ज्योतिष की दृष्टि से हमारे जीवन में घटित होने वाली सभी शुभ या अशुभ घटनाएं नवग्रहों पर आधारित हैं। सभी नव ग्रहों का अपना-अपना महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के नौ ग्रहों में से राहु, केतु को प्रत्यक्ष ग्रह न मानकर छाया ग्रह माना जाता है। हिंदु ज्योतिष के अनुसार राहु उस असुर का कटा हुआ सिर है जो ग्रहण के समय सूर्य और चंद्र का ग्रहण करता है। इसे कलात्मक रूप से बिना धड़ वाले सर्प के रूप में दिखाया जाता है। समुद्र मंथन के समय राहु नामक एक असुर ने धोखे से दिव्य अमृत की कुछ बूंदे पी ली थी।
सूर्य, चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु को बता दिया। इससे पहले कि अमृत उसके गले से नीचे उतरता विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर धड़ से अलग कर दिया। इसी कारण सूर्य, चंद्र से इसका वैर है और इन्हें ग्रहण लगाता है। ज्योतिष में राहु को पाप ग्रह माना जाता है। अन्य ग्रहों की भांति राहु को किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। यह जिस राशि में हो उस राशि जैसा फल देता है। यह एक तामसिक ग्रह है।
छल-कपट, झूठ बोलना, धोखा, तामसिक भोजन, चोरी आदि राहु के कारकत्वों में आते हैं। राहु 3, 6, 11 भावों में उत्तम फल देता है। वृषभ इसकी उच्च राशि, मिथुन मूल त्रिकोण राशि, कन्या स्वराशि तथा वृश्चिक इसकी नीच राशि है। शनि, शुक्र, बुध से मित्रता तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु से राहु की शत्रुता है। राहु 5, 7, 9 भाव पर दृष्टि देता है। 23 दिसंबर 2012 को राहु ने तुला में प्रवेश किया था। राहु वक्री ग्रह है और एक राशि में 18 महीने रहता है।
13 जुलाई 2014 तक राहु तुला में ही रहेगा। तुला में शनि के साथ युति होते ही राहु ने व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन में ही नहीं बल्कि पूरे समाज में आश्चर्यजनक परिवर्तन दिए। जिनकी कुंडलियों में राहु शुभ स्थिति में है उनको थोड़ी राहत जरूर मिली होगी अन्यथा राहु ने तुला में आते ही राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा व्यक्तिगत जीवन को हिलाकर रख दिया था।
गोचर में चंद्र लग्न से राहु का शुभाशुभ फल इस प्रकार है-
लग्न: लग्न पर राहु का गोचर ज्यादा बुरा नहीं होता। जातक का आत्म विश्वास बढ़ जाता है क्योंकि राहु मन में साहस देता है। किंतु मन पीड़ित रहेगा, दुखी रहेगा। मन भ्रमित भी रह सकता है। पत्नी से संबंध ज्यादा बुरे नहीं होते किंतु संतान के साथ परेशानी दे सकता है। उसका मन नई-नई योजनाओं में लगेगा, मन में नए-नए विचार आएंगे। चर्म रोग हो सकता है। जातक पर जादू-टोटके का असर हो सकता है। धर्म से मन टूटेगा। विदेश यात्राएं कष्टदायक होंगी।
द्वितीय भाव: द्वितीय भाव पर राहु का गोचर अशुभ है। जातक को उसकी पत्नी तथा बच्चों को विष से खतरा हो सकता है, फूड प्वायजनिंग भी हो सकता है। अपने ही कटु वचनों से नुकसान, आंखों एवं दांतों का रोग, धोखा खाना, भारी व्यय, धन की आकस्मिक हानि तथा परिवार में वाद-विवाद आदि अशुभ फलों का सामना करना पड़ सकता है।
तृतीय भाव: तृतीय भाव पर राहु का गोचर शुभ है। शत्रुओं का नाश, धन की प्राप्ति, भाग्य वृद्धि, विवाह की संभावना, रोग का उपचार एवं नाश, कार्यों में सफलता, साहस, यात्राओं द्वारा लाभ, मित्रों से लाभ जैसे शुभ फल मिलेंगे।
