स्त्री रोगों का ज्योतिष एवं वास्तु द्वारा आकलन
स्त्री रोगों का ज्योतिष एवं वास्तु द्वारा आकलन

स्त्री रोगों का ज्योतिष एवं वास्तु द्वारा आकलन  

एम.एम. श्रीवास्तव
व्यूस : 8842 | जुलाई 2013

स्त्रियों के रोग, सूर्य आदि ग्रहों के साथ, चंद्रमा से अधिक प्रभावित होते हैं। मासिक धर्म, ल्यूकोरिया, मानसिक चिंताएं, बेचैनी, रक्तचाप आदि रोग स्त्रियों की कुंडली में चंद्रमा की पाप ग्रहों के साथ उपस्थिति, अथवा दृष्टि संबंध की ही उपज हैं। अतः ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर रोगों का उपचार किया जाए, तो अच्छी सफलता मिल सकती है और निरोगी समाज की स्थापना हो सकती है। स्त्रियां स्वभाव से ही भावुक होती हैं तथा उन पर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ अधिक होता है।


Consult our expert astrologers online to learn more about the festival and their rituals


पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को आराम और मनोरंजन का समय कम ही मिलता है, जिसका प्रभाव उनकी मनः स्थिति पर प्रतिकूल होता है। चंद्रमा ही मन और विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ ग्रहों की सामान्य स्थिति का उल्लेख निम्नानुसार है, जो रोग उत्पन्न करते हैं:

1- जन्मकुंडली में पाप ग्रह शनि, राहु, मंगल, केतु चंद्रमा के साथ स्थित हों, तो स्त्रियों को मासिक धर्म में कष्ट पहुंचाते हैं तथा उन्हें क्रोधित, झंुझलाहटपूर्ण, चिंताग्रस्त बनाते हैं।

2- चंद्रमा पर पाप ग्रह की दृष्टि, या मंगल पर शनि की दृष्टि रक्त विकार, रक्तचाप पैदा करती हैं।

3- स्त्री की कुंडली में पंचम भाव पर सूर्य, केतु, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रहों की दृष्टि हो और कोई शुभ ग्रह पंचम भाव को नही देखता हो, तो गर्भपात की शिकायत होती है। जितने पाप ग्रह पंचम भाव पर दृष्टि रखते हैं, उतने ही गर्भपात होंगे।

4- अष्टम भाव में मेष, कर्क, वृश्चिक में स्थित शनि, मंगल, राहु, केतु चोट, दुर्घटना के योग पैदा करते हैं और स्त्रियों की कुंडली में अत्यधिक रक्तस्राव संबंधी रोग देते हैं।

5- स्त्रियों की कुंडली में द्वादश भाव स्थित किसी भी राशि का चंद्रमा अनावश्यक शंकाएं पैदा करता है और, चिंतित रखता है। 5- स्त्रियों की जन्मकुंडली में छठे भाव में स्थित चंद्रमा उन्हें परिवार की सेविका बनाता है। ऐसी स्त्रियां परिवार के वृद्धजनों की अच्छी सेवा करती हैं, किंतु स्वयं चिंतित रहती हैं।

6- स्त्रियों की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में जितने पाप ग्रह स्थित होंगे, अथवा सप्तम भाव पर जितने पाप ग्रह दृष्टि डालेंगे, दांपत्य जीवन उतना ही कष्टकर तथा उदासीन होगा और वे निश्चित ही विभिन्न रोगकारक होंगे। ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंत्र, यंत्र, रत्न, औषधि उपचार की व्यवस्था प्रस्तुत की गयी है।

