तंत्र रहस्य और साधना में सफलता असफलता के कारण
तंत्र रहस्य और साधना में सफलता असफलता के कारण

तंत्र रहस्य और साधना में सफलता असफलता के कारण  

शुभेष शर्मन
व्यूस : 15863 | अकतूबर 2014

तंत्र अपने आप में एक रहस्य का परिचायक है। भगवान शिव ने मनुष्य के कल्याण के लिए कुछ ऐसी विद्याओं का निर्माण किया जिनके माध्यम से मानव ही नहीं देवता और राक्षसों के द्वारा गुप्त विद्याओं के प्रयोग उनकी साधना के माध्यम से ईश्वर तत्व को भी प्रभावित किया जा सकता है। शास्त्रों में और श्री दुर्गा सप्तशती में आया है’’ अति गुहत्रम् देवी देवानाम अपि दुर्लभ’’ रुद्रियामल तंत्र में आकाश भैरव कल्प शक्ति तंत्र, दत्तात्रेय तंत्र, भैरव तंत्र, शाबर तंत्र, अघोर साधना आदि आदि। परंतु सभी तंत्रों के बारे में न तो बताना संभव है न ही जानना संभव है। कोई भी साधक अपने जीवन में रहस्यों के ऊपरी भाव को तो समझ पाता है परंतु कुछ अथा रहस्यमय को जान पाना उस देव की कृपा के बिना संभव नहीं है। जब तक हम पूजा, साधना के नियमों को निजी आचरण एवं तंत्र विशेष के सिद्धांत के अनुसार जीवन में कठोरता के साथ दृढ़ संकल्प के साथ नहीं अपना पाते। जब हम उन निर्देशित नियमों को जीवन में अत्यंत सावधानी पूर्वक अपना करके साधना का मार्ग प्रारंभ करते हैं और उसके पुरूष चरण विधि को पूरा कर पाते हैं तब भी वर्ग सिद्धांत के अनुसार किस राशि के व्यक्ति को किस देवता की पूजा करनी चाहिए प्रथम दृष्टया इसको जानना अत्यंत आवश्यक है।

पुलिन्दानी प्रयोग के माध्यम से हम जान सकते हैं कि हमें इस देवता की उपासना करनी चाहिए या नहीं अथवा किस देवता की करनी चाहिए यह प्रयोग विधि हम यहां दे रहे हैंः अथ पुलिंदिनी प्रयोग अस्य पुलिंदिनी मंत्रस्य शंकरो ऋषि जगती छंदः देवी पुलिंदिनी देवता ईं बीजं स्वाहा शक्ति पुलिंदिनी प्रसादस्य सिद्धयर्थे विनियोगः। शंकर ऋषये नमः शिरसि जगती छंदसे नमः मुखे देवी पुलिंदिनी देवताय नमः हृदये ईं बीजाय नमः गुह्ये स्वाहा शक्तये नमः पादयोः आं - अंगु. नमः - हृदयाय नमः इं - कनि. नमः - शिरसे स्वाहा उं - मध्य. नमः - शिखायै वौषट् ऐं - अना. नमः - कवचाय हुं औं - कनि. नमः - नेत्रत्राय वौषट् अः करतलकर दृ. नमः - अस्त्रायफट मंत्र: ईं ओं नमो भगवति श्रीं ह्रीं शारदा देवी क्रीं (अनन्तातुलभे देहिं देहि एह्यागच्छागच्छागन्तुकं हृदयस्थं कार्यं सत्यं ब्रूहिं सत्यं ब्रूहि पुलिन्दिनि ईं स्वाहा। पंचाशत् शत मात्र जप से मंत्र सिद्ध होता है। तदांश तर्पण हवन आदि शिष्टांग करने चाहिए। कार्याकार्य जानने के लिए रात्रि में 108 जप करके सोने से अंबिका स्वप्न में बता देती है। वैसा ही आचरण करें। किसी प्रकार का भय न हो। आप किस देवता को अपनी ओर देखने के लिए साधना के माध्यम से प्रभावित कर सकें इसके लिए वर्ग सिद्धांत द्वारा मूल्यांकन आवश्यक है।

