कस्पल पद्धति
कस्पल पद्धति

कस्पल पद्धति  

आर.एस. चानी
व्यूस : 4888 | मार्च 2016

कस्पल कंुडली में सिगनिफिकेटर का तात्पर्य जैसा कि हम जानते हैं नक्षत्र थ्योरी का नियम है कि कुडंली में हर ग्रह अपने नक्षत्रस्वामी ग्रह का फल प्रदान करता है। ग्रह अपना फल प्रदान करने में तभी सक्षम होता है जब किसी विषिष्ट कुडंली में उस विषिष्ट ग्रह का पोजीषनल स्टेटस (स्थान बल) होता है। इस प्रकार कोई भी ग्रह सिर्फ दो ही प्रकार से फल प्रदान करने में सक्षम होता है। पहला जब ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी ग्रह का फल प्रदान करता है जिसे हम स्टैलर स्टेटस के रूप में जानते हैं और दूसरा जब ग्रह का अपना पोजीषनल स्टेटस होता है जिसे हम पोजीषनल स्टेटस के रूप में जानते हैं। आप इस विचार को भली प्रकार से समझ चुके होंगे कि कोई भी ग्रह सिर्फ दो ही प्रकार से फल प्रदान करने में सक्षम होता है

(1) स्टैलर स्टेटस लेवल (नक्षत्र स्तर पर और)

(2) पोजीषनल स्टेटस लेवल (स्थानीय बल स्तर) पर। आईये अब जरा दूसरे पहलू पर विचार करें कि कोई ग्रह स्टैलर स्टेटस और पोजीषनल स्टेटस लेवल पर किस प्रकार से फल प्रदान करेगा। कस्पल ज्योतिष के सिद्वान्त बहुत सरल हैं।

स्टैलर स्टेटस यानि कि किसी विषिष्ट ग्रह का स्टार लाॅर्ड (नक्षत्र स्वामी ग्रह) 1 से लेकर 12 वीं कस्पल पोजीषन में किन-किन कस्पल पोजीषन में प्रकट हो रहा है। स्टार लाॅर्ड (नक्षत्र स्वामी ग्रह) किसी कस्पल पोजीषन (1 से 12 तक ) में या तो किसी कस्पल पोजीषन में राषि स्वामी ग्रह के रूप में प्रकट हो सकता है या तो स्टार लाॅर्ड या तो सब लाॅर्ड के रूप में या सब सब लाॅर्ड के रूप में प्रकट हो सकता है या यह ग्रह (स्टैलर स्टेटस) लेकर किसी भाव में बैठा हो सकता है। इसे और विस्तार से समझिये। किसी ग्रह का स्टार लाॅर्ड जिन-जिन कस्पल पोजीषन्स (1-12 तक) में प्रकट होगा तथा जिस भाव में बैठा होगा स्टैलर स्टेटस के माध्यम से वह ग्रह उन-उन भावों का फल प्रदान करने में सक्षम हो जायेगा। उदाहरण के तौर पर यदि (गुरु ह्नशनि) गुरु, शनि के नक्षत्र में है कोई भी ग्रह शनि के नक्षत्र में तभी आयेगा अगर वह विषिष्ट ग्रह या तो कर्क राषि में या तो वृष्चिक या तो मीन राषि में 030 20’’ से लेकर 160 40’’ के बीच में होगा। (पुष्य, अनुराधा और उ0 भाद्रपद) के नक्षत्र क्रमषः कर्क, वृष्चिक और मीन राषि में प्रकट होते हैं और इन तीनों ही नक्षत्रों का स्वामी शनि है।

हम उदाहरण की बात कर रहे थे कि गुरु ग्रह, शनि के नक्षत्र में हैं और शनि इस उदाहरण कुंडली में 2 री कस्पल पोजीषन में सब सब लाॅर्ड के रूप में 6ठी कस्पल पोजीषन में सब लाॅर्ड के रूप में 10वीं कस्पल पोजीषन में स्टार लाॅर्ड के रूप में और 11 वीं कस्पल से राषि स्वामी ग्रह के रूप में प्रकट हो रहा है और शनि 2 रे भाव में बैठा भी है। इसका तात्पर्य यह है कि यहां गुरू स्टैलर स्टेटस के माध्यम से 2रे, 6ठे, 10वंे और 11वंे भाव का फल प्रदान करने में सक्षम हो जाता है। तात्पर्य गुरु 2रे, 6ठे, 10वें और 11वंे का स्टार लेवल पर सिगनिफिकेटर बन गया है। आईये अब जरा पोजीषनल स्टेटस लेवल के विचार को भी समझने का प्रयास करें। ऊपर हमने लिखा था कि कुडंली में कोई भी ग्रह दो प्रकार से फल देने में सक्षम होता है पहला स्टैलर स्टेटस (नक्षत्र स्तर) माध्यम से और दूसरा पोजीषनल स्टेटस (स्थान बल स्तर) के माध्यम से। स्टैलर स्टेटस का हमने विस्तार से अध्ययन किया, आईये अब पोजीषनल स्टेटस को समझें। पोजीषनल स्टेटस किसी ग्रह को कैसे मिलता है ?

