‘‘नाक’’ की आकृति: स्वभाव एवं भविष्य !
‘‘नाक’’ की आकृति: स्वभाव एवं भविष्य !

‘‘नाक’’ की आकृति: स्वभाव एवं भविष्य !  

भगवान सहाय श्रीवास्तव
व्यूस : 7638 | मार्च 2016

नाक का अर्थ: श्वांस क्रिया का प्रमुख साधन, ध्यान इंद्री। मान सुख और शारीरिक सौंदर्य में प्रभाव डालने वाली एक महत्वपूर्ण इकाई है। नाक के भेद: समकोण नाक, अधिक कोण नाक, न्यून कोण नाक। कुछ नाक एकदम सीधी ऊपरी होंठ के बीच समकोण बनाते हैं। ऐसी नाक धारक स्त्री या पुरुष आमतौर से आदर्शवादी होते हैं जिनमें सभी गुण होते हैं। वे अपनी बात के धनी होते हैं, उदारवृत्ति के होते हैं। वे विश्वसनीय और मित्रों के मित्र होते हैं। उनकी बुद्धिमानी का लोहा दूर तक माना जाता है।

अवगुण: इसके बावजूद उनमें निम्न अवगुण होते हैं- अधिकतम लोक-व्यवहार कुशल होने के नाते ये संपूर्ण रूप से महत्वाकांक्षी होते हैं और कभी-कभी ऐसे व्यक्ति अव्वल दर्जे के स्वामी हो सकते हैं, और अपार कष्टदायक जीवन बिताने को तत्पर रहते हैं। समकोण से अधिक: दूसरी ओर जब नाक का कोण समकोण से अधिक होता है तो निम्न गुणों से समाविष्ट होते हैं- लापरवाह होने के कारण वे संसार में असफल रहते हैं। सोच-समझकर काम या कामना करने की प्रवृत्ति होती है। धूर्तता से भरपूर ऐसी नाक धारक व्यक्ति तिल जैसे भी होते हैं और जरूरत से ज्यादा अस्थिर और विवेकी होते हैं। न्यूनकोण बनने पर: नाक और ऊपर होंठ के बीच भी न्यून कोण बनता है जिससे हमेशा निराशा प्राप्त होती रहती है।

असफल व्यक्तित्व सदैव सालता रहता है। इसके अलावा अधिकतर अशांति से भरपूर जीवन बिताने को बाध्य ऐसी नाक के धारक जातक सदैव ईष्र्या में जलते रहते हैं। इस प्रकार नाक के तीन प्रकार हैं:

1. सीधी नाक (समकोण वाली नाक)

2. उभरी हुई नाक (अधिक कोण वाली)

3. पिचकी हुई नाम (न्यून कोण वाली नाक)। इसके अलावा नाक के निम्न भेद भी देखने को मिलते हैं: प्रथम भाग उभरा हुआ, मध्य भाग मुड़ा हुआ, धंसा हुआ भारी और उठे नथुने वाला व्यक्ति इन गुणों से संपन्न होता है। वीर-साहसी, युद्धप्रिय, मरने मारने को उद्यत, तर्क शक्ति से भरपूर, निंदा आलोचना प्रिय, व्यंग्य चित्र, भावुक, श्रेष्ठ विचारक, उन्नत चरित्र के उन्नायक। बीच का भाग उभरा, पहला व आखरी भाग दबा और नथुने संतुलित हों तो ऐसे जातक: आशा से भरपूर, महत्वाकांक्षी, विश्वसनीय, विवेकी होते हैं लेकिन निम्न अभाव भी होते हैं


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- केवल कल्पनाशील, कार्यरूप से दूर कार्य क्षेत्र में असफल, आलसी तथा परिश्रम से जी चुराते हैं, व्यवहार कुशल होने का अभाव। कुछ व्यक्तियों की नाक इस प्रकार हो सकती हैं आरंभ .......... उठा हुआ। मध्य ..................दबा हुआ। ऐसे धारक के विषय में कहा जाता है कि वह सरलता मगर कटुता, उदार मगर अव्यावहारिक और स्वभाव से आलोचक होते हैं। उनमें आमतौर से अभाव होते हैं- अस्थिरता, कभी सुख कभी दुख, कभी धन की अधिकता, कभी धन का अभाव, दीर्घ स्वामित्व का अभाव, सदैव अशांत रहने वाला मन। इसके अलावा निम्न प्रकार की नाक भी देखने में आती है- नालिका स्थान उभरा हुआ, नथुने सुदृढ़। इनमें निम्न गुण होते हैं- ऐसे व्यक्ति अपार क्षमता वाले होते हैं, इनकी कर्मठता सदैव चर्चा का विषय बनती है।

