वैदिक ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा मन का, सूर्य आत्मबल का, बुध बुद्धि और विद्या का, तथा बृहस्पति ज्ञान का कारक ग्रह है। कुंडली में लग्न व लग्नेश जीवन की रूप रेखा को दर्शाता है। लग्न और लग्नेश के बलवान और शुभ प्रभाव में होने पर जातक स्वस्थ और बुद्धिमान होता है और अपने प्रयास से जीवन में उच्च स्थान, धन तथा यश प्राप्त करता है। वैदिक ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा मन का, सूर्य आत्मबल का, बुध बुद्धि और विद्या का तथा बृहस्पति ज्ञान का कारक ग्रह है। कुंडली में लग्न व लग्नेश जीवन की रूपरेखा को दर्शाता है। लग्न और लग्नेश के बलवान और शुभ प्रभाव में होने पर जातक स्वस्थ और बुद्धिमान होता है और अपने प्रयास से जीवन में उच्च स्थान, धन तथा यश प्राप्त करता है।
द्वितीय भाव वाणी, धन व प्रारंभिक शिक्षा का स्थान है, जिसका नैसर्गिक कारक बृहस्पति ग्रह है। तृतीय भाव पराक्रम, मेहनत और प्रयास का होता है, जिसका कारक मंगल ग्रह है। तृतीयेश बलवान होने तथा भाव, भावेश पर शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि होने पर विद्यार्थी मेहनत से पढ़ाई करता है और हतोत्साहित नहीं होता। चतुर्थ भाव मन, माता और घरेलू वातावरण दर्शाता है। बलवान चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा कारक चंद्रमा की बुध व बृहस्पति से युति या दृष्टि होने पर जातक की शिक्षा सुगमतापूर्वक पूर्ण होती है। परंतु इनके पाप प्रभाव व पापकत्र्तरी योग में होने से पढ़ाई में विघ्न आते हैं और सफलता नहीं मिलती। उच्च शिक्षा के लिए तीक्ष्ण बुद्धि आवश्यक होती है। कुंडली का पंचम भाव मति व बुद्धि का स्थान होता है, जिसका कारक बुध ग्रह है। पंचम भाव, पंचमेश तथा कारक बुध पर बृहस्पति की दृष्टि या युति होने पर जातक बुद्धिमान होता है और वह सरलता से विद्या ग्रहण करता है।
चंद्रमा व बुध के परस्पर 3-11 या 5-9 स्थिति होने और बृहस्पति से दृष्ट होने पर जातक प्रखर बुद्धि होता है। चंद्रमा और बुध की पंचम या नवम भाव में स्थिति तथा बृहस्पति से दृष्ट होने पर जातक विलक्षण बुद्धि वाला होता है और मेरिट स्काॅलर बनता है। सूर्य के साथ बलवान बृहस्पति की लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ या पंचम भाव में युति से जातक विद्वान होता है। पंचमेश, बुध व बृहस्पति के साथ केंद्र या त्रिकोण भाव में होने पर जातक तीक्ष्ण बुद्धि होता है। नवम भाव उच्च शिक्षा दर्शाता है और बृहस्पति उसका कारक होता है। उच्च बृहस्पति की लग्न या द्वितीय भाव में स्थिति होने पर जातक अपनी विद्या व ज्ञान से प्रसिद्धि पाता है।
बुद्धिमान योग:
1. लग्नेश उच्च का होकर पंचम भाव में स्थित हो या वहां दृष्टिपात करे।
2. द्वितीयेश स्वक्षेत्री या उच्च का होकर केंद्र, त्रिकोण, अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में हो।
3. द्वितीयेश बृहस्पति के साथ केंद्र या त्रिकोण में हो।
4. द्वितीयेश उच्च का होकर बृहस्पति, बुध, शुक्र या चंद्रमा के साथ केंद्र या त्रिकोण में हो।
5. बलवान चतुर्थेश केंद्र, त्रिकोण या एकादश में शुभ ग्रह के साथ या उनसे दृष्ट हो।
6. बुध अपनी ही राशि में पंचम भाव में बृहस्पति के साथ या उससे दृष्ट हो।
7. बलवान पंचमेश केंद्र, त्रिकोण या एकादश भाव में हो।
8. बलवान पंचमेश बुध या बृहस्पति से युत या दृष्ट होकर पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव में हो।
9. पंचमेश और नवमेश की पंचम भाव में युति हो और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो।
