दीवाली या काल रात्रि पं. किशोर घिल्डियाल दीवाली को पौराणिक ग्रंथों में कालरात्रि का नाम दिया गया है जो कि अशुभ रात्रि का प्रतीक है जिससे यह प्रश्न उठता है कि जो रात्रि अशुभ है उसमें लक्ष्मी पूजन का विधान क्यों है? इस प्रश्न का समाधान ‘‘तांत्रिक रहस्य’’ में दिया गया है। ‘‘ शक्ति संगम’’ तंत्र के काली खंड में अनेक विशिष्ट रात्रियों का उल्लेख है जिसमें कालरात्रि के रूप में दीवाली की रात को माना गया है। जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गई है। इस ग्रंथ में कालरात्रि मातृकाओं का उल्लेख है। कालरात्रि जहां शत्रु विनाश करने वाली है वही इसे शुभत्व की प्रतीक व सुख सौभाग्य व संपदा प्रदान करने वाली भी माना जाता है। मंत्र में कालरात्रि को गणेश्वरी की संज्ञा प्राप्त है जो ऋद्धि-सिद्धि देने वाली है। ‘‘मंत्र महोदधि’’ में कालरात्रि का ध्यान करते हुए लिखा गया है कि उदीयमान सूर्य जैसी आभावाली, बिखरे बालों वाली, काले वस्त्र धारण किए हुए, चारो हाथों में दंड, लिंग, वर एवं भुवन धारण करने वाली, त्रिनेत्र धारिणी, विविध आभूषणों से समलकृत प्रसन्नवदना देवगणों से सेवित एवं कामबाण से विकलित शरीरवाली मायाराज्ञि कालरात्रि का ध्यान करता हूं। इस रात्रि को जहां पुराण एवं शास्त्र अशुभ मानते हैं वहीं तंत्र शास्त्र उत्तम एवं सिद्धिदायिनी मानता है। तंत्र में प्रयुक्त प्रयोगों (सम्मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन आदि) हेतु प्रयुक्त शक्तियां, भूत, प्रेत भैरवी आदि इस रात्रि को उन्मुक्त विचरती है। इसलिए प्राचीन काल से ही तांत्रिक इसी रात्रि को सिद्धि प्राप्त करते रहे हैं। ‘‘जीव विद्या तंत्र’’ मैं इस कार्तिक अमावस्या की कालरात्रि को मात्रृकाओं तथा श्री विद्या के रूप में महत्त्व दिया गया है। इसलिए शक्ति उपासक इस रात्रि को साधना-संपन्न कर मंत्र-तंत्र व पराशक्ति की प्राप्ति करते हैं तथा इस विशेष रात्रि को महानिशा भी कहते हैं। दीवाली की रात्रि के चार प्रहर अपना अलग-अलग महत्त्व रखते हैं प्रथम-निशा, द्धितीय-दारूण, तृतीय-काल, चतुर्थ महा। सामान्यतः दीवाली में आधीरात के समय लक्ष्मी की साधना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक ग्रंथों में भी आधी रात के बाद ही मुहूत्र्त का समय बताया गया है। भारतीय काल गणनाओं में 14 मनुओं का समय बीतने पर प्रलय के पश्चात् पुनः निर्माण, रचना, नई सृष्टि की शुरूआत इसी दिन हुई थी इसलिए नए सिरे से समय या काल की गिनती होने के कारण इसे कालरात्रि कहा जाने लगा है। वैसे भी सूर्य जब सातवीं राशि में प्रवेश करता है तो उत्तरार्द्ध आरंभ होता है। चूंकि यह मास कार्तिक में पड़ता है व इसकी पहली अमावस्या ही नई शुरूआत व नवनिर्माण का त्यौहार होता है। इसी प्रकार साल के अंत में सूर्य के मीन राशि में प्रवेश करने पर होली नामक त्यौहार मनाया जाता है जो साल के नवीनीकरण का प्रतीक होता है।