दर्शनीय है श्री नरसिंह स्थान डाॅ. राकेश कुमार सिंह ‘रवि’ आदि-अनादि काल से धर्मपरायण महिमामय देश भारतवर्ष में जगत्नियंता विष्णु भगवान की पूजार्चना कितने ही रूपों में की जाती है। इसमें दशावतारों का महत्त्व अक्षुण्ण है।
समय-समय पर जगत के कल्याणार्थ भगवान श्री हरि ने जगतोद्वार का मार्ग प्रशस्त करने के क्रम में जिन दस रूपों को धारण किया उन्हें ही दशावतार कहा गया है जिसमें ‘नृसिंह अवतार’ को दशावतार क्रम में चतुर्थ स्थान प्राप्त है। इतिहास गवाह है कि श्री विष्णु भगवान भक्त प्रहलाद के अंतर्नाद पर हिरण्यकशिपु को मारने के लिए आधे पुरूष और आधे सिंह के रूप में इस धराधाम पर अवतरित हुए।
इसी कारण भगवान के इस चैथे अवतार को नृसिंह या नरसिंह अवतार कहा जाता है। विद्वानों का मानना है कि पृथ्वी के विकास क्रम में टर्शियरी उपकल्प के आॅलिगोसिने एवं माइयोसिन युग में नृसिंह का जन्म हुआ था।
वैसे तो संपूर्ण देश में नृसिंह देव के कितने ही पूजन तीर्थ हैं जिनमें श्री योग नृसिंह भगवान, यादवाद्रि, नृसिंह देव-मैहर, श्री नृसिंह मंदिर ओबिलम्, श्री नृसिंह नाथ (पाइक माला) संबलपुर, श्री उग्र नरसिंह हम्पी, श्री पन्ना नृसिंह मंदिर मंगलगिरि, तिरूपति नृसिंह बाडी (शिरोल) कोल्हापुर, नृसिंह मंदिर गया, नृसिंह- स्थान, कोच्ची, नृसिंह स्थान (नृसिंह टीला) दतिया, नृसिंह टेकरी - ओंकारेश्वर, हजारी बाग का नृसिंह स्थान, कराड़ का कोल नृसिंह, कुर्दबाडी का नरसिंह देवालय, झरनी नृसिंह, बैजनाथ आदि का नाम श्रद्धा-भक्ति के साथ लिया जाता है। पर इन सबों के मध्य हजारीबाग के नृसिंह स्थान का विशेष मान है जो चमत्कारी शक्ति से परिपूर्ण मनोकामनापूरण केंद्र के रूप में दूर-देश तक प्रसिद्ध है।
संपूर्ण उत्तरी छोटानागपुर प्रक्षेत्र के मध्यकालीन जाग्रत तीर्थों में से एक नरसिंह स्थान हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 8 किमी. की दूरी पर हजारीबाग - बड़कागांव मार्ग पर अवस्थित नरसिंह स्थान मोड़ से तकरीबन दो किमी. अंदर कुपरियांवा ग्रामीण क्षेत्र के बाहरी छोर पर है। यहां तक जाने के लिए छोटे- बड़े वाहन हजारी बाग से सहज में ही मिल जाते हैं।
इस स्थान के विधिवत् दर्शन-पूजन, प्राचीन इतिहास से जुड़े तथ्यों के अध्ययन, अनुशीलन और देवालयांे के जानकार तीर्थ-विप्रों से ली गई जानकारी से स्पष्ट होता है कि पहले वादस राज्य तत्पश्चात् रामगढ़ राज्य के राजा हेमंत सिंह के राज्य में सिरिस-कुटुंबा के पहुंचे हुए ब्राह्मण विद्वान दामोदर मिश्र का 500 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में देव आदेश से आगमन हुआ जहां हजारीबाग से दक्षिण कोनार नदी के तट पर विशाल सरोवर के किनारे सुरम्य वन-प्रान्तर क्षेत्र दूर-दूर तक शोभायमान था।
आगे इसी स्थान पर पं. दामोदर मिश्र ने संवत् 1645 ई. में नृसिंह देवता की स्थापना की। तब यहां एक कक्षीय खपरैल भवन में पाषाण खंड का ताॅखा बनाकर देव-विग्रह स्थापित किया गया। कहते हैं बाबा बड़े ही उच्च कोटि के साधक थे तभी तो रामगढ़ रियासत के राजा ने इन्हें 22 एकड़ मौजा की जमींदारी प्रदान की थी।
आज भी यहां के पुजारी इन्हीं के वंशज हैं। श्री नरसिंह मंदिर के ठीक दूसरी तरफ एक प्राचीन गहरा कुआं है और कुछ ऐसा भी कहते हैं कि पं. मिश्र को श्री नृसिंह नाथ का यह प्रभावोत्पादक देव विग्रह वहीं होने की जानकारी निद्रा में मिली। वस्तुतः प्राप्त होने पर उसी को यहां स्थापित कर दिया गया। मूर्ति का निरीक्षण करने पर इसका मूर्तिशिल्प स्पष्टतः पालकाल का दृष्टिगोचर होता है।
