लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त

लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त  

मनोज कुमार
व्यूस : 9130 | अकतूबर 2014

दीपावली धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का पर्व माना जाता है। लक्ष्मी से तात्पर्य है अर्थ। यह अर्थ का पर्व है। गणेश, दीप पूजन और गौ द्रव्य पूजन इस पर्व की विशेषताएं हैं। लक्ष्मी पूजन प्रारंभ करने से पूर्व पूजा वेदी पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र या मूर्ति, बही-खाते, कलम, दवात आदि भली प्रकार सजा कर रख देना चाहिए तथा आवश्यक पूजा की सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए। पूजन के लिए उपयुक्त मुहूर्त: दीपावली के दिन महालक्ष्मी के पूजन् के लिए स्थिर लग्न का चयन किया जाता है। वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुंभ स्थिर लग्न हैं। स्थिर लग्न के साथ ही उपयुक्त चैघड़िया का चयन करना भी अनिवार्य है।

शुभ एवं उपयुक्त चैघड़िया हैं- चर, लाभ, अमृत एवं शुभ। इस वर्ष दीपावली 23 अक्तूबर को है। इस वर्ष दीपावली के दिन यानि 23 अक्तूबर 2014 को प्रदोष काल में स्थिर लग्न (वृषभ राशि) सायं 18ः58 से 20ः53 (दिल्ली) तक रहेगा। इसलिए सूर्यास्त से सायं 20ः53 तक का प्रदोष काल विशेष रूप से श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजन के लिए तथा सेवकों को वस्तुएं दान देने के लिए शुभ रहेगा। यही समय द्वार पर स्वस्तिक और शुभ-लाभ का सिंदूर से निर्माण करने के लिए तथा मिठाई वितरण के लिए भी सर्वथा उपयुक्त है।

पूजन विधि

1. शुभ मुहूर्त का चयन करके पूर्वाभिमुख बैठकर सभी देवी-देवताओं, कलश एवं यंत्रों की स्थापना करें।

2. पवित्रीकरण: बायें हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढंक लें तथा निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वांवस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।। ऊँ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।

3. आचमन: मन, वचन और अंतःकरण की शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ तीन बार आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन करें।

ऊँ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।। 1।।

ऊँ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।।2 ।।

ऊँ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः क्षयतां स्वाहा।। 3 ।।

4. इसके उपरांत प्राणायाम, न्यास, आसन शुद्धि, चंदन धारण, रक्षा सूत्रम, संकल्प, कलश पूजन आदि का विधान है किंतु आम गार्हस्थ्यजनों के लिए इतना कर पाना तथा संस्कृत के श्लोकों का इतना उच्चारण कर पाना शायद मुश्किल होगा। अतः आचमन के पश्चात चंदन धारण करें, धरती माता का स्पर्श करें, तथा इसके उपरांत निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ संकल्प करें।

मंत्र: विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमदभवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वत मन्वन्तरे भूर्लोके, भरतखंडे, आर्यावर्तेकदेशान्तर्गते, मासानां मासोत्तमेमासे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस्यां तिथौ----वासरे -गोत्रोत्पन्नः ------नामाः अहं .... सत्प्रवृत्तिसंवर्धनाय, लोककल्याणाय आत्मकल्याणाय, वातावरणपरिष्कराय, भ् ा िव ष् य ा े ज् ज व ल क ा म न ा प ू र्त य े श्रुति-स्मृति -पुराणोक्तफलप्राप्तयर्थं दीर्घायुरारोग्य-पुत्र-पौत्र-धन-धान्या दिसमृद्ध्यर्थे श्रीमहालक्ष्मीदेव्याः प्रसन्नार्थं लक्ष्मीपूजनं करिष्ये/ करिष्यामि।

