मानसिक वेदना
मानसिक वेदना

मानसिक वेदना  

नीरज शर्मा
व्यूस : 9602 | जुलाई 2013

ज्योतिषीय दृष्टिकोण में हमारे मन की प्रत्येक अवस्था या स्थिति जन्मकुंडली में स्थित चंद्रमा पर निर्भर करती है। कुंडली में चंद्रमा बली होने पर व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न व स्थिर होता है और चंद्रमा कमजोर होने पर उसकी मानसिक शक्ति क्षीण होती है। परंतु इसमें भी जब किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा अति पीड़ित स्थिति में हो और शुभ प्रभाव से बिल्कुल वंचित हो तो इससे जीवन में कुछ विशेष नकारात्मक प्रभाव आते हैं और व्यक्ति मानसिक वेदनाओं से घिरता चला जाता है।


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यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा नीच राशि (वृश्चिक) में हो, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो, इसके अतिरिक्त चंद्रमा, राहु, शनि के साथ हो या इनसे दृष्ट हो और बृहस्पति की दृष्टि चंद्रमा पर ना हो तो ऐसा व्यक्ति सदैव मानसिक अशांति का अनुभव करेगा, मन कभी एकाग्र नहीं हो पायेगा, जल्दी तनाव ग्रस्त हो जायेगा। विशेष रूप से जब चंद्रमा शनि और राहु के अधिक प्रभाव में आता है तब समस्याएं अधिक होती हैं। कमजोर चंद्रमा वाला व्यक्ति जल्दी ही व्याकुल हो जाता है या घबराहट अनुभव करता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन के संघर्ष, समस्या या मन की दुविधाओं को किसी के साथ आसानी से नहीं बांट पाते और मन ही मन में बोझ एकत्रित करते रहते हैं और यही स्थिति उन्हें अवसाद की ओर ले आती है।

कमजोर चंद्रमा से ही मन में हीन भावनाएं आती हैं, नकारात्मक सोच का उदय होता है और कमजोर चंद्रमा ही व्यक्ति के मन में स्वयं के जीवन को समाप्त करने जैसे हीन विचार ला देता है। कमजोर चंद्रमा के कारण बच्चा चाहकर भी एकाग्रचित्त नहीं हो पाता, ध्यान नहीं लगा पाता या तनावग्रस्त रहता है। ऐसे बच्चों का स्वभाव भी कुछ चिड़चिड़ा हो जाता है। कमजोर चंद्रमा वाले व्यक्तियों को अमावस्या व पूर्णिमा के निकटतम दिनों में बहुत मानसिक विचलन और इरिटेशन होती है। इसके अतिरिक्त यदि आपकी जन्म राशि में शनि या राहु का गोचर हो रहा है

तो यह समय भी आपको मानसिक तनाव से ग्रस्त रखेगा। यदि आपका बच्चा या अन्य कोई व्यक्ति कमजोर चंद्रमा के कारण तनाव या अवसादग्रस्त है तो ऐसे में उनके साथ रूखा व्यवहार बिल्कुल न रखें। ऐसे व्यक्तियों को भावनात्मक सपोर्ट की बहुत आवश्यकता होती है कुछ विशेष उपाय: यदि आप उपरोक्त समस्याओं से ग्रस्त हैं तो ये उपाय आपको अवश्य लाभ देंगे।

1- ऊँ सोम् सोमाय नमः की एक माला जप प्रतिदिन करें।

2- शिवलिंग का जल व दूध से अभिषेक करें।

3- प्रत्येक सोमवार को गाय को बताशे खिलायें।

4- प्रतिदिन पक्षियों को दाना डालें।

5- प्रातः काल भ्रामरी व उद्गीथ प्राणायाम अवश्य करें।

6- प्रकृति व सौम्य संगति के साथ जुड़ें।

7- प्रतिदिन कुछ समय के लिये अपने ईष्ट के सम्मुख बैठकर उनकी ओर देखें और मन की बात कहें तो अवश्य लाभ होगा।


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