वैदिक परंपरा के अनुसार पुत्र, पुत्रत्व तभी सार्थक होता है जब पुत्र अपने माता-पिता की सेवा करे व उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि व पितृपक्ष में विधिवत श्राद्ध करें। भारतीय वैदिक आदि सनातन हिंदू धर्म में मानव के जन्म मात्र से ही तीन ऋण (देव, ऋषि व पितृ ऋण) होते हैं। इनमें पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक अन्न, जल, आदि समर्पित करने की धार्मिक क्रिया को श्राद्ध कहते हैं। अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले श्राद्ध से पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा को शांति मिलती है न की मुक्ति? यह अपने किये हुए कर्मों का फल भोगने के लिए ‘‘पुनरपि जननम् - पुनरपि मरणम्’’ के सिद्धांतानुसार बार-बार अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर भटकते रहते हैं।
यही पितृयोनि में भटकती हुई आत्मा का चक्र मोक्ष पर्यन्त काल तक चलता रहता है। इसलिए पितृयोनि में पृथ्वी और यमलोक के बीच भटकती हुई आत्मा को मोक्ष के लिए कुल वंशज तृप्ति संतुष्टि के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं। परंतु श्राद्ध से पितरों की मुक्ति संभव नहीं है। प्रेत या पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा कष्ट भोगकर अपने कुल को श्राप देती है, इसी पितृश्राप को शास्त्रों में पितृदोष कहा गया है। पौराणिक ग्रंथ पुराणों में लिखा है कि शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है।
आत्मा अमर रहती है, मरती नहीं है? यही आत्मा पितर-दोष के रूप में आपके परिवार के आस-पास मडंराती रहती है। स्वयं दुखी होकर नकारात्मक ऊर्जा द्वारा अपने परिवार को परेशान करती है। पितृ आत्मा का मोक्ष नहीं होने तक नरक से भी ज्यादा कष्ट भोगती है। यही कष्ट आपके परिवार के दुखों का कारण बनता है। पितृ दोष के कारण ही परिवार में अशांति, दुख, कष्ट, कलह, दुर्घटना, रोग और वंशहीनता आती है।
यदि आपका परिवार इन्हीं सभी परेशानियों में उलझा हुआ है तो आपके परिवार पर पितृदोष की काली छाया मंडरा रही है और इस दोष से मुक्ति के लिए श्राद्ध करना ही उपाय है। पितरों के मोक्षधाम के लिए हिमालय पर स्वर्गारोहिणी के रास्ते अलकनंदा के किनारे बद्रीनाथ धाम के पास सिद्ध क्षेत्र ब्रह्मकपाल में पितृ मोक्ष कराकर पितृदोष व पितृण से जन्म-जन्मांतर के लिए मुक्त हो जाते हैं तथा पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा को भी मोक्ष अर्थात् मुक्ति मिलती है और कुल वंशज को वरदान स्वरूप जो प्राप्त होता है
उसके विषय में पुराणों में लिखा है... ‘‘आयुः प्रजां धनं विद्यां, स्वर्गं मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः मोक्षतर्पिता।। अर्थात्: जो लोग अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने के बाद भी पितृदोष से मुक्ति के लिए सिद्ध क्षेत्र ब्रह्मकपाल में अपने पितरों के निमित्त पितृ मोक्ष, पिंडदान व तर्पण आदि करने से पितरों को मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा पितृमोक्ष से आयु, वंशवृद्धि, धन-धान्य, स्वर्ग, राजयोग व अन्य सभी भौतिक सुख सुविधा मिलती है। पितृदोष शांति के लिए पुष्कर, हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया जी है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मकपाल उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम के समीप अलकनंदा नदी के किनारे यह विश्व प्रसिद्ध तीर्थ पितरांे की मोक्ष प्राप्ति का सुप्रीम कोर्ट है। ऐसी मान्यता है कि बिहार में गया जी में पितर शांति मिलती है किंतु ब्रह्मकपाल में मोक्ष मिलता है। यहां पर पितरों का उद्धार होता है।
इस संबंध में पुराणों व धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि इस पावन चमत्कारी सिद्ध क्षेत्र ब्रह्मकपाल में पितरों के निमित्तश्रद्ध ापूर्वक पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष, मुक्ति मिलती है। तथा पूर्वजों को ब्रह्मकपाल तीर्थ पर पिंडदान व तर्पण करने के बाद श्राद्धकर्म व अन्य जगह पिंडदान की आवश्यकता नहीं है। इस संबंध में मत्स्य पुराण में उल्लेख मिलता है। ‘‘पितृतीर्थ ब्रह्मकपालम् सर्वतीर्थवर सुभम्। यत्रास्ते देव देवेशः स्वमेव पितामह’’।। अक्षय तृतीया से दीपावली तक बद्रीनाथ धाम के समीप ही ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के निमित्त पिंडदान व तर्पण का विधान है। इसके अलावा बर्फीला प्रदेश होने से बर्फ से ढंका रहता है। मई से अक्तूबर-नवंबर तक यहां सहज रूप से पहुंचा जा सकता है और अपने पितरों के निमित्त पितृ दोष मुक्ति करा सकते हैं।
