आज हम बात कर रहे हैं फिल्म संगीत के स्वर्णिम युग की ऊंचाइयों को छूने वाले गीतकार नौशाद साहब की। मरियम बानो और वाहिद अली के तीन बेटों और एक बेटी में नौशाद साहब बीच के थे। लखनऊ के राॅयल थियेटर के पास वाले घर में ही उनका जन्म हुआ जैसे उनका भविष्य उनके जन्म के साथ ही तय हो गया हो। नौशाद साहब घर से निकलते थे स्कूल जाने के लिए और पहुंच जाते थे राॅयल थियेटर में चलने वाली मूक फिल्में देखने।
वहां पर लड्डन खां व उनकी मंडली फिल्म के दृश्य के मुताबिक संगीत बजाती थी जिसे देखकर नौशाद साहब झूम उठते थे। गीत-संगीत से उन्हें इतना प्रेम था कि उन्होंने हार्मोनियम ठीक करने की दुकान में नौकरी करनी शुरू कर दी जिससे उन्हें हार्मोनियम पर थियेटर में सुने हुए गाने बजाने को मिले। खेल-खिलौने से खेलने की उम्र में नौशाद साहब हार्मोनियम से खेलने लगे और उनके संगीत प्रेम के कारण जल्द ही वे उस्ताद लड्डन खां की नजरों में भी आ गए और उनके शागिर्द बन गए। उनकी संगीत साधना तो शुरू हो गई किंतु उनके पिता जी इसके सख्त खिलाफ थे। यहीं से शुरू हुआ उनके संगीत के सफर में संघर्षों का दौर।
आइए जानते हैं ग्रहों के माध्यम से कि किस तरह नौशाद साहब ने अनेक संघर्षों को पार करते हुए फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। नौशाद साहब की कुंडली लग्न बली कुंडली का अच्छा उदाहरण है। लग्नेश चंद्रमा लग्न को सप्तम भाव से पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। षड्बल में चंद्रमा सर्वाधिक बली है। लग्न में भाग्येश बृहस्पति उच्चस्थ होकर विराजमान हैं।
बृहस्पति स्वभावतः शुभ ग्रह है और कर्क लग्न की कुंडली में भाग्येश होकर उनकी शुभता स्वतः ही बढ़ जाती है। बृहस्पति लग्न में बैठकर लग्न, पंचम, सप्तमस्थ लग्नेश चंद्रमा तथा नवम भाग्य भाव को पूर्ण दृष्टि द्वारा शुभता प्रदान कर रहे हैं। लग्नस्थ उच्च के बृहस्पति:‘हंस’ नामक महापुरुष योग बना रहे हैं। चतुर्थ भाव में स्वराशिस्थ शुक्र ‘मालव्य’ नामक महापुरूष योग बना रहे हैं। चंद्रमा, बृहस्पति व शुक्र तीन शुभ ग्रहों का केंद्रीय प्रभाव लग्न को बली बना रहा है। इसकी पुष्टि नवांश कुंडली द्वारा भी हो रही है।
नवांश कुंडली में लग्नेश मंगल नवम भाव में राहु व सूर्य से युत होकर कुछ पीड़ित अवश्य हैं किंतु चतुर्थ भावस्थ बृहस्पति व सप्तमस्थ शुक्र व चंद्र का केंद्रीय प्रभाव लग्न को बल प्रदान कर रहा है।
लग्न पर पंचमस्थ राहु का भी दृष्टि प्रभाव है जो कि नवांश कुंडली में भी दृष्टिगोचर हो रहा है। लग्न पर राहु का प्रभाव जातक को भ्रमित करता है। जातक सही व गलत के चक्कर में कई बार गलत निर्णय भी कर लेता है। चूंकि नौशाद साहब की कुंडली में शुभता की मात्रा अधिक है, इस कारण वे भ्रमित तो हुए किंतु समय रहते सही निर्णय लेने के कारण उन्हें अपने संघर्ष में सफलता प्राप्त हुई। नौशाद साहब के पिता लखनऊ कोर्ट में मुंशी थे और उनके परिवार का माहौल बहुत ही रूढ़िवादी था। नौशाद साहब कई बार सोचते थे कि वे दरबारी मुंशी की बजाय दरबारी संगीतकार के बेटे होते तो कितना अच्छा होता।
नौशाद साहब के संगीत प्रेम की जानकारी जैसे ही उनके पिता को हुई उन्होंने नौशाद साहब का हार्मोनियम घर से बाहर फेंकते हुए कहा कि यह सब इस घर में नहीं चलेगा। चूंकि भाग्येश बृहस्पति जो कि पिता के भाव के स्वामी भी हैं और षष्ठेश जो कि दशम के भाग्येश भी हैं बुध के नक्षत्र में विराजमान हैं और राहु के उपनक्षत्र में हैं। बुध व्ययेश होकर पंचम भाव में राहु से युत होकर कर्मेश मंगल की ही वृश्चिक राशि में बैठे हुए हैं।