चतुर्थ: चतुर्थ भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल देता है। जातक दुखी एवं मनोविकारी रहेगा। माता को परेशानी, नए काम शुरू करने में बाधा, निवास स्थान परिवर्तन, शिक्षा में रूकावट, परिवार में शोक, दुर्घटना और अचल संपत्ति की हानि हो सकती है।
पंचम भाव: पंचम भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल देता है। आर्थिक हानि, अनचाहे व्यर्थ खर्च, संतान पक्ष से कठिनाई, अच्छाई-बुराई में अंतर न कर पाना, प्रेम-संबंध में अपमान, विवाह टूटना, संतान से दूरी जैसे अशुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।
षष्ठम भाव: छठे भाव पर राहु का गोचर शुभ फल देता है।अचानक पश्चिम दिशा से धन लाभ हो सकता है। ऋण से मुक्ति, नए कार्यों की शुरूआत, रोगों से छुटकारा, शत्रुओं का नाश, प्रतियोगिता में जीत होना जैसे शुभ फल मिलते हैं। सिर्फ मामा पक्ष को समस्याएं आती हैं। सप्तम भाव: सप्तम भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल देता है। जीवन-साथी के साथ मतभेद, जीवन साथी की बीमारी, अवैध संबंध, बदनामी, अपमान, यौन-रोग का खतरा, आकस्मिक आपदा जैसे दुष्परिणाम होते हैं।विवाह शीघ्र होता है।
अष्टम भाव: अष्टम भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल करता है। जातक को उसकी पत्नी, बच्चांे सहित खतरा, खुद के अपमान का सामना, नीच एवं दुष्ट लोगों की संगत, व्यापार तथा संपत्ति में असफलता से आर्थिक हानि, विषैले जीवों द्वारा काटे जाने का खतरा होता है।
नवम भाव: नवम भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल ही देता है। भाई-बहनों से संबंधों में कटुता आती है। मानसिक चिंताएं, धर्म और परंपरा से हट जाना, पिता से अनबन, त्रिकोण भाव में है इसलिए सिर्फ विदेश यात्रा से लाभ होता है। तंत्र साधना की ओर भी जा सकता है।
दशम भाव: दशम भाव पर राहु का गोचर मिश्रित फल देता है। राजनीति में सफलता, प्रतिष्ठा मिलती है लेकिन बुरी आदतंे अपना सकता है। चालाकी, घबराहट एवं अनिर्णय की स्थिति के कारण खुद का नुकसान कर सकता है।
एकादश भाव: एकादश भाव पर राहु का गोचर शुभ होता है। कई स्रोतों से आय प्राप्त होती है। मित्रों से लाभ, पड़ोसियों से लाभ होता है। विदेश व्यापार से लाभ, चल-अचल संपत्ति प्राप्त करना, सोने-चांदी जैसे बहुमूल्य वस्तुओं की प्राप्ति होना जैसे शुभ फल मिलते हैं।
द्वादश भाव: द्वादश भाव पर राहु का गोचर अशुभ फल देता है। प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। स्थान परिवर्तन, रक्त संबंधित रोग, शत्रुओं से खतरा, आर्थिक हानि, टांग टूटना, प्रत्येक कार्य में असफलता जैसे दुष्परिणाम मिल सकते हैं।
उपाय: राहु को ठीक करने और राहु के दुष्परिणामों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए-
1. काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।
2. सरसों का तेल व काले तिल का दान दें।
3. रात को सोते समय अपने सिरहाने जौ रखंे जिसे सुबह पक्षियों को डाल दें।
4. गणेश भगवान की आराधना करें और शनिवार का व्रत करें।
5. पीपल के वृक्ष की पूजा करें।
6. राहु स्तोत्र पढं़े।
7. ‘‘ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’’ का जाप करें। ये उपाय शनिवार के दिन करें।