बाद के समय में भी इस मंदिर का कुछ-कुछ कार्य होता रहा पर इसके जीर्णोद्वार का काल 1995 का है जब स्व. मधुसूदन पाठक के पुत्र श्री लंबोदर पाठक ने जय शिव नरसिंह सेवा संस्थान के सौजन्य से हजारी बाग के नागरिकों एवं ग्रामीणों की सहयोग राशि द्वारा इसे नया चित्ताकर्षक रूप-रंग प्रदान किया।
मंदिर परिसर पहुंचते ही इसके विशाल अलंकृत द्वार और उसके ऊपर बनी गरूड़ की अति आकर्षक प्रणम्य मुद्रा की प्रतिमा भक्तों के स्वागतार्थ प्रतीत होती है। मंदिर में प्रवेश करते ही इसके 28 फीट ऊंचे अलंकृत शिखर का दर्शन होता है जो नौ पहल युक्त व आकर्षक कमलदल की मीनाकारी से सुसज्जित है।
इस मंदिर के निर्माण में अंक 24 का प्रभाव विशेषकर इस कारण है कि भगवान श्री विष्णु के कुल अवतारों की संख्या मूलतः 24 ही है जिनमें श्री नृसिंह नाथ 14 वे क्रम पर गण्य हैं। मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व एक विशाल बरामदे से होकर गुजरना होता है जो 24 स्तंभों पर अवलंबित है।
इसी के एक तरफ हनुमान जी का स्थान और ठीक सामने नृसिंह देव मंदिर का द्वार है। यहां की दीवारों पर धार्मिक विषयों के कथानकों से जुड़े चित्रांे का सुंदर चित्रण देखकर तन-मन भक्ति रस में सराबोर होता चला जाता है। मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश करते ही पीठस्थ शक्ति का साक्षात् अनुभव होता है। गर्भगृह में ताखे के ठीक बीचोबीच वस्त्राभूषणों से सुसज्जित भगवान नरसिंह का देव-विग्रह देखते ही चित्त में असीम शांति मिलती है।
इसी ताॅखे पर एक तरफ नवग्रह व गौरी शंकर तो दूसरी तरफ सूर्य नारायण, पंचमुखी महादेव, गौरी शंकर व नारद जी का पूजन स्थान है। गर्भगृह की सजावट व उसकी झांकी दर्शनीय है। मंदिर के एक पुजारी श्री उपेंद्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि यह मंदिर प्रत्येक दिन सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर तीन बजे से रात्रि आठ बजे तक भक्तों के दर्शनार्थ खुला रहता है।
इस मंदिर के ठीक दूसरी तरफ दशावतार मंदिर देखने लायक है जहां सभी दस मंदिर एक ही रूप व प्रकार के निर्मित हैं पर चैथे स्थान के मंदिर में बाबा नरसिंह का विग्रह न होकर लक्ष्मी-नारायण विद्यमान है। इस पर मंदिर के पुजारी श्री गिरिधारी मिश्र बताते हैं कि बाबा दामोदर मिश्र के राय-विचार से ही ऐसा किया गया है। इसी दशावतार मंदिर के एक तरफ मां काली मंदिर व दूसरी तरफ लक्ष्मी नारायण मंदिर विराजमान है।
इसके आगे के भाग में महामाया सिद्धेश्वरी देवी जी का स्थान है। कहते हैं नरसिंह पूजन में मां सिद्धेश्वरी जी का पूजन भी आवश्यक हे। श्री नृसिंह जी का बीज मंत्र ‘‘ऊँ क्षौम्’’ है। वैसे तो नरसिंह स्थान में साल के सभी दिन भक्तों एवं दर्शकों का आगमन बना रहता है। पर हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा के ठीक एक दिन पूर्व नृसिंह चतुर्दशी को यहां विशाल मेला लगता है। वैसे यहां का तीन दिवसीय कार्तिक मेला भी विख्यात है।
लगभग पांच एकड़ भूमि में विस्तृत बाबा नरसिंह देव का यह स्थान आज शादी -ब्याह, रोपना, लड़का-लड़की की देख दिखाई व अन्यान्य सामाजिक समारोहों की स्थली के रूप में भी खूब नाम कमा रहा है। हजारी बाग के निवासी राघवेंद्र शरण सहाय कहते हैं कि बाबा सभी भक्तों के मनोरथों को अवश्य पूर्ण करते हैं।
सचमुच झारखंड की धरती पर अवस्थित दर्जनों देवालयों के मध्य श्री नृसिंह स्थान की महता व प्रसिद्धि दिनोदिन बढ़ते जाना इस बात का द्योतक है कि यहां एक बार भी आने वाले बाबा के भक्त सदा-सर्वदा के लिए बन जाते हैं। शस्य-श्यामला भूमि पर लगभग 500 वर्षों से विराजमान इस देव स्थल की प्रसिद्धि व महिमा का गान पूरे देश में है।