इसी कारण नौशाद साहब को पिता का विरोध सहन करना पड़ा और अपना घर भी छोड़ना पड़ा क्योंकि उनका भाग्योदय परदेश (जन्म स्थान से दूर) में ही होना था। नौशाद साहब का जन्म लग्नेश की महादशा में हुआ था। चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में और बृहस्पति के उपनक्षत्र में हैं। नौशाद साहब की बचपन से ही संगीत में रूचि थी और उन्होंने इसे ही अपना करियर बनाया। उनकी कुंडली में कर्मेश मंगल तृतीय पराक्रम भाव में बैठकर भाग्य भाव, कर्म भाव व षष्ठ भाव तीनों को ही दृष्टि द्वारा बल प्रदान कर रहे हैं।
पराक्रम भावस्थ मंगल का ही प्रभाव था कि नौशाद साहब ने पिता के द्वारा संगीत का विरोध करने पर उनसे साफ-साफ शब्दों में कह दिया था कि ‘‘संगीत मेरी जिंदगी है और मैं इसी में आगे बढ़ना चाहता हूं।’’ कर्मेश मंगल चंद्रमा के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्षत्र में हैं। चंद्रमा लग्नेश होकर मन के कारक भी हैं और शुक्र सुखेश और लाभेश होने के साथ ही गीत, संगीत, सिनेमा, चलचित्र आदि का कारक भी है। इसी कारण नौशाद साहब की गीत-संगीत में बचपन से ही रूचि थी और वे पढ़ाई के बजाय सुरों की मोहिनी में खोए रहना ज्यादा पसंद करते थे। चंद्रमा के बाद प्रारंभ हुई पंचमेश व कर्मेश मंगल की महादशा।
इस अवधि में उन्होंने हार्मोनियम ठीक करने की दुकान में काम करते-करते हार्मोनियम बजाना सीखा और उस्ताद लड्डन खां जी के शागिर्द बनकर संगीत साधना शुरू कर दी। लगभग 16 वर्ष की आयु में पिता-पुत्र के संघर्ष को समाप्त करने के लिए उन्होंने घर-परिवार को छोड़ दिया और एक नाटक मंडली के साथ नए सफर पर निकल पड़े। अब तक उनकी राहु की महादशा शुरू हो चुकी थी।
पंचमस्थ राहु भाग्येश बृहस्पति के नक्षत्र और अपने ही उपनक्षत्र में बुध अर्थात व्ययेश से युत हैं। बुध व्ययेश होने के साथ-साथ पराक्रमेश भी है। तृतीय भाव सृजनशीलता का भाव भी है। कालपुरुष की कुंडली में तृतीयेश बुध है और बुध लेखन कला के भी कारक हैं। नौशाद साहब की कुंडली में बुध अपने ही नक्षत्र और केतु के उपनक्षत्र में है। केतु लाभ भावस्थ है और तृतीय भाव, कर्मेश मंगल तथा पंचम भावस्थ राहु व बुध तथा सप्तमस्थ लग्नेश चंद्रमा को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यही कारण है कि नौशाद साहब ने गीतकार के रूप में फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई। नाटक मंडली में रहते हुए नौशाद साहब ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि अनेक जगहों पर शो किये। किंतु उन्हें यहां अपना भविष्य समझ में नहीं आ रहा था।
नौशाद साहब ने अंत में मुंबई जाने का फैसला लिया। मुंबई में नौशाद साहब ने काफी संघर्ष किया। यहां सबसे पहली नौकरी उन्हें उस्ताद झंडे खां के सहायक के रूप में मिली। उनकी तनख्वाह मात्र 40 रु. थी। फिर नौशाद साहब को ‘रणजीत’ मूवीटोन में मिली 75 रुपये तनख्वाह की नौकरी। नौशाद साहब में भगवान का दिया हुनर तो था पर जरूरत थी उसे पहचानने वाली नजर की। वह नजर बनी कहानीकार डी. एन. मनोज जी की। उनकी सिफारिश पर प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मोहन भवनानी ने अपनी फिल्म ‘प्रेम नगर’ में गीतों की जिम्मेदारी दी। फिल्म सफल हुई और नौशाद साहब को कई अन्य फिल्मों के गीत लिखने का मौका भी मिलने लगा।
संगीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म थी ‘नई दुनिया’। नौशाद साहब की सफलता के साथ ही उनका पारिश्रमिक भी बढ़ता जा रहा था। 40 रुपये तनख्वाह से शुरू होते-होते 1942 तक उनका पारिश्रमिक 1500 रु. तक पहुंच गया था। राहु के बाद 16 वर्ष तक चली बृहस्पति की महादशा ने नौशाद साहब को बुलंदियों के शिखर पर पहुंचा दिया। बैजू-बावरा, शबाब, अमर, उड़न खटोला, आन, मुगले आजम आदि अनेक सफल फिल्मों की सफलता में नौशाद साहब के गीत-संगीत का महत्वपूर्ण योगदान था।