आयुर्वेद के अनुसार विभिन्न जड़ी-बूटियों को जंगल से, विशेष नक्षत्र में, विशेष मूहुर्त और दिन को, मंत्र पढ़ कर लाया जाता है तथा उसकी औषधि का प्रयोग रोगी पर किया जाता है, तो उसके चमत्कारिक प्रभाव नज़र आते हैं। विभिन्न प्रकार के रत्नों की भस्म का उपयोग भी आयुर्वेद में किया जाता है और बाल्य अरिष्ठ में ग्रह योगों की विवेचना की जाती है। अनेक बार यह देखा गया है कि चिकित्सकों द्वारा बीमारी का सर्वोत्तम उपचार करने के पश्चात भी बीमारी से मुक्ति नहीं मिलती। इसके लिए चिकित्सक दोषी नहीं हो सकते। व्यक्ति के अपने पाप ग्रहों का पूर्व संचित कर्म है, जो बंधन से मुक्त नहीं होने देता। इसके लिए श्रेष्ठ होगा कि व्यक्ति की जन्मकुंडली से ग्रह स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन कर मंत्र और रत्न का उपचार किया जावे तथा अच्छे वैद्य से औषधि ली जावे, तो चमत्कारी परिणाम मिल सकते हैं।

आज के भौतिक युग में अर्थ संग्रह की दौड़ के कारण अच्छे ज्योतिषियों और वास्तुविदों का अभाव है। फलस्वरूप मकानों/आवासों का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुरूप न होने से अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, जिनकी जानकारी जन सामान्य को नहीं होती। क्योंकि स्त्रियां अधिक समय घर में ही व्यतीत करती हैं, इस कारण वे ही सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। उपचार

a- कुडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर होने से पांच से सात रत्ती का मोती दाये हाथ की अनामिका, अथवा कनिष्ठा अंगुली में सोमवार को शुभ चैघड़िये में धारण करें।

b- कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो, तो शयन कक्ष में शैया के नीचे चांदी के पात्र में घुटी हुई केशर सहित जल भर कर रखना चाहिए। इससे परिवार के असाध्य रोगी ठीक होते हैं।

c- यदि दांपत्य जीवन में कुंठा और तनाव हो, तो गृहस्थ को अपने कक्ष में शुद्ध गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।

d- यदि कोई स्त्री सूर्य ग्रह से पीड़ित है, तो लाल चंदन का टुकड़ा तकिये के नीचे हमेशा रखना चाहिए।

e- अपने शयन कक्ष में अंगीठी, चिमटा, कड़ाही, तवा, छलनी, छांजला, मूसल, इमाम दस्ता आदि नहीं रखने चाहिएं।

f- घर के अंदर कंटीले और दूध झरने वाले पेड़, जैसे कैक्टस के पौधे, कांटों का गुलदस्ता, बरगद, रबर का पेड़ आदि नहीं रखने चाहिएं। कंटीले पौधे गृहस्थ जीवन में कांटे ही पैदा करते हैं।

g- घर में रसोई आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण कोना) में होनी चाहिए और खाना बनाने वाली स्त्री का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए।

h- पूजा गृह ईशान कोण (उत्तर-पूर्व का कोना) में होना चाहिए। इससे परिवार में शांति रहती है और स्वामी की ख्याति बढ़ती है।

i- शौचालय ईशान में कदापि न हो, वर्ना परिवार में रोगियों की संख्या अधिक होगी तथा हमेशा अशांति बनी रहेगी।

j- यदि परिवार में स्त्रियों के घुटनों में दर्द हो, तो निश्चित ही पानी की टंकी की दिशा गलत होगी। पानी की टंकी भूतल में उत्तर में और भवन के ऊपरी भाग में दक्षिण-पश्चिम की ओर होनी चाहिए।

k- शयन कक्ष में मादक द्रव्य न रखे जावें और न सेवन किये जावें।


Book Online 9 Day Durga Saptashati Path with Hawan


l- सोते समय व्यक्ति का सिर दक्षिण दिशा, अथवा पूर्व दिशा में ही होना चाहिए, अन्यथा कई रोग हो सकते हैं।

m- सोते समय पांव की तरफ दरवाजा नहीं होना चाहिए।

n- मकान का मुख्य द्वार भूखंड के किसी भी कोने को काट कर तिरछा नहीं बनाना चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों के लिए दुर्घटना होने के योग रहते हैं। उपर्युक्त सामान्य सावधानियांे से निरोगी रहा जा सकता है। अन्य गंभीर रोगों को दूर करने के लिए श्रेष्ठ चिकित्सक एवं ज्योतिषी से परामर्श कर के ही औषधि तथा रत्न धारण करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.