सुख-समृद्धि के उपाय
सुख-समृद्धि के उपाय

सुख-समृद्धि के उपाय  

रमेश शास्त्री
व्यूस : 6303 | अप्रैल 2010

पारद धातु का अपना एक खास आध्यात्मिक महत्व है। इस धातु से बने यंत्र, मूर्तियों आदि की पूजा शीघ्र फलदायी होती है। इसके प्रभाव से जीवन में सुख, समृद्धि, धन, स्वास्थ्य इत्यादि का लाभ होता है। पारद धातु दैवीय धातु मानी जाती है। इससे बनी वस्तुओं में एक अलौकिक शक्ति होती है।

पारद लक्ष्मी: पारद धातु से बनी महालक्ष्मी की मूर्ति का पूजन करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। लक्ष्मी जी की कृपा से कार्यक्षेत्र, व्यवसाय इत्यादि में उन्नति और लाभ में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। इसे अपने घर के अतिरिक्त व्यवसाय स्थल, कार्यालय, दुकान या फैक्ट्री में भी स्थापित कर सकते हैं। इसके प्रभाव से आमदनी में वृद्धि होती है। इस मूर्ति को शुक्ल पक्ष में सोमवार, गुरुवार या शुक्रवार को पंचामृत से शुद्ध करके निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, धूप, दीप से इसका पूजन करें।

जप मंत्र: ¬ श्री महालक्ष्म्यै नमः पारद श्री यंत्र: यंत्रराज श्री यंत्र की महिमा अपरंपार है। वैसे तो श्री यंत्र सोना, चांदी, तांबा, स्फटिक आदि धातुओं से भी निर्मित होता है, लेकिन पारद धातु से निर्मित श्रीयंत्र का अपना एक विषेष महत्व है। इसे अपने घर में या व्यवसाय स्थल पर स्थापित कर सकते हैं। शुक्रवार अथवा गुरुवार को प्रातःकाल इसकी षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजा करके स्थापना करें। इसकी पूजा-अर्चना करने से धन लाभ के साथ-साथ यश और प्रसिद्धि में वृद्धि होती है। इसके समक्ष कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से वांछित फल प्राप्त होता है।

पारद पिरामिड: घर में सकारात्मक आकाशीय ऊर्जा का प्रवेश अवरुद्ध होने से घर वास्तु दोष से ग्रस्त होता है। वास्तु दोष को कम करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जिनमें अधिकांश महंगे होते हैं।

फलतः साधारण लोग ऐसे उपाय नहीं कर पाते। पारद पिरामिड एक सामान्य, सरल तथा सस्ता वास्तु दोष निवारक पिरामिड है, जिसे किसी भी दिन अपने घर में स्थापित कर सकते हैं। इसकी स्थापन में पूजा, मंत्र जप आदि की आवश्यकता नहीं होती।

पारद दुर्गा: पारद दुर्गा की पूजा-उपासना से शत्रुभय, रोग भय, तंत्र, मंत्र बंधन भय आदि से रक्षा होती है। साथ ही मानसिक तथा शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है। इसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी तिथि को घर में स्थापित कर नित्य गंध, अक्षत, धूप, दीप आदि से इसकी पूजा और निम्नोक्त मंत्र का नियमित रूप से 21 या 108 बार जप करें। मंत्र: ¬ दुं दुर्गायै नमः



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