दीपावली पर करके देखें सिद्ध लक्ष्मी साधना गोपाल राजू यह तो सभी जानते हंै कि लक्ष्मी साधना का पर्व है दीपावली, लेकिन सिद्ध लक्ष्मी की साधना ऐसे किन मनोहारी विश्वासप्रद तथा स्वयं सिद्ध उपायों से की जाय कि बाद में होने वाली लक्ष्मी-प्राप्ति का उल्लास पहले से मन में प्रकाशित होता प्रतीत हो। ऐसे शास्त्रसम्मत उपायों की विस्तृत जानकारी दी गयी है
इस लेख में जिससे आप लाभान्वित होने के आप्शन का लाभ उठा सकते हैं। लक्ष्मी, एैष्वर्य, भोग-विलास, सुख-समृद्धि, आरोग्य, आयुष्य आदि के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने बुद्धि-विवेक से कोई न कोई कर्म अवष्य करता रहता है। यदि अपेक्षित परिणामों से आप संतुष्ट नहीं हुए हों तो इस दीपावली में संयम और आस्था से यह उपाय भी करके देखें। संभवतः आपको अपनी कार्य सिद्धि के लिए सरल-सुगम मार्ग दर्षन मिल जाए।
उपाय 1: दीपावली में की जाने वाली लक्ष्मी साधनाओं में शंख कल्प उपाय एक प्रभावषाली उपाय है। यह जितना अधिक प्रभावषाली है इसका उपाय उतना ही सरल तथा सर्वसाधारण की पहुॅच के अन्दर है। वैसे तो प्रत्येक शंख पवित्र है और देव विग्रह के रुप में पूजित है। परन्तु इनमें से दक्षिण् ाावर्ती शंख, जो कि सर्वथा सुलभ नहीं है, लक्ष्मी-नारायण स्वरुप माना गया है। शंख चार वर्णों में विभक्त है। यह वर्ण उनके रंग के अनुसार सुनिष्चित किये गये हैं। श्वेत् शंख सर्वाधिक शुभ माना गया है।
शंख को यदि सेंधा नमक मिश्रित पानी में कुछ समय के लिए डुबो कर रख दिया जाए तो उसकी असलियत सामने आ जाती है। नकली शंख, जो कि प्लास्टिक, चीनी मिटट्ी आदि के बनाए जाते हैं, काले पड़ जाते हैं जबकि असली शंख इस पानी में हफ्तों पड़े रहने के बाद भी अपनी वास्तविक आभा नहीं खोते। शंख को इस प्रकार रखा जाता है कि उसका पेट ऊपर की ओर और पूंछ वाला भाग सदैव उत्तर दिषा में रहे। चावल अभिमंत्रित करके शंख में भरकर रखने से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है।
धन तेरस से लेकर दीपावली तक के तीन दिनों में शंखकल्प किया जाता है। इस दीपावली पर आप भी इन उपायों से लाभ उठाएं। धन तेरस को एक अच्छा बड़ा शंख उपलब्ध करें। अच्छा हो आपको दक्षिणावर्ती शंख सुलभ हो जाए। इसे गोमूत्र से शोधन करें अर्थात् गोमूत्र में 108 बार डुबोएं और निकाल लें।
अंतिम बार शोधन के पश्चात् इसे पोछ कर सुखा लें और पंचामृत (गंगाजल, गोघृत, मधु, मिश्री और दही) से स्नान कराएं। इस पंचामृत में तुलसी दल नहीं आता, यह ध्यान रखें। स्नान के बाद इस पर गोघृत का लेपन करें। अपनी श्रद्धा, आस्था और सुविधानुसार इसकी पंचोपचार, दषोपचार, षोड़षोपचार आदि से पूजा-अर्चना तथा धूप, दीप, आरती आदि करें। मन में निरंतर यह भाव बनाएं रखें कि आप शंख की नहीं बल्कि साक्षात् लक्ष्मी-नारायण जी की पूजा-अर्चना करके उनसे स्थाई रुप से निवास के लिए याचक बन कर याचना कर रहे हैं।
