर के आस-पास ग्रहण के बिंदु अर्थात् ग्रहण के समय राहु-केतु के अंशों के निकट पहुंचेगा तब उस समय दक्षिण भारत के तटीय राज्यों में चक्रवात, समुद्री तूफान तथा भारी वर्षा का खतरा रहेगा।
24 अक्तूबर 2014 को पड़ने वाला खंडग्रास सूर्य ग्रहण कार्तिक मास की अमावस्या को होगा। चूंकि चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण दोनों भिन्न-भिन्न चंद्र मासों में पड़ रहे हैं, अतः इनके अनिष्ट फल बेहद कम होंगे। खंडग्रास सूर्य ग्रहण के समय सूर्य चंद्र तुला राशि में होंगे, साथ में शनि तथा शुक्र के भी इस वायु तत्व की राशि में रहने से उत्तर भारत 24 अक्तूबर 2014 को पड़ने वाला खंडग्रास सूर्य ग्रहण कार्तिक मास की अमावस्या को होगा। चूंकि चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण दोनों भिन्न-भिन्न चंद्र मासों में पड़ रहे हैं, अतः इनके अनिष्ट फल बेहद कम होंगे। खंडग्रास सूर्य ग्रहण के समय सूर्य चंद्र तुला राशि में होंगे, साथ में शनि तथा शुक्र के भी इस वायु तत्व की राशि में रहने से उत्तर भारत इन तथ्यों को संबंधित कुंडलियों में जांचने के पश्चात अब ग्रहण के समय राहु-केतु के अंशों को नोट कर लें।
तत्पश्चात यह देखें की गोचर में किस समय मंगल इन ग्रहण के अंशों पर दृष्टि डालता है या स्वयं ग्रहण के बिंदु पर गोचर करता है। आप पायेंगे कि मौसम में परिवर्तन, राजनैतिक पार्टियों का उत्थान या पतन, युद्ध, महत्वपूर्ण व्यक्तियों का उत्थान व पतन, राष्ट्रों का उत्थान व पतन जैसी घटनाएं ठीक उसी समय घट रही हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि यदि शनि या सूर्य जैसे पाप ग्रह भी ठीक उसी समय ग्रहण के इस बिंदु को प्रभावित कर रहे हों तब यह घटनाएं अधिक तीव्रता से घटती हैं। परंतु यदि गुरु इस ग्रहण के बिंदु को देखे तब वह अशुभता में निश्चित रूप से कमी लाता है। भारत तथा विश्व पर अक्तूबर में पड़ने वाले ग्रहण का प्रभाव स्वतंत्र भारत की वृषभ लग्न की कुंडली (15 अगस्त 1947, 00.00 बजे दिल्ली) पर यह ग्रहण 5/11 के अक्ष पर पड़ेगा।
ग्रहण के समय राहु-केतु यदि 5/11 या 3/9 के अक्ष पर हो तो यह अच्छा माना जाता है। कुंडली में 6/12 के अक्ष पर भी राहु-केतु का ग्रहण के समय गोचर अच्छा है। भारत की कुंडली में सूर्य-शुक्र की विंशोत्तरी दशा का समय आर्थिक उन्नति, शेयर बाजार में उछाल तथा पड़ोसी राष्ट्रों में सीमा विवाद का समय होगा। शुक्र लग्नेश व षष्ठेश होकर तृतीय स्थान में सीमा विवाद दर्शाता है। विश्व के अन्य देशों में प्रभाव: राशि कन्या से संचालित देश ब्राजील में अक्तूबर माह में सत्ता परिवर्तन का योग है। इजरायल की कुंडली (14 मई 1948, शाम 4 बजे, तेल अवीव) कन्या लग्न की है। लग्न व सप्तम पर पड़ने वाला ग्रहण इस राष्ट्र की विदेश नीति को प्रभावित करेगा। वर्तमान में इजरायल की चंद्र-शुक्र की विंशोत्तरी दशा भी यही संकेत दे रही है। अमेरिका की कुंडली (4 जुलाई 1776, 10ः21 बजे सुबह, फिलेडेल्फिया) सिंह लग्न की है।