संकल्प के श्लोक यदि संस्कृत में पढ़ना कठिन लगे तो आप हिंदी में भी निम्नांकित बातें बोलकर संकल्प ले सकते हैं- मैं (अपना नाम), गोत्र (अपना गोत्र बोलें), भारतवर्ष के राज्य (अपने राज्य का नाम) स्थान (जहां आप रहते हैं, उस स्थान का नाम) कुल (अपने कुल का नाम), कार्तिक मास की अमावस्या तिथि एवं दिवस मंगलवार को देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु श्री लक्ष्मी पूजन करने का संकल्प लेता/लेती हूं।

5. कलश पूजन् एवं दीप प्रज्ज्वलन ः ऐसी मान्यता है कि कलश में ही देवी-देवताओं का वास होता है। सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें तथा मन में ऐसी भावना लायें कि आप जिन देवी-देवताओं का आह्वान कर रहे हैं, वे इसी कलश में आकर निवास करेंगे। निम्नलिखित मंत्रोच्चार के साथ कलश में अक्षत एवं पुष्प डालें। ऊँ भूर्भूवः स्वः कलशस्थ देवताभ्यो नमः । गंधं, अक्षतं, पत्रं, पुष्पं समर्पयामि। दीपक को हम ज्ञान के प्रकाश का पुंज मानते हैं। दीपक हमारे अंतर्मन में भरे हुए अंधकार और अज्ञान का शमन करने वाला देवताओं की ज्योतिर्मय शक्ति का प्रतिनिधि है।

इसे ईश्वर का प्रतिरूप मानकर हमें इसकी पूजा करनी चाहिए। इस विश्वास के साथ कि ये दीपक हमारे मन के अंधकार को दूर कर सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करेंगे, एक बड़ा घृत दीपक तथा उसके चारों ओर अपनी श्रद्धानुसार ग्यारह, इक्कीस या अधिक दीपक तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करें तथा हाथ में अक्षत, पुष्प, कुंकुम आदि लेकर हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से ध्यान करें: भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं अन्धकारविनाशक। इमां मया कृतां पूजां गृहणान्तेजः प्रवर्धय।। इसके पश्चात हाथ में ली हुई चीजों को चढ़ा दें।

6. गणेश जी का आह्वान एवं पूजन: हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत, जल आदि लेकर निम्न मंत्रों के साथ गणेश जी का ध्यान तथा आह्वान करें: अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः। सर्वविघ्नहरस्तरमै गणाधिपतये नमः।। ऊँ श्री गणेशाय नमः आवाह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।। इसके उपरांत गंध, अक्षत आदि गणेश जी को चढ़ा दें।

7. माता गौरी का आह्वान: पुनः हाथ में गंध, पुष्प आदि सभी सामग्रियां लेकर निम्न मंत्रों के साथ माता गौरी का ध्यान एवं आह्वान करें तथा मंत्र पढ़ने के उपरांत गंध, पुष्प आदि उन्हें समर्पित कर दें। सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। ऊँ श्री गौर्ये नमः। आवाह्यामि, स्थापयामि। गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।।

8. श्री महालक्ष्मी पूजन्: हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत, दुर्बा आदि सभी सामग्रियों को लेकर निम्नलिखित मंत्रों के साथ महालक्ष्मी जी का ध्यान एवं आह्वान करके इन सामग्रियों को लक्ष्मी जी को समर्पित कर दें। ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णारजतस्रजाम। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। ऊँ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि। हाथ में पुनः इन सामग्रियों को लें तथा निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ महालक्ष्मी को समर्पित कर दें। ऊँ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमन पगामिनीम। यस्यां महालक्ष्म्यै नमः। आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि।

इसके उपरांत श्रीसूक्त अथवा महालक्ष्मी अष्टकम् या दोनों का पाठ अपनी श्रद्धा एवं क्षमतानुसार 1 बार या 11 बार करें। पाठकों की सुविधा के लिए श्रीसूक्त एवं महालक्ष्म्यष्टकम् की ऋचाएं उपहार में दी हुई ‘नित्य स्तुति संग्रह’ में संलग्न की गयी है। पाठ के उपरांत श्री गणेश एवं लक्ष्मी जी की आरती करें तथा माता से अपनी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद मांगें। अंत में हवन करें। हवन के समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.