परंतु शास्त्र कहता है कलौ चण्डी विनायको’’ कलयुग में ‘‘गणपति और शक्ति आराधना विशेष फलदायी है। तंत्र के माध्यम से आप देवताओं के साथ एक विशेष परिस्थिति तक संपर्क साध सकते हैं। इसके लिए सबसे प्रथम आवश्यक है सही मार्गदर्शन जो कि इस काल में सरल नहीं है। योग्य गुरु जिसका जीवन चरित्र अत्यंत श्रेष्ठ हो, योग्य स्थान जैसे कि योग्य गुरु आवश्यक है वैसे ही योग्य शिष्य की भी आवश्यकता रहती है। अधिकतर लोग तंत्र को सहजता से बहुत जल्दी देवता को अपनी कामनाओं को प्राप्त करने का साधन मानते हैं। परंतु यह उतना ही कठिन है जितना एक तैरने वाले व्यक्ति के लिए गंगा की धारा में विपरीत दिशा में तैरना। सफलता-असफलता के बीच में बहुत सारे बिंदु हैं। परंतु उन बिंदुओं की चर्चा करने से पूर्व कुछ ऐसी चर्चा करना चाहते हैं जैसे चिंतन के प्रारंभ मंे तंत्र और रहस्य तंत्र शब्द प्रयोग किया गया है। रहस्य का अर्थ है जो छिपा हुआ है अथवा उस छुपे हुए को ढूंढ़ना जो सरल नहीं है। इस रहस्य को जानने के लिए जीवन में कुछ ऐसे नियमों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे निजी आत्मा का साक्षात्कार हो। प्रथम द्रष्टा सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में उठकर शुद्ध जल से स्नान कर भगवती वेदमाता गायत्री और माता सरस्वती की उपासना और संध्योपासना अत्यंत आवश्यक है।

इसके लिए हम एक प्रयोग विधि यहां दे रहे हैंः अस्य श्री भारती मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि गायत्री छंदः देवी महावाणी ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति सर्वशब्दार्थ विज्ञानसिध्यर्थे सारस्वताप्तये योगः। न्यास ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि। गायत्री छंद से नमः मुखे। महावाणी देवताये नमः हृदये। बीजाय नमः गुह्ये। स्वाहा शक्तये नमः पादयोः। अंग न्यास सं अंगुष्ठाभ्यां नमः । सं हृदयाय नमः सां तर्जनीभ्यां नमः। सां शिरसे स्वाहा सीं मध्यमाभ्यां नमः। सी शिखायै बाॅसट सूं अनामिकाभ्यां नमः। सूं कवचाय हुम् सै कनिष्ठिकाभ्यां नमः। सैं नेत्रत्रयाय वौसट सौं करतलकर पृष्ठाभ्यांनक।। सौंः आस्त्रायफट्। ऊँ सं सरस्वति स्वाहा। नव नलिन निरूढा वल्लभ पद्मजस्य द्युतिविहसित- चंद्रोद्दाम कांतिप्रसन्ना। विहरतु मम चित्ते सर्वंबोध प्रदात्री वितरतु सुकवित्वं सर्वलोके प्रसिद्धम्।। न्यास ध्यान पूर्वक सात हजार जप करें। उसके दशांश क्रम से तर्पण आहुति भोजन करावें। उसके पश्चात जो सौ बार नित्य जपता है उसे सफलता मिलती है। सूर्योदय पूर्व शुद्ध आसन, साफ वस्त्र जिस प्रकार के देवता की साधना हो उसी प्रकार के वस्त्रों के चयन, राजसी, तामसी, सात्विक तत्पश्चात ऊँ सोहम के जप अजपाजप द्वारा ब्रह्म से संबंध को जोड़ना। प्राणायाम, भैरव आज्ञा इन सब चीजों में अगर हमें सफलता प्राप्त करनी है तो तंत्र के सिद्धांत में भैरव देव की आज्ञा नितांत आवश्यक है।

भैरव आज्ञा के साथ-साथ दिग्बंध जिसका सिद्धांत ‘‘आपाकरमंतु भूतानि पिशाचा सर्वतो दिशम .. आदि इन सब सावधानियों के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक, वातावरण, आसन, भोजन- शारीरिक आदि शुद्धियां भी आवश्यक हैं। शारीरिक शुद्धि में शौच आदि से निवृत्त हो पवित्र वस्त्रों को धारण कर मानसिक शुद्धि में निरंतर देवता के बीज मंत्रों का निरंतर अभ्यास, वातावरण का सिद्धांत है एकांतवास, भूमिशयन, काम वासना का चिंतन ना होना। आसन- पवित्र आसन जिसमें मृग चर्म व्याघ्र चर्म हो परंतु इस समय इन सब चीजों की उपलब्धि संभव नहीं है तो कुशा या ऊन का आसन विशेषतः रंग भी अपनाया जा सकता है। पर सबके लिए लाल रंग के ऊन के आसन का सिद्धांत सर्वमान्य है। भोजन शुद्धि में विशेषतः देवान्न का भोजन करना जिसमें यव, चावल और तिल, कुएं का जल पीना अथवा पवित्र नदियों के जल का उपयोग करना। इन सब सावधानियों के साथ-साथ अत्यंत सावधानी पूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन तथा सदाचरण जिसमें मिथ्या भाषण, चुगली ना करना और उस परम पिता परमेश्वर की एक मात्र सत्ता पर विश्वास रखना तथा अपने विचारों में सदा कार्य की सफलता का चिंतन करना सर्वोपरि हैं।