2/8 के अक्ष पर पड़ने वाला यह ग्रहण तथा मंगल-शनि की विंशोत्तरी दशा अमेरिका की अर्थव्यवस्था तथा युद्ध में हानि का संकेत है। इराक और सीरिया में दखल से बच रही ओबामा सरकार को अक्तूबर के बाद मजबूरन खाड़ी देशों में अपना सैन्य अभियान शुरू करना पड़ेगा जो कि केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित होगा। अमेरिका की कुंडली में कन्या राशि पर षष्ठेश व सप्तमेश शनि स्थित है, जिस पर राहु का गोचर उसे एक और युद्ध की ओर ले जाएगा। चीन की कुंडली (1 अक्तूबर 1949, 15ः15 बजे, पेकिंग) मकर लग्न की है। ग्रहण के समय राहु-केतु का अक्ष 3/9 भावों पर पड़ेगा जहां जन्म के राहु-केतु स्थित हैं। चीन की कुंडली में अष्टमेश सूर्य कन्या राशि में स्थित है, जिस पर राहु का गोचर ग्रहण के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में इस राष्ट्र को कुछ विवादों की ओर धकेलेगा।
वर्तमान में चीन की कुंडली में शनि-राहु की विंशोत्तरी दशा चल रही है। शनि लग्नेश होकर आठवें घर में है तथा राहु तृतीय भाव में पड़ोसी राष्ट्रों से सीमा विवाद दर्शाता है। अक्तूबर में पड़ने वाले ग्रहण के बाद चीन अपने रूख में अधिक आक्रामकता लायेगा जो कि वर्ष 2015 में भी जारी रहेगी। भारत, जापान, ताईवान, वियतनाम तथा फिलीपींस जैसे राष्ट्रों को अपनी थल तथा जलीय सीमाओं में विशेष सतर्कता बरतनी होगी। रूस की कुंडली (12 जून 1990, 13ः45 बेज, मास्को) कन्या लग्न की है। ग्रहण के समय राहु-केतु का अक्ष रूस के लग्न-सप्तम भावों को प्रभावित करेगा। सप्तम भाव मेदिनी ज्योतिष में किसी राष्ट्र की विदेश नीति को दर्शाता है।
रूस के सप्तम भाव में स्थित मंगल पर राहु का गोचर ग्रहण के बाद इस राष्ट्र की विदेश नीति में आक्रामकता लाएगा। वर्तमान में राहु-शुक्र की विंशोत्तरी दशा रूस पर पश्चिमी राष्ट्रों के द्वारा और अधिक कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का संकेत दे रही है। रूस की कुंडली में शुक्र द्वितीयेश होकर अष्टम भाव में बैठा है। ग्रहण के बाद राहु-शुक्र की दशा में रूस पर यूरोप व अमेरिका द्वारा और अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। रूस की यूकेन के साथ तना-तनी वर्ष 2015 में और अधिक बढ़ जायेगी। ईरान की कुंडली (1 फरवरी 1979, 09ः30 सुबह, तेहरान), जो कि उसके सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी की निर्वासन से वापसी के बाद सत्ता संभालने के समय की है, में ग्रहण लग्न व चंद्रमा दोनों पर पड़ेगा।
मीन लग्न की इस कुंडली में चंद्रमा लग्न में स्थित है जिस पर केतु का गोचर है। शुक्र में राहु की विंशोत्तरी दशा 19 नवंबर 2014 से आरंभ होगी। ठीक उसी समय मंगल धनु राशि से गोचर करता हुआ ग्रहण के बिंदु जो कि मीन राशि में है, पर दृष्टि डालेगा। ईरान की कुंडली में शुक्र अष्टमेश होकर दशम भाव में है, तथा राहु छठे घर में वक्री शनि से युत तथा मंगल से दृष्ट है। इस राष्ट्र को प्राकृतिक आपदा तथा पड़ोसी देशों जैसे इजरायल व सीरिया के साथ खराब राजनैतिक संबंधों की मार झेलनी पड़ेगी। वर्ष 2015 में ईरान और इजरायल के बीच तनातनी बढ़ जायेगी। अक्तूबर 2014 के ग्रहण इराक व सीरिया में भी हिंसात्मक सत्ता परिवर्तन का ज्योतिषीय संकेत दे रहे हैं।