ज्योतिष की दृष्टि से हमारे जीवन में घटित होने वाली शुभ या अशुभ प्रत्येक घटना नव ग्रहों पर ही आधारित होती है और नवग्रहों में भी राहु का नाम विशेष चर्चा में रहता है। जन्मकुंडली में राहु का नाम सुनते ही व्यक्ति अनिष्ट की आशंका करने लगता है जो कि काफी हद तक सही भी है परंतु प्रत्येक स्थिति में नहीं। ‘‘ज्योतिष शास्त्र के नौ ग्रहों में से राहु या केतु प्रत्यक्ष न होकर छाया ग्रह के रूप में हैं जो पृथ्वी के दो अक्षों के रूप में उपस्थित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने छल से अमृतपान कर रहे एक राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया था तो उसका ऊपरी भाग राहु व धड़-केतु कहलाया। ज्योतिष में राहु को पाप ग्रह की संज्ञा दी गई है। अन्य ग्रहों की भांति राहु को किसी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है परंतु कन्या राशि में राहु स्वराशि समान माना जाता है। राहु मिथुन राशि में उच्च व धनु में नीच का होता है। शनि, बुध व शुक्र से राहु मित्र तथा सूर्य, चंद्र, मंगल व गुरु से शत्रु व्यवहार रखता है। राहु तामसिक ग्रह तो है ही, साथ ही राहु के कारक तत्वों में भी अधिकांशतः ऐसी वस्तुएं हैं जो व्यक्ति को तामसिक प्रवृत्ति या अशुभ मार्गों की ओर ले जाती हैं जैसे- मतिभ्रम, छल-कपट, झूठ बोलना, चोरी, तामसिक भोजन, षड्यंत्र, छिपे शत्रु, अनैतिक कर्म, आकस्मिकता, नकारात्मक सोच, आदि।
कुंडली में स्थित राहु का फल:
समान्यतः शनि, शुक्र व बुध के लग्नेश होने पर मित्रता के कारण राहु शुभ फलकारक व सूर्य, चंद्र, मंगल व चंद्रमा के लग्नेश होने के कारण शत्रुभाव से समस्याकारक होता है, परंतु राहु की भाव स्थिति का इसमें विशेष महत्व है। जन्मकुंडली में तृतीय, षष्ठ व एकादश भाव में राहु उत्तम फलदायक होता है तथा लग्न, पंचम, नवम, दशम में भी अच्छा ही है, द्वितीय व सप्तम में मध्यम परंतु चतुर्थ, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित राहु अनिष्टकारक होता है। परंतु सटीक फलादेश के लिये यह देखना आवश्यक है कि राहु मित्र ग्रह की राशि में है या शत्रु की राशि में। मूल बात यह है कि यदि राहु किसी भी भाव में शत्रु राशि में हो उस भाव की हानि करेगा और यदि मित्र राशि में है तो सहायक होगा। उदाहरण के लिये यदि मीन लग्न की कुंडली में भाग्य स्थान में राहु है तो यहां लग्नेश का शत्रु तथा शत्रु ग्रह मंगल की वृश्चिक राशि में होने से भाग्योदय में बाधक होगा और वृष लग्न की कुंडली में भाग्य भाव में लग्नेश शुक्र का मित्र व मित्र शनि की राशि में होने से भाग्योदय में सहायक होगा।
राहु की अन्य ग्रहों से युति का फल:
राहु सूर्य: यदि राहु और सूर्य की युति कुंडली में है तो जीवन में पिता का सुख नहीं मिलेगा, पुत्र सुख में भी कमी होगी प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी, व्यक्ति का आत्मविश्वास डांवाडोल रहेगा, तथा भला करने पर भी भलाई नहीं मिलेगी अर्थात यश नहीं मिलेगा।
राहु चंद्रमा: राहु और चंद्रमा यदि कुंडली में एक साथ हैं तो व्यक्ति को माता का सुख कम रहेगा। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से सदैव अशांत रहेगा, एकाग्रता की कमी रहेगी, जल्दी अवसाद में आ जाना, चिंता करना आदि। ऐसा व्यक्ति व्याकुलता व घबराहट से भी परेशान रहता है तथा सर्दी की समस्याएं भी उसे सताती हैं।
राहु मंगल: राहु और मंगल की युति भी अनिष्टकारी होती है। ऐसा व्यक्ति क्रोधी व अहंकारी होता है। इस योग से दुर्घटना, शत्रु बाधा या लड़ाई झगड़े की समस्या भी होती है। स्त्री की कुंडली में यह वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं उत्पन्न करेगा।