किसी भी कुंडली में किसी भी ग्रह को पोजीषनल स्टेटस (स्थान बल) तीन प्रकार से मिलता है

(1) ग्रह अपने ही नक्षत्र (स्टार) में हो, यानि कि शनि, शनि के ही नक्षत्र में (पुष्य, अनुराधा, उ० भाद्रपद) हो।

2. नक्षत्र स्वामी ग्रहों का आपसी बदलाव ;डनजनंस म्गबींदहम इमजूममद जीम चसंदमजेद्ध हो जैसे कि (चन्द्रह्नशुक्र) चन्द्रष्शुक्र के नक्षत्र मंे (भरणी, पूफाल्गुनी, पू० आषाढ़) और (शुक्रह्न चन्द्र) शुक्र चंद्र के नक्षत्र में (रोहिणी, हस्त, श्रावण) हो।

3. कुण्डली में कोई ग्रह (केतु से बुध तक) किसी भी ग्रह का नक्षत्र स्वामी न बने या उस विषिष्ट ग्रह के स्टार जोन में कोई ग्रह न हो।

इस तीसरे विचार को हम यहां विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं। केतु को किसी विषिष्ट कुंडली में पोजीषनल स्टेटस मिल जायेगा अगर 9 के 9 ग्रहों में से कोई भी ग्रह न तो मेष राषि ;।तपमेद्ध में 0े -130 20’’ (अष्विनी नक्षत्र) (स्वामी केतु), न ही सिंह राषि ;स्मवद्ध में 0े -130 20’’ (मघा नक्षत्र) (स्वामी केतु), और न ही धनु राषि ;ैंहपजजंतपनेद्ध में 0े -130 20’’ (मूल नक्षत्र) (स्वामी केतु), के बीच हो, तात्पर्य भचक्र के इस स्टार जोन यानि कि मेष, सिंह और धनु राषि मंे 0 से लेकर 130 20’’ तक कोई भी ग्रह न हो मतलब, अष्विनी, मघा और मूल नक्षत्रांे का स्वामी केतु ही है और इस केतु के स्टार जोन मंे कोई भी ग्रह नहीं है अथवा यहां केतु किसी ग्रह का स्टार लाॅर्ड नहीं बना यंा आप ऐसे कह सकते हैं कि केतु नक्षत्र (स्टार) में कोई भी ग्रह नहीं है इसलिये इस विषिष्ट कंडीषन में केतु को पोजीषनल स्टेटस मिल जायेगा।

अब प्रष्न यह उठता है कि अगर किसी ग्रह को किसी कुंडली में पोजीषनल स्टेटस मिल जाता है तो वह किस प्रकार से फल दे पाता है। ऊपर हमने अध्ययन किया था कि स्टैलर स्टेटस लेवल पर ग्रह किस प्रकार से फल देता है। ठीक उसी प्रकार हम पोजीषनल स्टेटस के संदर्भ में भी सुनिष्चित करेंगे कि पोजीषनल स्टेटस पाया हुआ ग्रह 1 से लेकर 12वीं कस्पल पोजीषन में किन-किन कस्पल पोजीषन मंे प्रकट हो रहा है। राषि स्वामी के रूप में स्टार लाॅर्ड के रूप में, सब लाॅर्ड के रूप मंे और सब सब लाॅर्ड के रूप में और पोजीषनल स्टेटस पाया हुआ ग्रह किस भाव में बैठा है इत्यादि। यह ग्रह जिन जिन कस्पों/कस्पल पोजीषन/भाव में प्रकट होगा वह उन सभी भावांे का फल प्रदान करने में सक्षम हो जायेगा। इसे उदाहरण के तौर पर समझें।

मान लीजिए पोजीषनल स्टेटस पाया हुआ ग्रह 6ठी, 8वीं, 9वीं और 12वीं कस्पल पोजीषन में या कस्पांे में प्रकट हो रहा है तथा 8वें भाव मंे बैठा भी है। इसका तात्पर्य यह है कि वह विषिष्ट ग्रह 6ठे, 8वें, 9वंे और 12वें भावांे के फल प्रदान करने में सक्षम हो जायेगा अथवा पोजीषनल स्टेटस स्तर पर वह 6ठे, 8वें, 9वें और 12 वें भावांे का सिगनिफिकेटर बन जायेगा। पोजीषनल स्टेटस पाया ग्रह जिस भाव में बैठेगा वह उस भाव का फल प्रदान करने मंे सक्षम हो जायेगा। सिगनिफिकेटर का तात्पर्य, उन विषिष्ट भावांे के फल प्रदान करने में सक्षम होना है जिन-जिन कस्पांे या भावांे में पोजीषनल स्टेटस और स्टेलर स्टेटस लेवल पर ग्रह प्रकट हो रहा हो।



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