सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार शिक्षा का विचार तृतीय एवं पंचम भाव से किया जाता है। जातक परिजात के अनुसार चतुर्थ एवं पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है। फलदीपिका में लग्नेश, पंचम भाव एवं पंचमेश के साथ-साथ चंद्र, बृहस्पति एवं बुध को शिक्षा का कारक बताया गया है। भावात् भावं सिद्धांत के अनुसार पंचम से पंचम होने के कारण नवम् भाव से भी शिक्षा पर विचार किया जाता है।
नवम् का शनि विज्ञान एवं दर्शन की शिक्षा प्राप्त कराता है। शिक्षा की स्थिति का पता लगाने के लिए दशम एवं एकादश भावों का विश्लेषण भी किया जाता है। द्वितीय भाव से बाल्यकाल में विद्या ग्रहण करने की योग्यता का बोध होता है। पंचम भाव शिक्षा का मुख्य भाव होता है। पंचम भाव और पंचमेश के साथ ग्रहों का दृष्टि या युति सम्बध शिक्षा को सर्वाधिक प्रभावित करता है। त्रिक स्थानों में स्थित पंचमेश या गुरु शिक्षा में रुकावट डालता हैं। यहां यदि कोई भी ग्रह स्वगृही, या उच्च का होकर बैठा है तो वह उच्च शिक्षा प्रदान करता है।
यह स्नातक और स्नातकोŸार तक की शिक्षा आसानी से दिला देता है। दशम भावस्थ सूर्य, मंगल और राहु राजनीतिशास्त्र व तकनीकी ज्ञान, सूर्य, चंद्र और शनि धार्मिक ग्रथों का और बुध व बृहस्पति वाणिज्य व व्यापार का ज्ञान प्रदान करते हैं। चंद्रमा व शुक्र सौंदर्य प्रसाधन, वाद्य व गान विद्या प्रदान करते हैं। एकादश भाव में स्थित चंद्र और गुरु एवं पंचम भावस्थ शुक्र अनेक शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करते हैं।
ऊपर वर्णित ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त पंचम भाव के कारक गुरु का बल भी अवश्य देखना चाहिए। गुरु जितना ही बलशाली होगा जातक उतना ही विद्वान होगा। विद्या प्राप्ति के लिए ज्योतिषीय योग चार या उनसे अधिक ग्रहों के फलकथन के विषय में वराह-मिहिर कहते हैं, ‘‘ऐसे जातक विद्या प्राप्ति एवं प्राप्त विद्या के उपयोग के लिए संन्यासी होते हैं और योगकारक ग्रहों के बलाबल के भेद से भिन्न प्रकार के होते हैं अर्थात ये एक विशिष्ट प्रकार के जातक होते हैं
जो तप बल द्वारा विद्या प्राप्त कर लोक कल्याणकारी कार्य हेतु ही विद्या दान भी देते हैं। इसी विषय में आचार्य कल्याण वर्मा सारावली में कहते हैं कि ‘‘इस प्रकार के योगों में तपस्वियों का जन्म होता है। ऐसे जातक संन्यासी होते हैं। किसी-किसी जातक की कुंडली में एक विशिष्ट योग भी होता है जिसे गोल योग कहते हैं। इस योग की रचना तब होती है जब एक ही भाव में आठ ग्रह एकत्रित होते हैं। गोल योग कई वर्षों में एकबार बनता है। यह एक परम विचित्र योग होता है।
इस योग में उत्पन्न व्यक्ति परम विलक्षण प्रतिभा वाले हुआ करते हैं। यह विलक्षण स्थिति धनात्मक भी हो सकती है और ऋणात्मक भी। स्थिति के आधार पर ही यह निर्णय लिया जा सकता है कि वह सापेक्ष है या नहीं। बुधादित्य योग एवं फल लग्न चक्र के द्वादश भावों में बुध जब सूर्य के साथ होता है तब इस योग का निर्माण होता है। बुध सूर्य के सर्वाधिक निकट का ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा मात्र 88 दिनों में पूरी कर लेता है। अतः कुंडली में बुध सूर्य के साथ ही दिखाई देता है।