इन सबके साथ मंत्रशापोदवार मंत्र का उत्कीलन अथवा ऐसे मंत्रों का जप करना जो कीलित नहीं हैं, उनमें मुख्यतः ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमो नारायणय, मात्रै नमः आदि मंत्रों का जप निरंतर आवश्यक है। सभी प्रकार के अनुष्ठानों के प्रारंभ में साधना की सफलता के लिए गुरु आज्ञा और गणपति अथर्वशीष का पाठ भी करें तो विशेष सफलता मिलती है। मारण, मोहन, उच्चाटन, स्थम्भन, आकर्षण और विद्वेषण सभी षट्कर्म भगवान शिव ने मनुष्य को विशेष परिस्थिति में लाभ देने के लिए बनाये हैं। प्रत्येक मनुष्य को अत्यंत विषम परिस्थितियों में ही इन कार्यों का सहारा लेना चाहिए क्योंकि शास्त्र कहता है लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, यश-अपयश, विधि हाथ हैं परंतु तंत्र के माध्यम से इन कार्यों को परिवर्तित भी किया जा सकता है। भगवती आद्य शक्ति पराम्बा जगत जननी महिषासुर मर्दनी चंड मुंड विनाशनी सर्व कल्याण प्रद कल्याणदायिनी समस्त लोक रूपा आदि नामों में रहस्य के साथ उनका फल भी प्रकट होता है। अगर हम इसे समझ पाएं तो सबका कल्याण संभव है। सर्व रूप मयी देवी सर्वम देवी मयम जगत अतोहम विश्व रूपात्वम् नमामि परमेश्वरी यही जानकर यही समझ कर उनकी अनुकंपा से कुछ बिंदुओं पर चर्चा करने का प्रयास किया है।

भगवती ललितांबा सबका कल्याण करें और हमारा मार्ग प्रशस्त करें। वैसे तो इस रहस्य को न जान पाना संभव है और न बता पाना संभव हैं। जब तक वो जगत जननी-जगतपिता भगवान शिव पार्वती इस रहस्य को जानने के लिए आप पर कृपा न करें। उनकी कृपा हो तो फिर सब संभव है यह वो स्वयं कहते हैं। किसी भी कार्य की सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है कर्म का उचित होना जिससे उसके उद्देश्य और परिणाम दोनों श्रेष्ठ हों वही कर्म उचित माना गया है। सभी सफलताओं और साधनाओं के मूल में व्यक्ति का उद्देश्य प्राप्त करना है क्यूंकि जितने भौतिक सुख हैं इस भौतिकवाद के समय में लक्ष्मी के बिना संभव नहीं है इसलिए माता लक्ष्मी खुश हों इसके लिए एक प्रयोग विधि यहां प्रस्तुत है जिससे सभी लोग लाभ प्राप्त करेंगे यह अचूक एवं सिद्ध प्रयोग है।

लक्ष्मी प्रयोग सर्वसौभाग्य वर्धक लक्ष्मी मंत्र ‘आयुष्कर, अमोघ, वशीकरण व जयवधविनि.-अस्य लक्ष्मी मंत्रस्य वामेशो ऋषिः, बृहती छंद ! महालक्ष्मी देवता श्री बीजं क्लीं शक्ति सर्वसमृद्धये सर्वलोश वशीकारे विनियोगः। श्रां अंगुष्ठाभ्याम नमः हृदयाय नमः श्रीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे नमः श्रूं - मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वैषट् श्रैं - अनामिकाभ्याम् नमः कवचायहुम श्रौं - कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्रत्रयाय बौसट श्रः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फुट ध्यानम् या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि तटी पद्मपत्रायताक्षी गंभीरावर्त नाभि स्तनभरनर्मित शुभ्र वस्त्रोत्तरीया। लक्ष्मी र्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मनिगण खचितैः स्नापिता हेम कुंभै र्नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगलस्ययुक्ता।। मंत्र: ओं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी ऐह्योहि सर्वसौभाग्यं देहि मे स्वाहा। संख्या - 24 हजार / दशांश हवन तर्पण भोजन प्रतिदिन प्रातः 108 जप करने से सर्वसमृद्धि प्राप्त होती है।



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