किसी व्यक्ति को देखते ही उसके स्वरूप की ओर हम आकर्षित हो जाते हैं और किसी को देखकर हम अपना मुंह मोड़ लेते हैं। कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष सुन्दर क्यों लगता है और वह न केवल हमारे लिए अपितु सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र क्यों होता है, सुन्दरता को कैसे माप सकते हैं। गणित में इसका मूल सिद्धान्त स्वर्णिम अंक (Golden Number) के रूप में छिपा है।
प्रसिद्ध फिबोनाशी शंृखला (Fibonacci Sequence) ने सदियों से गणितज्ञों, कलाकार, डिजाइनर और वैज्ञानिकों को मोहित किया है। प्रकृति में इसकी अद्भुत सर्वव्यापकता से इसके महत्व का पता चलता है। फिबोनाशी शृंखला (Fibonacci Series) बढ़ते जाते नंबरों का एक समूह है। यह कुछ इस तरह से है: 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55... प्रत्येक नंबर पहले दो नंबरों का योग है।
तीन से विभाजित पांच 1.666 है। पांच से विभाजित आठ 1.6 है। आठ से विभाजित तेरह 1.625 है। तेरह से विभाजित इक्कीस 1.615 है। शृंखला की अंतिम संख्या को उससे पहली संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है:
1.6180339887... जिसे गोल्डन अनुपात या गोल्डन नंबर या स्वर्णिम अंक कहते हंै। यूनानियों के द्वारा भी गोल्डन अनुपात का प्रयोग गोल्डन आयत (Golden Rectangle) के निर्माण के रुप में किया गया है।
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स्वर्णिम अंक को सबसे सुंदर गणितीय संरचना माना जाता है, और वास्तुकला में अक्सर इसका उपयोग वस्तु का सौंदर्य बढ़ाने के लिए किया जाता है। अब से हजारों वर्ष पूर्व मिस्र में पिरामिडों का निर्माण भी इसके आधार पर ही किया गया था। सुनहरा अनुपात (Golden Number) के अन्तर्गत आने वाले चेहरे तथा शारीरिक रुप रेखा वाले लोग सुन्दर होते हैं। यहां तक कि प्रत्येक मानव के क्छ। (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल) में भी यही सुनहरा अनुपात (Golden Ratio) पाया जाता है। स्वर्णिम अंक को फाई (Phi = Φ) भी कहते हैं। यह अपने आप में एक खास अंक है जिसका वर्ग अपने से एक अधिक होता है अर्थात् Φ2 = Φ + 1
यदि 1 को Phi से भाग कर दिया जाए तो आपको एक अंक मिलता है जो च्ीप से एक अंक कम होता है अर्थात 1/Phi = Phi-1
यदि 1 में 5 का वर्गमूल जोड़ दिया जाए और 2 से भाग कर दिया जाए तो भी यही अंक प्राप्त होता है अर्थात् ( 1+ √5 ) / 2 = 1.6180339… = Φ
Φ(Phi) को ऐसे भी लिखा जा सकता है -
सुनहरा अनुपात ( Golden Ratio)प्रकृति और विज्ञान के सभी रूपों में प्रकट होता है। यह हर रोज हमारे आसपास के जीवन में दिखाई देता है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं -
प्रकृति में स्वर्णिम अनुपात
- शंख के वक्रों की लंबाई भी इसी अनुपात में होती है।
- मक्खी और चींटी के अंदर भी यही अनुपात पाया जाता है।
- यहां तक कि बहुचर्चित मोनालिसा की कलाकृति के मुख का अध्ययन करें तो वह भी इसी अनुपात का एक सुंदर उदाहरण है।