भवन में जिस पवित्र स्थान पर आपको शंख स्थापित करना है वह सुनिष्चित कर लें, क्योंकि अगले वर्ष की धनतेरस तक पूरे वर्ष शंख वहीं पर विराजमान रहेगा। इस स्थान पर थाली अथवा लकड़ी के पटरे पर विनायक यंत्र हल्दी से अंकित करें। जो साधक सक्षम हैं वे यह यंत्र चांदी के भी बनवा सकते हैं अथवा प्राणप्रतिष्ठित यंत्र समुचित स्थान से भी प्राप्त कर सकते हैं।
यंत्र चित्रित करते समय निम्न मंत्र का निरंतर जप करते रहें: वक्रतंुड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।। इस यंत्र पर शंख स्थापित कर दें और ग्यारह माला निम्न मंत्र की जप करें: ऊँ गं गणपतये सर्वविघ्नहराय सर्वाय सर्वगुरवे लंम्बोदराय ह्रीं गं नमः।। आपका श्री शंख अब पूजा के लिए तैयार है। इसी प्रकार से अन्य अनेकानेक विग्रह, धातुओं के विभिन्न दुर्लभ सिक्के, वनस्पतियां, यंत्र, रत्न आदि भी अपने प्रयोजन अनुरुप आप दीपावली के शुभ महूर्त में पूजन कर अपने प्रयोग में ला सकते हैं। धनतेरस से दीपावली तक के समय में शंख का निम्न प्रकार से पूजन करें:
सर्वप्रथम उपाय प्रारंभ करने का एक शुभ समय निष्चित कर लें। शुक्र की होरा धन संबधी उपायों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। शंख के सामने एक थाली में चावल तथा नागकेसर ले कर बैठ जाएं। निम्नलिखित शंख गायत्री मंत्र का जप करते रहें और प्रत्येक जप के साथ अग्नि में आहुति देने की तरह चावल और नागकेसर शंख में छोड़ते रहें। शंख गायत्री मंत्र ¬ऊँ शंखाय च विद्महे पवमानाय च धीमहि, तन्नो शंखः प्रचोदयात्।।
उपाय में जप संख्या कोई निष्चित नहीं है। प्रयोजन यह है कि तीसरे अर्थात् अंतिम दिन यानी दीपावली वाले दिन आपके लक्ष्मी पूजन के समय शंख गायत्री मंत्र से चावल तथा नागकेसर से पूरा भर जाए। यह आप अपनी दीपावली में होने वाली पारंपरिक पूजा से पूर्व अथवा उत्तरार्ध में कभी भी पूर्ण कर सकते हैं।
पूजा के अंत में शंख को इसी स्थिति में स्वच्छ कपडे़ से ढक कर रख दें। तदन्तर में शंख गायत्री मंत्र जपें और इसमें से चावल उठाकर इसी में छोड़ दें। पूजा के बाद शंख निरन्तर ढक कर रखें। पूरे वर्ष इस उपाय से आपके परिवार में सुख, वैभव अर्थात् लक्ष्मी-नारायण जी की कृपा बनी रहेगी।
उपाय 2: यत्र योगेष्वरः कृष्णो तत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो-मुतिर्र्धु्रवा नीतिर्मतिर्मम्।। गीता का यह मंत्र धन-धान्य की वृद्धि में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। इस मंत्र के अनेक उपाय हैं। दीपावली के शुभ मुहूर्त में आप भी एक सरल सा उपाय अवष्य करें। प्रस्तुत उपाय ऋषियों के ज्ञान, ‘मा गृधः’ कस्यास्वित् धनम् तथा गीता के निष्काम काम पर आधारित है।
उपाय के साथ-साथ यदि आप मीठी एवं प्रिय वाणी का भी प्रतिपादन करते हैं, कठोर, रुखे तथा तीखे व्यंग वाणों से बचते हैं तथा वैमनस्य, ईष्र्या तथा द्वेष भावना से सर्वथा दूर रहते हैं तो उपाय के फलीभूत होने में लेष मात्र भी विलंब नहीं रहता। परंतु यह अपनाना इतना सरल नहीं है तथाप् िप्रयास कर देखें पता नहीं लक्ष्मी जी की आप पर किस विधि से कृपा हो जाए। छोटे-छोटे दक्षिणावर्ती शंख सस्ते और सरलता से मिल जाते हैं। प्रयास करके ऐसे 18 शंख आप धनतेरस में उपलब्ध कर लें।