पितृदोष रूपी काली छाया से परेशान व्यक्ति अपने पितरों के मोक्ष के लिए मुख्य रूप से हर वर्ष श्राद्ध पक्ष आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन अमावस्या तक लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा को मुक्ति मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण के लिए ब्रह्मकपाल आते हैं। परिवार का सदस्य चाहे वो गर्भपात हो, बच्चा, बूढ़ा या जवान हो मृत्यु होने पर पितर-दोष बनता है। यह शास्त्र वचन है। अपने कुल, वंश के जो मरणोपरांत पितृ लोक में विभिन्न योनियांे में भटक रहे हैं उनकी आत्मा को उनके वंशज कुल के व्यक्ति इस चमत्कारी सिद्ध क्षेत्र ब्रह्मकपाल में पितृ शांति कर उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
पितृ शांति विधि क्रम निम्न प्रकार है: ‘‘अग्नौ करणं पिंडदानं, तर्पण तथा च ब्राह्मण भोजनम्’’।। पितृ शांति सिद्ध क्षेत्र ब्रह्मकपाल में पितृ मोक्ष से पूर्व गर्म तप्तकुंड में स्नान कर बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर फिर उसके बाद ब्रह्मकपाल अलकनंदा नदी के किनारे पितृ मोक्ष के लिए पूजा अर्चना करता है। अपने पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान में काले तिलों का विशेष महत्व है। ऐसी भी मान्यता है कि अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक ब्रह्मकपाल मंे रविवार को करने से आरोग्य, सोमवार को सौभाग्य, मंगलवार को विजय, बुधवार को कामा सिद्धि, गुरुवार को धनलाभ, तथा शनिवार के दिन पितृशांति करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में ब्रह्मकपाल पितृ मोक्ष हेतु लिखा है- ‘‘दद्यात् ब्रह्मकपालेऽस्मिन्, पिंडम् पुत्रः अथवा अपरः। सर्वम् ब्रह्मलोकम् याति, नूनम् इति न संशयः।। - ।। गरुड़ पुराण ।। अर्थात् - ब्रह्मकपाल में जो अपने पितरों के निमित्त स्वयं या कोई परिवार का सदस्य पिंडदान व तर्पण करता है
तो अपने कुल के सभी पितर मुक्त होकर ब्रह्मलोक को जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है। पितर मोक्ष के बाद श्राद्धकर्म की आवश्यकता नहीं है। ब्रह्मकपाल पर पिंडदान, तर्पण, होने के बाद मृत आत्माओं द्वारा आशीर्वाद वचन सिद्धि मिलने पर शास्त्रों में स्वर्णदान, अन्नदान, गोदान, वस्त्रदान, भूमिदान, देने का विधान है। ऐसा करते ही आपके पितर मोक्ष स्वर्ग के लिए अंतिम यात्रा पूरी करेंगे। बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में पितरों के मोक्षधाम के विषय में पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जगत पिता ब्रह्माजी की मानस पुत्री संध्या बड़ी सुंदर थी। उसके सौंदर्य, रूप लावण्य को देखकर एक बार ब्रह्मा जी काम-मोहित हो गये। उनके इस धर्म, दैवत्व, लोक विरूद्ध कृत्य को देखकर उनके मानस पुत्र मरीचि और अन्य ऋषियों ने अनेक प्रकार से पितामह ब्रह्मा जी को समझाने की चेष्टा की। इस पर भगवान भोलेनाथ शिव धर्म की रक्षा के लिए निंदित कार्य को सहन नहीं कर सके और अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। तभी से जगतपिता ब्रह्मा चतुर्मुखी कहलाने लगे, क्योंकि इस घटना से पहले उनके पांच सिर थे। तभी एक दिव्य घटना हुई।
ब्रह्मा जी का वह पांचवां सिर भगवान महादेव शिव के हाथ से जा चिपका और भगवान महादेव को धर्म की रक्षा के लिए ब्रह्म हत्या का दोष लगा। भगवान देवाधिदेव महादेव शिव इस पाप के निवारण के लिए संपूर्ण आर्यावर्त भारत भूमि के अनेक तीर्थ स्थानों पर गये परंतु फिर भी इस जघन्य पाप से मुक्ति नहीं मिली। जब वे अपने धाम कैलास पर जा रहे थे तो बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान करके भगवान शिव बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे कि 200 मी. पूर्व ही एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। ब्रह्मकपाल में पिंडदान, तर्पण करने से घोर पापों से मुक्ति मिलती है तथा पितरों के निमित्त श्रद्धा-भक्ति पूर्वक पिंडदान, तर्पण करने से पूर्वज तथा सभी पितरों को मुक्ति व सद्गति प्राप्त होती है।