ये कर्मवादी व्यक्ति केवल काम करने में ही विश्वास रखते हैं। इनका आत्मबल अपूर्व होता है। अन्य विशेषताएं-उदार हृदय, मननशील, स्नेहशील, उच्च विवेकी, मार्गदर्शक, नेतृत्व और राष्ट्रोन्नति में सबसे बड़ा सहायक। नाक के भाग: नाक के भाग निम्न प्रकार किये जा सकते हैं: दबा हुआ: ऐसे नाक के धारकों की विकसित बुद्धि सफलता का श्रेय बनाती है। ऐसे व्यक्ति सच्चाई के प्रति अधिक आकृष्ट होते हैं: विशाल उदारता, चाहत के प्रति लगाव, गंभीर। समतल: समतल होना अधिक शुभकारक नहीं माना गया है, क्योंकि इसमें निम्न दोष आ जाते हैं जैसे- इस तरह की नाक के धारक चपल, चंचल और चलायमान होते हैं। ये स्वभाव से शैतान और मारपीट प्रिय होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के भाग्य में गंभीरता नहीं होती। आमतौर से ऐसे व्यक्ति पिछले स्वभाव के कारण यौन वासना वाले साहित्य, अश्लील चित्र और मनस्वी भाषा के स्थान पर गाली-गलौच प्रिय होते हैं।

अपराध जन्म प्रवृत्ति के ये पोषक व्यक्ति अव्वल दर्जे के जालसाज होते हैं अैर उनका जीवन पूरा उथल-पुथल से भरा होता है। ऊंचा स्थान: नाक का यह भाग जब ऊंचा हो तो बड़े अजीबोगरीब अवांछनीय योग होते हैं। जैसे: यह स्थान जितना ऊंचा होगा, धारक उतना ही पाखंडी, क्रोधी भी होगा। आवेश में उत्तेजित हो जाना ऐसे लोगों के लिए साधारण बात है। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव पशुओं-जानवरों जैसा होता है, जिसमें आडंबर, पाखंड, धूर्तता, दंभ, अहंकार के अतिरिक्त हिंसा और क्रूरता कूट-कूट कर भरी होती है। ये अविवेकी एवं अशांत होते हैं। पासा: मिलन स्थल के बाद का भाग पासा कहलाता है। जो इस प्रकार हो सकता है:-

(क) शुरू से आखिर तक वृत्ताकार और उभरा हुआ। उसमें दबे हुए मिलनस्थल के गुण होते हैं।

(ख) केवल बीच में उठा हो तो समतल के गुण होते हैं।

(ग) केवल आरंभ और अंतरी उभरा हो तो इसमें उच्च स्थान वाली विशेषताओं के बलावा ये विशेशताएं व्याप्त होती हैं- लोभी, डरपोक, कंजूस, धूर्त, छलकपट में अभ्यस्त। ऐसे व्यक्ति आमतौर से कई विवाद रचाते हैं। इनके विषय में कहा गया है कि पास जिसका मूल गत देखते ही समझाय।

कपटी लोभी यह बने, खूब जिये दो तीन स्त्रियां खाय।। अर्थात् ऐसा व्यक्ति दीर्घायु होता है और यह 2 या 3 शादी करके एक को स्वर्गधाम पहुंचाता है। ऐसे व्यक्तियों के पास जाने वाली औरतों का भाग्य ठीक नहीं रहता। उनका जीवन कलहपूर्ण रहता है और उन्हें आत्महत्या करना पड़ सकता है। लेकिन स्त्री का भाग्य-प्रबल होने पर इन्हें, पति से कभी धन लाभ भी होता है।


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