राहु बुध: राहु और बुध की युति से निर्णय क्षमता में कमी या शीघ्रता में गलत निर्णय लेना, शिक्षा में उतार-चढ़ाव व वाणी दोष भी हो सकता है।
राहु गुरु: राहु व गुरु की युति को गुरु चांडाल दोष भी कहते हैं। ऐसे में विवेक में कमी, शिक्षा में बाधा होती है। संतान सुख में बाधायें आती हैं तथा व्यक्ति में कार्यों को व्यवस्थित करने की प्रतिभा कम होती है तथा उन्नति में भी बाधायें आती हैं।
राहु शुक्र: राहु की शुक्र से युति जातक को तामसिक विलासिता की ओर ले जा सकती है। ऐसे में मदिरापान की आदत हो सकती है। पुरूष की कुंडली में यह योग प्रेम-विवाह, अन्तर्जातीय विवाह भी करा सकता है।
राहु शनि: कुंडली में शनि, राहु की युति जातक को ऐसे कार्य से जोड़ सकती है जिसमें आकस्मिक लाभ की संभावना हो या चातुर्य से लाभ हो परंतु आजीविका में कुछ संघर्ष अवश्य रहेगा।
राहु की महादशा का फल:
यह एक सबसे महत्वपूर्ण बात है कि राहु की दशा हमारे लिये अनिष्टकारक होगी या शुभ कारक। जन्मकुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में है तो निश्चित ही अनिष्टकारी होगा। परंतु शुभ स्थिति में होने पर उतना ही आकस्मिक लाभ करायेगा। राहु की दशा के फल में मूल बंदु यह है कि यदि कुंडली में राहु चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित है तो राहु की दशा अशुभ फल कारक होगी। इसमें भी विशेष रूप से अष्टम भाव में बैठा राहु अपनी दशा में परम अनिष्टकारक होगा। इसके अतिरिक्त कुंडली के अकारक ग्रहों षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादशेश से दृष्ट या युत राहु भी अशुभ फलकारक होगा। राहु छाया ग्रह है अतः जैसे ग्रहों के प्रभाव में होगा वैसा ही फल करेगा। अब राहु की शुभ स्थितियां देखते हैं। यदि कुंडली में राहु तृतीय, षष्ठ व एकादश भाव में है तो अपनी दशा में शुभकारक होगा, इसमें भी एकादश भाव में सर्वश्रेष्ठ है। लग्न, पंचम, नवम, दशम भाव में भी शुभ है। इसके अतिरिक्त कुंडली के शुभकारक ग्रह लग्नेश, पंचमेश व नवमेश से दृष्ट या युत राहु भी अपनी दशा में शुभ फलकारक होगा। यदि कुंडली में राहु अशुभ स्थिति में है तो उसकी दशा में व्यक्ति के मन में अशांति रहेगी, मन चलायमान रहेगा, व्यक्ति मतिभ्रम के कारण गलत निर्णय करेगा और अपने कर्म तथा लक्ष्य से भटक जायेगा, बुरी आदतों का शिकार भी हो सकता है तथा बड़ों का कहना न मानना व लापरवाही के कारण असफलता जीवन में आयेगी। यदि राहु शुभ स्थिति में है तो ऐसे राहु की दशा में व्यक्ति को आकस्मिक लाभ अवश्य होते हैं तथा व्यक्ति थोड़े समय में ही अप्रत्याशित उन्नति कर लेता है और सभी रूके कार्य इस समय में स्वतः ही पूरे हो जाते हैं। राहु की दशा अनिष्टकारक ही होगा ऐसा आवश्यक नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करेगा की राहु किस भाव में तथा किन ग्रहों से प्रभावित है।
राहु के अनिष्ट फल से बचने के उपाय:
यदि आपकी कुंडली में राहु कुंडली में नकारात्मक फल दे रहा है या अपनी दशा में समस्याएं उत्पन्न कर रहा है तो निम्न उपायों को अवश्य अपनायें, लाभ अवश्य होगा।
1. ऊँ रां राहवे नमः का प्रतिदिन एक माला जाप करें।
2. दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
3. पक्षियों को प्रतिदिन बाजरा खिलायें ।
4. सप्तधान्य का दान समय-समय पर करते रहें।
5. एक नारियल ग्यारह साबुत बादाम काले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित करें।
6. शिवलिंग को प्रतिदिन जलाभिषेक करें।
7. अपने घर के र्नैत्य कोण में पीले रंग के फूल लगायें।
8. तामसिक आहार व मदिरापान बिल्कुल न करें। उपर्युक्त उपायों को निरंतर करने पर राहु से मिल रही किसी भी समस्या में आपको लाभ अवश्य होगा।