दीपावली की महानिषा में लक्ष्मी-पूजन काल से यह उपाय अनवरत 18 सोमवार तक करें, अक्षय लक्ष्मी की आप पर पूरे वर्ष कृपा बनी रहेगी। लक्ष्मी-पूजन काल में आप उत्तर दिषा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। गीता के उपरोक्त मंत्र का 18 बार श्रद्धा से जप करें। दीपावली से अगले सोमवार से इसी प्रकार उत्तर की ओर मुंह करके 18 बार मंत्र जप करें और प्रत्येक बार एक शंख में, हवन में दी जा रही आहुति की तरह चावल छोड़ दें।
इसी दिन चावलों से भरे शंख को किसी कुएं, तालाब अथवा नदी आदि में कच्चा सूत बांध् ाकर लटका दें। ध्यान रखें कि शंख को लटकाना है, जल में विसर्जित नहीं करना। सूत कुछ समय में गल जाएगा और शंख स्वयं ही पानी में समां जाएगा। उपाय में यह ध्यान रखना है कि दीपावली के बाद आने वाले 18 सोमवार में ही यह उपाय पूर्ण हो। प्रयोग काल में कहीं बाहर जाना हो तो अन्य स्थान पर भी यह कार्य संपन्न कर सकते हैं। यदि नित्य 18 बार उक्त मंत्र का आप जप भी कर लेते हैं तब परिणाम और भी संतोषजनक मिलने लगेंगे।
उपाय 3: धन, सुख व समृद्धि पूर्व जन्म के संस्कारवष तो मिलती ही है। वर्तमान जन्म के क्रियमाण कर्मों से भी कुछ अंष हम अवष्य प्राप्त करते हैं। यह बात सबने एक मत से स्वीकार की है। तंत्र शास्त्रों में वर्णित 64 योगनियों का नाम प्रत्येक तंत्र साधक जानता है।
इन योगिनियों तथा बावन वीरों में एक सिद्ध महावीर घण्टा-कर्ण भी हैं। आम भाषा में यह बेताल नाम से चर्चित है। जैन धर्म- तंत्र में जैन धर्मावलम्बी मानते हैं कि जितने समय में घण्टे की ध्वनि साधक सुनें उससे पूर्व ही महावीर चमत्कार दिखा देते हैं। ऐसे महावीर का एक सरलतम उपाय धन की कामना करने वाले साधकों के लिए प्रस्तुत है। दीपावली से तीन दिन पूर्व अर्थात् धनतेरस के दिन से यह उपाय प्रारंभ करें।
सर्वप्रथम धण्टा-कर्ण लक्ष्मी सिद्ध विनायक मंत्र पढ़कर कंठस्थ करलें - ऊँÐह्रीं श्रीं क्लीं ठं ऊँ घण्टाकर्ण लक्ष्मी पूरय पूरय सौभाग्य कुरु कुरु स्वाहा।। इस प्रयोग में 40, 42 तथा 43 संख्या का विषेष प्रयोजन है। यह संख्या क्यों है, यह अलग विषय है। धनतेरस के दिन 40 मंत्र जप करके गूगुल तथा चंदन के बुरादे से अग्नि में 40 आहुतियां दें। यह कार्य कठिन अवष्य सिद्ध होगा परंतु यदि किसी की सहायता भी ले लें तो यह सब सरल बन जाएगा।
दूसरे, सहायक को भी इसका पुण्य फल मिलेगा। इसी प्रकार अगले दिन उक्त मंत्र 42 बार जपते हुए उक्त सामग्री में काले तिल मिला कर अग्नि में 42 आहुतियां दें। तीसरे दिन अर्थात् दीपावली के दिन इसी प्रकार चंदन, गूगुल, तिल में शक्कर मिलाकर 43 आहुतियां मंत्र जपकर अग्नि में हविष्य स्वरुप अर्पण करें।
तीन दिन इन संख्याओं में मंत्र जपकर तथा अग्नि में इन संख्यायों में आहुतियां देने से घण्टाकर्ण जी की कृपा आप पर बनी रहेगी तथा अक्षय लक्ष्मी पूरे वर्ष आपके घर में स्थाई निवास करेंगी। यदि आपमें संयम और शक्ति है तो तीन दिन जप संख्या क्रमषः 40, 42 और 43 मालाएं रखें, प्रभाव अनन्त गुना बढ़ जाएगा।
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