दीपदान का महत्व
दीपदान का महत्व

दीपदान का महत्व  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 25364 | अकतूबर 2011

पंचपर्व दीपावली एवं दीपदान का महत्व रश्मि चैधरी भारतीय पर्वों में दीपावली ही एक मात्र एैसा पर्व है जिसके पहले और बाद में भी अनेक महत्वपूर्ण पर्व आते हैं। उन सबका महत्त्व भी किसी भी मायने में दीपावली से कम नहीं है। प्रत्येक की महत्ता और उनके पीछे के पूर्व इतिहास एवं अन्यंतर कथाओं के बारे में बताया गया है इस लेख में।

‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’: ‘‘हे ईश्वर! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ।’’ वस्तुतः दीपावली पर्व पर दीपदान एवं दीप प्रज्ज्वलित करने का मुख्य प्रयोजन यही भावना है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी दीपदान की अत्यंत महिमा बताई गई है।

‘‘दीपदान’’ एक ऐसा दान है जिसके करने से मनुष्य को इस लोक में अत्यंत तेजोमय शरीर की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु के बाद सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में पूरे मास एवं विशेषकर दीपावली पर धन त्रयोदशी से लेकर यम द्वितीया तक दीपदान करना पूर्णतया फलदायक होता है।

पंचपर्व दीपावली पर दीपदान की महŸाा: दीपावली पर्व के प्रथम दिवस को ‘धनतेरस’ के नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को ‘धनवंतरि जयंती’ एवं ‘धन त्रयोदशी’ दोनों ही पर्व मनाने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्यदेव ने ‘कलि’ के द्वारा निर्मित रोगों से पीड़ित संसार के प्राणियों को रोगों से मुक्त करने एवं देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए (कलियुग में) काशी नगरी में ‘कल्पदंत’ नामक ब्राह्मण के पुत्र रूप में जन्म लिया था। आगे चलकर वे ही ‘धनवंतरि’ के नाम से प्रसिद्ध हुए जिन्होंने राजपुत्र सुश्रुत को अपना शिष्य बनाया एवं ‘चिकित्सा शास्त्र’ (आयुर्वेद) की रचना की।

इस दिन नये गणेश लक्ष्मी, नये बर्तन, मिठाई एवं खील-खिलोने बाजार से खरीदने की परंपरा प्रचलित है। इस दिन ‘वैद्यराज धनवंतरि’ एवं यमराज के निमिŸा घर के मुख्यद्वार पर दीप प्रज्ज्वलित कर आरोग्य एवं दीर्घायु की कामना करनी चाहिए। ऐसा करने से किसी भी प्रकार के रोग एवं अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

‘नरक चतुर्दशी’ को दीपदान का महत्त्व: दीपावली के दूसरे दिन (कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) को ‘नरक चतुर्दशी’ या ‘रूप चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संध्याकाल में धन के देवता ‘कुबेर’ के निमिŸा दीपदान करने से नरक का भय नहीं रहता तथा घर परिवार में खुशहाली एवं धन-समृद्धि तथा रूप की निरंतर वृद्धि होती है। दीपावली पर दीपदान का महत्व: कार्तिक मास की ‘अमावस्या’ को दीपावली का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

इस दिन रात्रि में विघ्न विनाशक गणेश एवं लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इस दिन रात्रि में शुभ मुहूर्त में स्नानादि से निवृŸा होकर गणेश जी, विष्णु जी, महालक्ष्मी भारतीय पर्वों में दीपावली ही एक मात्र एैसा पर्व है जिसके पहले और बाद में भी अनेक महत्वपूर्ण पर्व आते हैं। उन सबका महत्त्व भी किसी भी मायने में दीपावली से कम नहीं है।

प्रत्येक की महत्ता और उनके पीछे के पूर्व इतिहास एवं अन्यंतर कथाओं के बारे में बताया गया है इस लेख में। जी एवं कुबेर आदि के प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा समर्पित करते हुए इन सभी देवताओं के निमिŸा अपनी सामथ्र्यानुसार अधिकाधिक दीपों का दान करना चाहिए। दीपावली की रात्रि को ‘महानिशीय काल, ‘महाकालरात्रि’ आदि भी कहा जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ तंत्र-पूजा एवं ‘मंत्रोच्चार’ का भी बड़ा महत्त्व है।

