विवाह के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं गुरु, शुक्र एवं मंगल
विवाह के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं गुरु, शुक्र एवं मंगल

विवाह के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं गुरु, शुक्र एवं मंगल  

एस.पी. गौड़
व्यूस : 13536 | जुलाई 2013

हमारे शास्त्रों में 16 संस्कार बताये गये हैं जिनमें विवाह सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। हमारे समाज में जीवन को सुचारू रूप से चलाने एवं वंश को आगे बढ़ाने के लिए विवाह करना आवश्यक माना गया है। जब हम कुंडली में विवाह का विचार करते हैं तो उसके लिए नौ ग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह गुरु, शुक्र और मंगल का विश्लेषण करते हैं। इन तीनों ग्रहों का विवाह में विशेष भूमिका होती है। यदि किसी का विवाह नहीं हो रहा है या दांपत्य जीवन ठीक नहीं चल रहा है तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसकी कुंडली में गुरु, शुक्र और मंगल की स्थिति ठीक नहीं हैं। गुरु वर-वधू की कुंडली में गुरु ग्रह बली होना चाहिए। गुरु की शुभ दृष्टि यदि सप्तम भाव पर होती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों के बाद भी अलगाव की स्थिति नहीं बनती है अर्थात गुरु की शुभता वर-वधू की शादी को बांधे रखती है।

गुरु ग्रह शादी के साथ-साथ संतान का कारक भी है। अतः यदि गुरु बलहीन होगा तो शादी के बाद संतान प्राप्ति में भी कठिनाई होगी। अतः हमें कुंडली में मुख्य रूप से गुरु को सबसे पहले देखना चाहिए। गुरु यदि स्वयं बली है स्व अथवा उच्च राशि में है, केंद्र या त्रिकोण में है तथा शुभ ग्रह से प्रभावित है तो जातक के शादी में परेशानी नहीं आती है और जातक की शादी समय से हो जाती है। शुक्र गुरु ग्रह जहां शादी करवाते हैं वहीं शुक्र ग्रह शादी का सुख प्रदान करते हैं। कई बार देखा गया है कि शादी तो समय पर हो जाती है लेकिन पति को पत्नी सुख और पत्नी को पति सुख का अभाव रहता है।

किसी न किसी कारण वश पति-पत्नी एक साथ नहीं रह पाते और अगर रहते हैं तो भी उन्हें शय्या सुख प्राप्त नहीं हो पाता। यदि आपके जीवन में ऐसी स्थिति बन रही है तो आपको समझ लेना चाहिए कि आपका शुक्र ग्रह पीड़ित है अर्थात शुक्र पापी ग्रहों से पीड़ित है, कमजोर है। अतः हमें विवाह का पूर्ण सुख लेने के लिए शुक्र की स्थिति का आकलन जरूर करना चाहिए। शुक्र की शुभ स्थिति दांपत्य जीवन के सुख को प्रभावित करती है अर्थात यदि शुक्र स्वयं बली हो, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित हो, केंद्र या त्रिकोण में हो तब अच्छा दांपत्य सुख प्राप्त होता है। इसके विपरित जब त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु क्षेत्री, अस्त, पापी ग्रह से दृष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ बैठा हो तब दांपत्य जीवन के लिए अशुभ योग बनता है। अतः कुंडली में शुक्र की स्थिति का अवलोकन जरूर करना चाहिए। मंगल मंगल का अध्ययन किये बिना विवाह के पक्ष से कुंडलियों का अध्ययन अधूरा ही रहता है।

वर-वधू की कुंडलियों का विश्लेषण करते समय पहले कुंडली में मंगल की भूमिका का विचार अवश्य करना चाहिए कि मंगल किन भावों में स्थित है कौन से ग्रहों से दृष्टि संबंध बना रहे हैं तथा किन भावों एवं ग्रहों पर इनकी दृष्टि है। मंगल से मांगलिक योग का निर्माण होता है। यदि कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में मंगल होता है तो कुंडली मांगलिक कहलाती है क्योंकि इन घरों में बैठकर मंगल सप्तम भाव को प्रभावित करता है। अतः कुंडली में मंगल की स्थिति ठीक होनी जरूरी है क्योंकि मंगल ग्रह की अशुभ स्थिति वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है।

विशेष: यदि आपकी शादी नहीं हो रही है या आपके दांपत्य जीवन में सुख की कमी है तो आप किसी विद्वान ज्योतिषी से कुंडली दिखाकर गुरु, शुक्र और मंगल का उपाय करें। ऐसा करने से ग्रह की शुभता बढ़ेगी जिससे आपकी विवाह संबंधी समस्याएं दूर होंगी एवं शादी जल्द होगी ।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.