10. कंेद्र या त्रिकोण में, शुभ राशि में, बुध-आदित्य योग हो और उस पर बृहस्पति की दृष्टि हो।
दशा-भुक्ति व गोचर विचार: सभी ग्रह अपनी भाव स्थिति और बलानुसार फल अपनी दशा-भुक्ति में देते हैं। शिक्षा ग्रहण काल (5-20) मंे लग्नेश, चतुर्थेश, पंचमेश, बुध, बृहस्पति ग्रह की दशा-भुक्ति होना सहायक होती है। परंतु पापी तथा त्रिकेश (6, 8, 12 भावेश) की दशा विघ्नकारक होती है। परीक्षा व परिणाम के समय ग्रह गोचर शुभ हो तो जातक अच्छे नंबरों से पास होता है। इस समय जन्म लग्नेश तथा नवांशेश का गोचर भी शुभ भाव से हो तो जातक का उत्तम नंबरों से पास होना निश्चित होता हे। बृहस्पति का पंचम नवम भाव से गोचर शुभ दशा-भुक्ति के फल में वृद्धि करता है। परंतु शनि, राहु व केतु का लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम भाव व उनके भावेश, बुध, चंद्र व दशा-भुक्ति ग्रह के ऊपर से गोचर जातक की सफलता संदिग्ध बनाता है।
कुछ उदाहरण कुंडलियां प्रस्तुत है
:गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर जन्म: 07-5-1861, 2.51 सुबह, कोलकाता इनका जन्म शुभ मीन लग्न में हुआ। मीन राशि भी है। लग्नेश बृहस्पति पंचम (विद्या) भाव में उच्चस्थ है। लग्नेश और पंचमेश का राशि विनिमय है। इस शुभ योग ने उन्हें कुलीन, विद्वान शिष्ठ और दयालु बनाया। बुद्धिकारक बुध ग्रह बृहस्पति से केंद्र में है और उच्च आत्मकारक सूर्य के साथ द्वितीय भाव में शुभ बुध-आदित्य योग बना रहा है। शुक्र के साथ होने से वे जगत प्रसिद्ध कवि और पेंटर बने। उनको नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। परंतु मंगल और केतु की चतुर्थ भाव में युति से पारिवारिक समस्याएं रहीं।
पंचम (विद्या) भाव पापकर्तरी योग में होने से विद्या ग्रहण में अवरोध का सामना करना पड़ा। स्त्री जातक जन्म: 17-3-1972, 11ः30 रात्रि में, बुलंदशहर (यू. पी.) वृश्चिक लग्न पर लग्नेश मंगल, चतुर्थेश शनि व केतु की दृष्टि है। द्वितीयेश और पंचमेश बृहस्पति अपनी मूलत्रिकोण राशि में द्वितीय भाव में स्थित है। उसकी चंद्रमा व शुक्र तथा दशम भाव पर शुभ दृष्टि है। पंचम (विद्या) भाव में बुध-आदित्य योग है। सप्तमेश शुक्र तथा लग्नेश व षष्ठेश मंगल का राशि विनिमय है। मंगल की दशम भाव पर दृष्टि है।
जातिका एम. बी. बी. एस, एम. डी. पास कर सफल चिकित्सक है। सप्तम भाव में मंगल व शनि की युति पर राहु की दृष्टि है। केतु नवम् भाव में है और सप्तमेश शुक्र, नवमेश चंद्रमा के साथ षष्ठ भाव में होने से वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है। इसके विपरीत निम्न कुंडली का अवलोकन करें।
3. पुरुष: 18-7-1962, 10ः30 सुबह, दिल्ली कन्या लग्न है। लग्नेश बुध दशम भाव में स्वराशि का है, जिसके कारण उसका पिता उच्च पदाधिकारी था। उसका बचपन सुखी रहा। लग्न पर कोई शुभ दृष्टि नहीं है वहीं लग्नेश बुध पर वक्री बृहस्पति की दृष्टि है। ज्ञानकारक बृहस्पति वक्री स्थिति में षष्ठ में है और पापकत्र्तरी योग में है। द्वितीय और नवम् भाव का स्वामी शुक्र द्वादश भाव में प्रतिकूल सिंह राशि में, पापकत्र्तरी योग में है। उस पर मंगल और वक्री बृहस्पति की दृष्टि है।
पंचम (विद्या) भाव का स्वामी शनि स्वराशि में वक्री होकर केतु व चंद्रमा के साथ है। उस पर राहु व सूर्य की दृष्टि है। इस प्रकार लग्नेश बुध, बृहस्पति और द्वितीय, चतुर्थ, पंचम व नवम भाव के स्वामी ग्रसित हैं। चीफ इंजीनियर का पुत्र होने से जातक को काॅन्वेन्ट स्कूल में शिक्षा व कोचिंग दी गई परंतु कई प्रयासों के बाद भी वह सेकेंड्री स्कूल परीक्षा पास नहीं कर पाया। वह एक प्राइवेट फर्म में सेल्समैन के बतौर कार्यरत है।