अतः जो व्यक्ति तंत्र-मंत्र की सिद्धि चाहते हैं उन्हें महालक्ष्मी पूजन के बाद तिल के तेल का दीपक लाल बŸाी डालकर काली जी या भैरव जी के निमिŸा प्रज्ज्वलित करना चाहिए। तत्पश्चात् उसके सामने किसी शुद्ध आसन पर बैठकर पूरे मनोयोग (मन, वाणी एवं कर्म) से अभीप्सित मंत्रोच्चार करना चाहिए।

इससे मंत्र अवश्य सिद्ध होता है एवं वांछित फल की प्राप्ति होती है। ‘गोवर्धन-पूजा’ पर दीपदान का महत्व: कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ‘गोवर्धन पूजा’ एवं अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है। इस दिन पशु धन की पूजा तथा ‘गोवर्धन पर्वत’ की पूजा करने का विधान है। ‘जीवन में स्थायित्व’ एवं सुख समृद्धि प्राप्त करना ही इस पूजा का उद्देश्य है।

इस दिन विश्वकर्मा जी के निमिŸा दीपदान करने से घर में टूट-फूट होने का भय नहीं रहता। चित्रगुप्त जी की पूजा भी इस दिन की जाती है। दीप जलाकर विधिपूर्वक चित्रगुप्त जी की पूजा करने से आय, विविध धन की प्राप्ति होती है। भाईदूज पर दीपदान का महत्व: दीपावली के अंतिम दिन को ‘भाई दूज’ के रूप में मनाते हैं। कार्तिक शुक्ल-पक्ष द्वितीया को भाई-दूज अथवा ‘यम- द्वितीया’ भी कहते हैं।

इस दिन यमुना नदी के तट पर दीपदान करने का विशेष महत्त्व बताया गया है। यम और यमुना-सूर्य देव की संतानें कही गई हैं। इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन कराया था तब यमलोक में बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया था। तभी से इस तिथि को यम द्वितीया अथवा भाई दूज के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।

इस दिन जो बहनें अपने भाईयों के दीर्घजीवन के लिए यम देवता के निमिŸा दीपदान करती हैं, उन्हें अपने भाईयों का सुख दीर्घकाल तक प्राप्त होता रहता है। इस दिन (यदि हो सके तो) भाई-बहन को साथ-साथ यमुना नदी में स्नान, पूजन एवं दीपदान अवश्य करना चाहिए। पूजनोपरांत भाई परमब्रह्म परमेश्वर भगवान भास्कर की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

ऐसा करने से सूर्यदेव के तेज के समान ही तेजोमय एवं कांतिमान शरीर की प्राप्ति होती है। भगवान सूर्यदेव की इस प्रकार आराधना करने से प्रजाओं के स्वामी भगवान सूर्य शीघ्र ही प्रसन्न होकर संपूर्ण मनोरथ सिद्ध करते हैं। कहा भी गया है- ‘‘तोषितेऽास्मिन् प्रजानाथे नराः पूर्ण मनोरथाः’’।।

जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस प्रकार दीपावली पर्व पर पांचों दिन एवं सप्तमी तिथि को सूर्यदेव के निमिŸा दीपदान करता है, वह संपूर्ण मनोरथों को प्राप्त करके अंत में सूर्य लोक को जाता है। दीपदान करने की विधि: व्रती को चाहिए कि जिस किसी भी दिन दीपदान करना हो, उस दिन सर्वप्रथम स्नानादि से शुद्ध होकर, निम्न मंत्र बोलते हुए अपने घर के मध्य भाग में एक घृत कुंभ एवं जलता हुआ दीपक भूमिदेव को अर्पित करें।

मंत्र: शुभम् करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदाम्।

शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपः ज्योतिः नमोऽस्तुते।। यह मंत्र बोलकर, दीपक की विधिवत् जल, फूल, अक्षत, रोली, मौली तथा मिष्ठान आदि के द्वारा पूजा करें। तत्पश्चात् विशिष्ट देवता एवं नौ ग्रहों के लिए विशिष्ट रूप से तैयार किया गया दीप अपने इष्टदेव को समर्पित करें।

नौ ग्रहों के अनुसार दीपों के विविध रूप:

