अपनी जन्मकुंडली में स्थित राहु को लेकर जहां हम शंकाओं और भय से व्याप्त रहते हैं वहीं कुछ ऐसी स्थिति भी होती है जिनमें राहु हमारे लिये शुभ फल देने वाला बन जाता है क्योंकि राहु तो अपनी स्थिति के अनुसार ही फल करता है। राहु की शुभ स्थितियों को देखें तो कुंडली के तृतीय, षष्ठ एवं एकादश भाव में बहुत शुभ कारक माना जाता है तथा लग्न, पंचम, नवम व दशम भाव में भी शुभ होता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के लग्नेश, पंचमेश और भाग्येश के साथ बैठा या दृष्ट राहु भी शुभ फल कारक होता है।
वृष, मिथुन तथा कन्या राशि में भी शुभ होता है परंतु राहु की श्रेष्ठ स्थिति लाभ स्थान अर्थात एकादश भाव में होती है। त्रिषडाय में राहु (3, 6, 11 भाव)
1. यदि राहु कुंडली के तीसरे भाव में हो तो वह व्यक्ति को पुरूषार्थी और पराक्रमी बनाता है और प्रतिस्पर्धा की शक्ति देता है और जीवन के संघर्ष में सहायक होता है।
2. यदि कुंडली के छठे भाव में राहु हो तो विरोधियों पर विजयी बनाता है तथा व्यक्ति प्रतिस्पद्र्धा में आगे रहता है।
3. राहु जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में हो तो यह उसकी श्रेष्ठ स्थिति होती है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में आकस्मिक लाभ बहुत होते हैं और व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में यह सहायक होता है। राहु जब उपरोक्त परिस्थितियों के अनुरूप शुभ स्थानगत हो तो लाभ भी बड़ी मात्रा में कराता है। ऐसे व्यक्तियों को तीक्ष्ण बुद्धि या रहस्यवादी कार्यों में भी उन्नति मिलती है। शुभ राहु वाले व्यक्ति को एन्टीबायोटिक और विषरोधी दवाइयों के कार्य में भी लाभ प्राप्त होता है।
जब शुभ स्थिति वाले राहु की दशा आती है तो व्यक्ति को थोड़े से प्रयासों से कुछ ही समय में उन्नति करा देती है तथा व्यक्ति के मन की सभी आकांक्षाओं की सहज ही पूर्ति हो जाती है। राहु आकस्मिकता का ग्रह है अतः अपनी दशा में झटके से धन लाभ भी कराता है। यदि राहु कुंडली में शुभ स्थिति में है तो निश्चित ही ऐसे में वह व्यक्ति को वैभव प्रदान करता है।