यदि किसी भी जातक को 20 से 30 की आयु में ऐसे शुभ भाग्येश की दशा प्राप्त होती है जिसका लग्न, लग्नेश से घनिष्ठ संबंध हो और कर्मेश, पंचम भाव, सुख, लाभ आदि पर भी शुभ प्रभाव हो तो जातक को अच्छी आजीविका प्राप्त होती है तथा जीवन की सभी सुख-सुविधाएं व संपन्नता भी सरलता से प्राप्त हो जाती है। नौशाद साहब की 65 हिंदी फिल्मों में से 3 डायमंड जुबली, 8 गोल्डन जुबली, 26 फिल्में सिल्वर जुबली हुईं। ये आंकड़े उनकी सफलता की कहानी स्वतः ही कह रहे हैं। नौशाद साहब की कुंडली में लाभेश शुक्र बृहस्पति के नक्षत्र और केतु के उपनक्षत्र में है।
बृहस्पति लग्न में और केतु लाभ भाव में ही उपस्थित हैं जिसके परिणामस्वरूप ही नौशाद साहब को ‘पद्मभूषण’ और दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिले। संगीत का प्रथम ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार ‘बैजू बावरा’ को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यही कारण है कि नौशाद साहब ने गीतकार के रूप में फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई। नाटक मंडली में रहते हुए नौशाद साहब ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि अनेक जगहों पर शो किये। किंतु उन्हें यहां अपना भविष्य समझ में नहीं आ रहा था। नौशाद साहब ने अंत में मुंबई जाने का फैसला लिया।
मुंबई में नौशाद साहब ने काफी संघर्ष किया। यहां सबसे पहली नौकरी उन्हें उस्ताद झंडे खां के सहायक के रूप में मिली। उनकी तनख्वाह मात्र 40 रु. थी। फिर नौशाद साहब को ‘रणजीत’ मूवीटोन में मिली 75 रुपये तनख्वाह की नौकरी। नौशाद साहब में भगवान का दिया हुनर तो था पर जरूरत थी उसे पहचानने वाली नजर की। वह नजर बनी कहानीकार डी. एन. मनोज जी की।
उनकी सिफारिश पर प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मोहन भवनानी ने अपनी फिल्म ‘प्रेम नगर’ में गीतों की जिम्मेदारी दी। फिल्म सफल हुई और नौशाद साहब को कई अन्य फिल्मों के गीत लिखने का मौका भी मिलने लगा। संगीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म थी ‘नई दुनिया’। नौशाद साहब की सफलता के साथ ही उनका पारिश्रमिक भी बढ़ता जा रहा था। 40 रुपये तनख्वाह से शुरू होते-होते 1942 तक उनका पारिश्रमिक 1500 रु. तक पहुंच गया था। राहु के बाद 16 वर्ष तक चली बृहस्पति के गीत को मिला।
अपने अंतिम समय में नौशाद साहब किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त नहीं हुए, हां कुछ समय अस्वस्थ अवश्य रहे। 5 मई 2006 को उनका देहावसान हुआ। उस समय उनकी केतु में राहु की दशा चल रही थी। केतु मारकेश सूर्य के नक्षत्र में है और राहु षष्ठेश बृहस्पति के नक्षत्र में है। गोचर में केतु कन्या राशि अर्थात अष्टम से अष्टम तृतीय भाव में, राहु मीन राशि में नवम भाव से तृतीय को दृष्टि दे रहे थे, मारकेश व अष्टमेश शनि लग्न अर्थात कर्क राशि में लग्नेश चंद्रमा के साथ विराजमान थे, जिन पर प्रथम भावस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि थी।
इस प्रकार हमने देखा कि नौशाद साहब की कुंडली में बने अनेक शुभ योगों और उपयुक्त आयु खंड में मिली शुभ दशाओं ने उनकी ईश्वर प्रदत्त योग्यता को विकसित कर उन्हें फिल्म जगत में सफल गीतकार व संगीतकार के रूप में स्थापित किया। अपने संगीत के कारण वे सदैव हमारी स्मृतियों में विद्यमान रहेंगे।