शाबर मंत्र आम ग्रामीण बोल-चाल की भाषा में ऐसे अचूक एवं स्वयंसिद्ध मंत्र हैं जिनका प्रभाव अचूक होता है। शाबर मंत्र शास्त्रीय मंत्रों की भांति कठिन नहीं होते तथा ये हर वर्ग एवं हर व्यक्ति के लिए प्रभावशाली हैं जो भी इन मंत्रों का लाभ लेना चाहता है। थोड़े से जाप से भी ये मंत्र सिद्ध हो जाते हैं तथा अत्यधिक प्रभाव दिखाते हैं। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होता है तथा किसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है। परंतु ये किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए अन्य शक्तिशाली मंत्र के दुष्प्रभाव को आसानी से काट सकते हैं। शाबर मंत्र सरल भाषा में होते हैं तथा इनके प्रयोग अत्यंत सुगम होते हैं। शाबर मंत्र से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही हो जाता है। उपयुक्त विधि के अनुसार मंत्र का प्रयोग करके स्वयं, परिवार, अपने मित्रों तथा अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं। फ्यूचर समाचार के आगामी अंकों में हम इन्हीं शाबर मंत्रों को एक शृंखला के रूप में प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसमें इन मंत्रों के साधन की विधि तथा इससे मिलने वाले लाभ की विस्तृत विवेचना की जाएगी। वैदिक, पौराणिक एवम् तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र’ भी अनादि हैं। सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं, फिर भी इन मंत्रों का आविष्कार जिन्होंने किया वे परम शिव भक्त थे। गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ शाबर-तंत्र के जनक हैं।
अपने साधन, जप-तप-सिद्धि के प्रभाव से वे भगवान् शिव के समान पूज्य माने जाते हैं। ये मंत्र प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास व श्रद्धा के पात्र हैं, पूजनीय व वंदनीय हैं। शाबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। साधक याचक होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहने की सामथ्र्य रखता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है। विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था। सामन्तशाही युग में ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग अनाधिकृत कृत्यों के लिए साधारणतया गांव के ठाकुर, गाय या बेटे आदि की सौगन्ध दिलाने पर ही अवैध कार्यों को रोक देते थे। न्यायालय, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा में आज भी भगवान की ‘शपथ’ लेकर बयान देने की प्रथा है। अधिकांश लोग आज भी अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए सौगन्ध खाया करते हैं। यह उस समय की स्मृतियां हैं, जब छोटी-छोटी जनजाति तथा उलट-फेर के कार्य करने वाले भी सौगन्ध को नहीं तोड़ते थे।
आज परिवर्तन हो गया है- सौगन्ध लोगों के लिए कोई महत्व नहीं रखती, किंतु ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी -देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं। उन देवों पर जमाने की बेईमानी का कोई असर नहीं हुआ है। शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती, किंतु शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है। उसके अंदर छल-कपट नहीं होता, वह तो यही जानता है कि मेरे माता-पिता से मैं जो कुछ कहूंगा, उसे पूरा करेंगे ही। ठीक इसी प्रकार का अटल विश्वास ‘शाबर’ मंत्रों का साधक मंत्र के देवता के प्रति रखता है। जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। शाबर मंत्रों में संस्कृत - हिंदी - मलयालम - कन्नड़ - गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है।
सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं। प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है। उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रूप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध पुरूष हैं। कई मंत्रों में इनके नाम का प्रवाह प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं केवल गुरु नाम से ही कार्य बन जाता है। शाबर मंत्र शास्त्रीय मान्यता से परे होते हुए भी अशास्त्रीय रूप में अपने लाभ व उपयोगिता की दृष्टि से विशेष महत्व के हैं। शाबर मंत्र ज्ञान की उच्च भूमिका नहीं देता, न ही मुक्ति का माध्यम है। इनमें तो केवल ‘काम्य प्रयोग’ ही हैं। इन मंत्रों में विनियोग, न्यास, तर्पण, हवन, मार्जन, शोधन आदि जटिल विधियों की कोई आवश्यकता नहीं होती। फिर भी वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि सहकर्मों, रोग-निवारण तथा प्रेत-बाधा शांति हेतु जहां शास्त्रीय प्रयोग कोई फल तुरंत या विश्वसनीय रूप में नहीं दे पाते, वहां ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं।
शाबर मंत्र साधना के महत्वपूर्ण बिंदू
1. इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरूष या स्त्री कर सकते हैं।
2. इन मंत्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयंसिद्ध-साधक रहे हैं। फिर भी कोई पूर्णत्व को प्राप्त निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए या मिल जाए तो सोने पे सुहागा सिद्ध होगा और उसमें होने वाली किसी भी परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है। षट्कर्मों की साधना तो बिना गुरु के न करें।
3. साधना समय नित्य-नैमित्तिक कर्मों को पूर्ण करके श्वेत या रक्त वस्त्र या फिर साधना के मंत्र प्रयोग में वर्णित वस्त्र धारण करना चाहिए।
4. आसन ऊन या कंबल का श्वेत, रक्तवर्णी या पंचवर्णी ग्रहण करें तथा एक बार आसन पर सुखासन में बैठकर जप की नियत संख्या पूर्ण कर ही आसन से उठें।
5. साधना में घी या मीठे तेल का दीपक एक पटल पर नवीन वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर जलायंे, जब तक मंत्र जप चले।
6. अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है परंतु शाबर मंत्र साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की महत्ता मानी गयी है।
7. पुष्प, शुद्ध जल, नैवेद्य यथाशक्ति अर्पण करें। मानस भाव उत्साह व श्रद्धा से पूर्ण हों तो मंत्र शीघ्र ही जागृत हो जाते हैं।
8. जहां दिशा का निर्देश न हो वहां पूर्व तथा उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। इस्लामी साधना में पश्चिम दिशा का महत्व है। जब तक दिशा निर्देश न हो दक्षिण की ओर मुंह न करें।
9. जहां माला का निर्देश न मिले वहां कोई भी माला प्रयोग में ला सकते हैं। वैसे तुलसी, चंदन, रुद्राक्ष, स्फटिक की माला विशेष फलदायी है। इस्लामी शाबर मंत्र साधना में ‘सीपियों या हकीक’ की माला का विधान है। यदि माला न हो तो कर रूपी मनोअंक माला का प्रयोग किया जा सकता है। नियमानुसार माला 108 मनकों वाली ही हो।
10. जप की गति मध्यम हो, न तेज न कम। तन्मयता, श्रद्धा, विश्वास मंत्र सिद्धि के अचूक साधन हैं। अविश्वास, अधूरा विश्वास व अश्रद्धा से फल प्राप्त नहीं होगा। मंत्र बड़ी ही सरलता से सिद्ध हो जाते हैं, परंतु साथ ही विषमता यह है कि इन मंत्रों की साधना करते समय विचित्र प्रकार की भयानक आवाजें सुनायी पड़ती हैं या डरावनी शक्लें दिखने लगती हैं। इसलिए इन साधनाओं में धैर्य और साहस बहुत ही आवश्यक है।
11. जप के समय किसी भी परिस्थिति में घबराएं नहीं। न ही जप व आसन छोडं़े।
12. साधना-काल में एक समय भोजन करें तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।
13. साधना दिन या रात्रि में किसी भी समय कर सकते हैं। शाबर मंत्र साधना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, दशहरा, गंगा दशहरा, शिवरात्रि, होली, दीपावली, रविवार, मंगलवार, पर्वकाल, सूर्य संक्रांति या नवरात्रियों से प्रारंभ की जा सकती है।
14. मंत्र का जाप जैसा है वैसा ही करें, अपनी तरफ से कोई परिवर्तन न करें। उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
15. मंत्र जप घर के एकांत कमरे में, मंदिर में, नदी-तालाब-गौशाला, पीपल वृक्ष या जप विधि में निर्देशित स्थान पर ही करें।
16. साधना प्रारंभ करने की तिथि-दिन याद रखें। प्रतिवर्ष उन्हीं तिथियों में मंत्र का पुनः जागरण करें। जागरण में कम से कम एक माला जप के साथ होम (यज्ञ) भी करें। अधिक जप करने पर अधिक फलदायी होता है।