- कई ऐसी विचित्र चीजें, प्राणियों के कवच, सूर्यमुखी फूल और गुलाब की पंखुड़ियां तथा आकाशगंगा की आकृति में भी यह अनुपात पाया जाता है। प्रकृति की प्रत्येक सुंदर विधा में इसे साक्षात देखा जा सकता है।
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सौरमंडल में स्वर्णिम अनुपात
गोल्डन अनुपात हमारे सौरमंडल की संरचना में विद्यमान है। यह ग्रहों में, शनि के छल्लों में और इसके अलावा धरती और चंद्र के आकार में भी यह अनुपात बनता है। उदाहरण के लिए - पृथ्वी की त्रिज्या को यदि हम । मानें और चंद्र की त्रिज्या को यदि हम B मानें तो (A+B)2= (Φ) A2
इंसानी चेहरे तथा शारीरिक रुप रेखाओं में
- सिर से लेकर नाभि और नाभि से पैर तक की लंबाई का अनुपात = AB : BC = 1.618 = गोल्डन अनुपात होता है।
- नाभि से पैर की उंगलियों तक और घुटने से पैर की उंगलियों तक का अनुपात त= HI : IF = स्वर्णिम अंक होता है।
- सिर से गर्दन तक और गर्दन से नाभि तक का अनुपात = DE : EG = स्वर्णिम अंक होता है।
- किसी भी सुंदर महिला का चेहरा, उसकी आंख, नाक, दांत, कान, गाल, ठोड़ी आदि सभी अंगों का अनुपात स्वर्णिम अंक में होने पर सबसे अधिक सुंदरता प्राप्त करता है।
- मध्य के दो बड़े दांतों की चैड़ाई का अनुपात दोनों दांतों की ऊंचाई का अनुपात स्वर्णिम अंक अर्थात् Φ में है। पहले बड़े दांत और दूसरे दांत की चैड़ाई भी इसी अनुपात में होती है।
- आंख की कुल चैड़ाई और आंख की पुतली की चैड़ाई में भी यही अनुपात होता है।
- आंख से दांत तक की लम्बाई का अनुपात और आंख से ठोड़ी तक की लम्बाई का अनुपात स्वर्णिम अनुपात में होता है।
- नाक से मुंह का अनुपात और मुंह से ठोड़ी तक की लम्बाई भी इसके अनुपात में होती है।
- गणितज्ञों और डिजाइनर्स ने इस अंक के आधार पर एक मुखौटा तैयार किया है। जिस व्यक्ति एवं वस्तु का मुख इस मुखौटे पर जितना सटीक बैठता है वह उतना ही अधिक सुंदर दिखाई देता है।
संगीत की तरंगों में
स्वर विज्ञान एवं संगीत की तरंगों में इसी अनुपात की पुनरावृत्ति होती है तभी संगीत का जन्म होता है।
सुन्दर ईमारतों में
स्वर्णिम अंक वास्तुकला की सबसे सुन्दर प्रतिमा ताजमहल, सी. एन. टावर और मिस्र के पिरामिडों में भी अपना विशेष स्थान बनाये हुए है। आज भी जब किसी सुन्दर ईमारत का निर्माण किया जाता है तो उसका स्वर्णिम अनुपात अवश्य निकाला जाता है।
इन सब के अलावा भी यह स्वर्णिम अनुपात अन्य वस्तुओं एवं विधाओं में पाया जाता है। वास्तव में हम इसे भगवान के अस्तित्व होने का संकेत मान सकते हैं। यह उस भगवान की रचना का अद्भुत उदाहरण है क्योंकि यह छोटी से छोटी तथा बड़ी से बड़ी चीज में उपस्थित है। अगर यह एक संयोग है तो वह भी बहुत निराला कहा जाएगा। स्वर्णिम अंक (Golden Ratio) को हम ब्रह्मांडीय अंक (UNIVERSAL NUMBER)भी कह सकते हंै। यह पूरे ब्रह्माण्ड में बसा है। ज्यादातर चीजें इसके अनुसार ही बनी हैं। जो चीज सुन्दर दिखती है वह अवश्य ही इस अनुपात में बनी होती है।
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