हमारे धर्म शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि मृगों का स्नेह आकर्षक होता है। भार वाहन की क्षमता हमें ऊंट से सीखनी चाहिए। भूमि - ज्ञान हमें मूषक से लेनी चाहिए तथा नभ ज्ञान हमें पक्षियों से लेना चाहिए। गज-अश्व को विशेष रुप से पूजा जाता है। नीलकण्ठ को विष्णु रूप होने के कारण प्रणाम किया जाता है। गरुड़ की वंदना ध् ाार्मिक महत्व रखती है। पितृ पक्ष में काग का आह्नान किया जाता है। मंत्र सिद्धि में उल्लू पूजन किया जाता है। विशेष धार्मिकोत्सव में शुक का पूजन किया जाता है। देवी देवताओं के वाहन के रूप में शेर, गज, उल्लू, हंस, मयूर, मूषक, गरुड़, कबूतर, भैंसा तथा श्वान आदि पूज्य माने जाते हैं। महाभैरव के पूजक कुत्ते को मिठाई खिलाते हैं और उसे विशेष स्नेह दिया जाता है। नंदी देव नंदी बैल न सिर्फ भगवान शिव का वाहन है बल्कि उनके गणों में सर्वश्रेष्ठ भी माने गये हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर का नंदी को यह वरदान है कि जहां नंदी का निवास होगा वहां उनका भी निवास होगा। इसीलिए नंदी का पूजन शिव पूजन के समान है तथा यह भगवान शिव के पूजन का एक अभिन्न अंग है। नंदी को पुरुषार्थ का प्रतीक माना गया है। वे सदैव अपने नेत्र अपने इष्ट पर रखते हंै।
नंदी के दर्शन कर उनके सींगों को स्पर्श कर माथे पर लगाया जाता है। यह आराधक की सद्बुद्धि, विवेक, ज्ञान एवं विवेक जागृत करता है। गजराज पुराणों में अनेक स्थानों पर अलौकिक गज का उल्लेख हुआ है। यह माना जाता है कि ऐरावत नाम का यह गज समुद्र मंथन के समय सागर से उत्पन्न हुआ है। इसके दर्शन मात्र से व्यक्ति और देव दोनों धन्य होते हैं। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकाली गई 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया था। लक्ष्मी पूजा में इसे शामिल करने से देवी लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न हो अपने भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। विजयदशमी के दिन गज एवं अश्व की पूजा राज-परिवारों की पूजा का अहम भाग है। गजराज के नित्य दर्शन पूजन कर आप स्वयं को धन्य कर सकते हैं। कुत्ता भैरव देव के नाम जप से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। भैरव देव की पूजा करते समय कुत्ते की पूजा या कुत्ते को भोजन देने का विशेष विधि-विधान है। काल भैरव को काशी के कोतवाल का नाम दिया जाता है।
यदि आप पर शनि साढ़ेसाती/ढैय्या का प्रकोप चल रहा है या फिर आपकी जन्म कुंडली में कालसर्प योग या इसी प्रकार का अन्य कोई अशुभ योग बन रहा है तो इसके निवारण के लिए आपको भैरव जी की आराधना करनी चाहिए। भैरव आराधना से शनि, राहु, केतु का प्रकोप शांत होता है। आराधना का दिन शनिवार या मंगलवार नियुक्त करें। भैरव आराधना के बाद कुत्ते का दर्शन किया जाता है। उल्लू हिन्दू संस्कृति में उल्लू का विशेष महत्व है। यह सर्वविदित है कि उल्लू धन की देवी लक्ष्मी जी का वाहन है। घर-परिवार या व्यापारिक क्षेत्र में धन आगमन एवं स्थिरता को बनाये रखने के लिए दीपावली की रात्रि उल्लू का पूजन दर्शन भी किया जाता है। महालक्ष्मी जी धन-धान्य प्रदान करने वाली देवी कही गई हैं। और लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर ही दिवाली की शुभ रात्रि पर आपके यहां आगमन करती हैं। इस रात्रि में उल्लू दर्शन करना सौभाग्य व धन का सूचक माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी वाहन उल्लू तंत्र शक्तियों का स्वामी कहा गया है। महालक्ष्मी मूलतः रात्रि की देवी हैं। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उल्लू पर विराजमान रूप में लक्ष्मी जी का दर्शन पूजन किया करें। लक्ष्मी प्रतिमा के साथ उल्लू की प्रतिमा का पूजन करना शुभ फलों को बढ़ाता है।
यही कारण है कि लक्ष्मी जी को उल्लूक वाहिनी कहा जाता है। उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी अप्रत्यक्ष धन अर्थात काला धन कमाने वाले व्यक्तियों के घरों में उल्लू पर सवार होकर जाती हैं। मूषक हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है। पूजा-पाठ हो या विधि-विधान, हर मांगलिक, वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम भगवान गणपति का सुमिरन करते हैं। यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक हैं। गणेश शब्द का अर्थ है गणों का स्वामी। श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए श्री गणेश वाहन मूषकराज की प्रतिमा का पूजन-दर्शन भी गणपति पूजन दर्शन के समान फल देता है। दोनों का एक साथ पूजन दर्शन किया जाय तो अद्भुत फल प्राप्त होते हैं। गणेश देव के स्मरण मात्र से ही संकट दूर होकर शांति और समृद्धि आ जाती है। गणेश पुराण के अनुसार प्रत्येक युग में गणेश जी का वाहन अलग रहा है - सतयुग - भगवान गणेश जी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा इस युग में उनका नाम विनायक है। त्रेतायुग - श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग - द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं।
इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है। कलियुग - कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है। श्री गणेश के निम्न मंत्र का जाप करने से सभी बाधाओं का अंत होता है। ¬ गं गणपतये नम: इस बार जब आप गणपति आराधना करें तो मूषक राज की प्रतिमा का पूजन-दर्शन करना न भूलें। कछुआ धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु न कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। पद्म पुराण के अनुसार कच्छप के अवतरण में भगवान विष्णु ने मंदरमंद्रांचल पर्वत तथा श्री वासुकि अर्थात शेषनाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चैदह रत्नों की प्राप्ति की इसलिए उसकी पूजा-अर्चना भी की जाती है और इसे शुभ माना जाता है। कछुए को घर में रखने से कामयाबी के साथ-साथ धन-दौलत का भी समावेश होता है। इसे अपने ऑफिस या घर के उत्तर दिशा में रखें। कछुए के प्रतीक को कभी भी बेडरूम में न रखें। कछुआ की स्थापना हेतु सर्वोत्तम स्थान ड्राईंग रूम है। कछुए के प्रतीक को घर में रखने से आर्थिक उन्नति होती है।
मत्स्य मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार हंै। देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु जी की धर्मपत्नी हैं। श्री विष्णु के किसी भी रूप की पूजा करने से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मत्स्य अवतार के विषय में दो मान्यताएं प्रचलित हैं। जो इस प्रकार हैं- मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार हैं। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि के नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया। मोर हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान मुरुगन या कार्तिकेय का वाहन मोर है। मोर के पंख को भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मुकुट पर सुशोभित किया है। पुराणों में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था।
अपनी पराजय पर सिंहामुखम ने माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपनी माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया तथा दूसरे को मोर बनाकर अपना वाहन बना लिया। भगवान श्री कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा-आराधना उनके वाहन मोर के साथ की जाती है। कहा जाता है कि इसका सांकेतिक अर्थ यह भी है कि कार्तिकेय ने मन रूपी चंचल मयूर को साध लिया है। सिंह दुर्गा को सिंहवाहिनी ही कहा जाता है और सिंह स्वयं शक्ति, बल, पराक्रम, शौर्य और क्रोध का प्रतीक है। शेर की यह सभी विशेषताएं मां दुर्गा के स्वभाव में मौजूद हैं। शेर की दहाड़ की ही तरह मां दुर्गा की हुंकार भी इतनी तेज है, जिसके आगे कोई भी आवाज सुनाई नहीं दे सकती। सिंह दुर्गा का वाहन है। सिंह शौर्य, विजय और आक्रामकता का प्रतीक है। संकेत यूं है कि बुराइयों पर विजय पाने के लिए आक्रामक और क्रूर होना भी जरूरी है। दुर्गा आराध् ाकों को माता का पूजन करते समय प्रतिमा रुप में सिंह का दर्शन पूजन करना चाहिए। इससे माता का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त होता है। हिरण 9 ग्रहों में शनि देव को सबसे अधिक कष्ट देने वाला ग्रह माना गया है। न्याय और समता के लिए शनि देव कार्य करते हैं। जो व्यक्ति अन्याय और असत्य का साथ देता है, शनिदेव न्याय व्यवस्था को संतुलित रखते हैं। शनि देव एक मात्र ऐसे ग्रह हंै जिनके नौ वाहन हैं। और इन 9 वाहनों में विराजित शनिदेव की पूजा करने से सभी को अलग-अलग फल मिलता है।
विशेष वाहन पर सवार शनि देव की पूजा कर आप अनुकूल फल पा सकते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि हर वाहन विशेष इच्छा और फल के लिए उत्तरदायी होता है, और अगर शनिदेव की उस वाहन पर पूजा कर ली जाए तो शनि तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। ऊंट सभी देवी-देवताओं की कोई न कोई सवारी निश्चित है। अपने भक्तों की प्रार्थना पूरी करने के लिए देवी-देवता इन्हीं सवारियों (वाहनों) पर सवार होकर अपने भक्तों के पास आते हैं। जैसे - श्री गणेश की सवारी चूहा, देव राज इंद्र की सवारी हाथी, भैरव जी की सवारी कुत्ता, देवी लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू, यमराज का वाहन भैंसा, देवी सरस्वती जी का वाहन हंस, घोडा - सूर्य देव व शनि देव के नौ वाहनों में से एक है। देवी दुर्गा का वाहन सिंह, कौआ भी शनि देव के वाहनों की श्रेणी में आता है। गिद्ध भगवान विष्णु जी का वाहन है। मगरमच्छ भगवान वरूण का वाहन है, मोर भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन है एवं हनुमान का वाहन ऊंट है। यदि आप हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहते हंै तो भक्ति भाव से युक्त होकर हनुमान की पूजा करते समय इनके वाहन के भी पूजा दर्शन करें, आपको सकारात्मक फल प्राप्त होंगे।