सूर्य: सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए आटे का दिया प्रज्ज्वलित करना चाहिए। आटा गंूधकर उसका दीपक बनाकर उसके चारों तरफ मौली लपेट देनी चाहिए। तदंतर उसमें घी, बŸाी डालकर दीपदान करना चाहिए। सूर्य ग्रह की शांति के लिए तांबे का दीपक भी बनाया जाता है। को अपने घर भोजन न करके अपनी बहन के घर पर ही उसके हाथ से बना हुआ स्वादिष्ट भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से उसे यम के भय से मुक्ति मिलती है।

कार्तिक मास में सूर्यदेव के प्रति दीपदान का महत्व: कार्तिक मास में दीपावली पर्व के अतिरिक्त सप्तमी तिथि को ‘सूर्य देव’ के निमिŸा दीपदान करना अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। इस दिन तांबे के पात्र में दीप प्रज्ज्वलित करके ‘चित्रभानु प्रीयताम्’ इस मंत्र के द्वारा उन सूक्ष्म अतीन्द्रिय, सर्वभूतमय, ‘हे

चंद्र: चंद्र ग्रह की पूजा के लिए चांदी का दीपक सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है।

मंगल: मंगल ग्रह को मजबूत करने के लिए तांबे का दीपक जलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त चुकंदर को दीपक के आकार में बनाकर उसमें घी, बŸाी डालकर जलाने से मंगल ग्रह शांत होता है।

बुध: बुध ग्रह पूजन के लिए मिट्टी का दीपक जलाना चाहिए।

गुरु: गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए पीतल का दीपक जलाना चाहिए। (सोने का दीपक भी जला सकते हैं।)

शुक्र: शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए चावल के आटे का दीपक तथा नारियल के सख्त छिलके में शुद्ध घी व बŸाी डालकर दीप जलाना अत्यंत कल्याणकारी होता है। इससे शुक्र ग्रह की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। शनि: शनि ग्रह की शांति के लिए लोहे का दीपक प्रज्ज्वलित किया जाता है। राहु-केतु: राहु ग्रह शनि की तरह तथा केतु मंगल की तरह आचरण करता है।

अतः राहु के लिए लोहे तथा केतु के लिए मिश्रित धातु का दिया जलाना चाहिए। मिट्टी का दिया प्रायः सभी देवताओं एवं नवादि ग्रहों के लिए पूर्णतया उपयुक्त माना गया है। किसी विशेष अनुष्ठान में नीब का दीपक तथा पत्तों के दीपकों को जलाने का भी विधान है।

पान का पŸाा: पान के पŸो पर घी में डुबोई गई गोल बŸाी जलाने से विघ्नों का नाश होता है। पीपल का पŸाा: पीपल के पŸो पर ज्योत जलाने से सभी रोगों का शमन होता है। जामुन का पŸाा: ऐसा माना जाता है कि यदि ‘मधुमेह’ के रोगी जामुन के पŸो पर बŸाी रखकर जलाएं तथा गणेश जी की नियमित पूजा करें तो डायबिटीज रोग में लाभ होता है। दीपावली पर्व पर लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए विशेष रूप से चांदी का दीपक तिल का तेल एवं लाल बŸाी डालकर प्रज्ज्वलित करना चाहिए।

ज्योति: जलाने के लिए हनुमान जी एवं लक्ष्मी जी के लिए चमेली का तेल, श्री गणेश, कुबेर आदि के लिए शुद्ध घी, तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि एवं राहु-केतु के लिए क्रमशः शुद्ध घी, चमेली का तेल, गाय का घी, सरसों का तेल डालकर दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिएर्।

श्वर! दीपक की बŸाी: लक्ष्मी, गणेश एवं हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए लाल रंग के वस्त्र से बनी ..... घी डालकर, ग्रहों के लिए कपास से बनी बŸाी का प्रयोग करना चाहिए। यम द्वितीया तक उपर्युक्त विधि से नियमित दीपदान एवं महालक्ष्मी पूजन करने से श्री गणेश एवं महालक्ष्मी तथ सभी ग्रहों की पूर्ण कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है। उनके प्रसाद से हमारे घर में सदैव धन समृद्धि, खुशहाली तथा ऐश्वर्य आदि की कभी भी कोई कमी नहीं रहती है। जाओ।’’ वस्तुतः दीपावली पर्व पर दीपदान एवं दीप प्रज्ज्वलित करने का मुख्य प्रयोजन यही भावना है।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.