इस योग के बारे में श्री बी. वी रमन लिखते हैं कि ‘‘जब बुध तथा सूर्य के अंशों में 14 डिग्री या अधिक का अंतर हो तभी पूर्ण बुधादित्य योग होता है और पूर्ण फल देता है। कन्या राशि में बुध एवं सूर्य की युति उच्च कोटि का बुधादित्य योग बनाती है। सिंह लग्न में यह एक प्रबल धनदायक योग होता है क्योंकि बुध लाभेश और धनेश होकर उच्च का, लग्नेश सूर्य से युत होता है। नौ ग्रहों में केवल बुध ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो अपने घर में उच्च का होता है। कई कुंडलियों के अध्ययन से पता चला है कि बुधादित्य योग में बुध अंशों में जब सूर्य के आगे निकल जाता है तो इस योग का सर्वाधिक लाभ गणित या भौतिक में अवश्य मिलता है।
ऐसे जातक का गणित बहुत ही अच्छा होता है। गणनाओं को हल करने में बुध का ही अक्सर योगदान होता है। यदि बुध सूर्य के साथ किसी भी भाव में शुभगृही, शुभ दृष्ट, शुभ राशिस्थ हो तो जातक गूढ़ शास्त्रों का अध्ययन करने वाला, धर्म कार्यों में धन खर्च करने वाला, उपासक व यशस्वी होता है। वह दयालु, परोपकारी, विद्या विनय और समृद्ध होता है किंतु यदि बुध सूर्य के साथ किसी भी भाव में अशुभ गृही, अशुभ दृष्ट, अशुभ राशिस्थ व पाप गृही हो तो जातक राजद्रोही, व्यंग्य व कटु वचन बोलने वाला, अपने आपको अधिक विद्वान बताने वाला और अति बुद्धिवादी होता है। जातक की विद्या जातक की कुंडली के अनुसार उसकी विद्या का विचार चतुर्थ स्थान से और बुद्धि का पंचम स्थान से किया जाता है।
विद्या और बुद्धि में घनिष्ठ संबंध है। दशम भाव से विद्या जनित यश का विचार किया जाता है। बुध एवं शुक्र की स्थिति से विद्वŸाा, पांडित्य तथा कल्पनाशक्ति का और बृहस्पति से विद्या के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का विचार किया जाता है।
पुनः द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव एवं नवम् भाव से विद्या में निपुणता, प्रवीणता आदि का विचार किया जाता है। बुध ग्रह से विद्या ग्रहण की शक्ति तथा नवम् भाव और चंद्रमा से काव्य कुशलता और धार्मिक तथा अध्यात्म विद्या का विचार किया जाता है। शनि तथा नवम और दशम भाव से ज्ञान का विचार किया जाता है। शनि से ही अंग्रेजी एवं विदेशी भाषाओं का भी विचार किया जाता है।
यदि चतुर्थ भाव का स्वामी लग्न में अथवा लग्न का स्वामी चतुर्थ स्थान में हो अथवा बुध लग्नस्थ हो और चतुर्थ स्थान बली हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, तो जातक यशस्वी विद्वान होता है। यदि चतुर्थेश चतुर्थस्थ और लग्नेश लग्नस्थ हो तो भी जातक विद्या यशस्वी विद्वान होता है। यदि चतुर्थ स्थान में चतुर्थेश हो अथवा शुभ ग्रह की उस पर दृष्टि हो, या वहां शुभ ग्रह बैठा हो, तो जातक विद्या विनयी होता है। बुद्धि क्षमता
- यदि पंचम भाव का स्वामी बुध हो और वह किसी शुभ ग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो जातक समझदार, होशियार व बुद्धिमान होता है।
- यदि पंचमेश शुभ ग्रहों से घिरा हो, तो उस स्थिति में भी जातक समझदार, होशियार और बुद्धिमान होता है।
- बुध के उच्च या पंचमस्थ होने पर भी जातक समझदार, होशियार और बुद्धिमान होता है।
- पंचमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी यदि केंद्रस्थ हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो उस स्थिति में भी जातक समझदार, होशियार एवं बुद्धिमान होता ही है।
- पंचमेश जिस स्थान में हो, उस स्थान के स्वामी पर यदि शुभ ग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों तरफ शुभ ग्रह बैठे हों तो जातक की बुद्धि बड़ी तीक्ष्ण होती है।
- यदि पंचम स्थान दो शुभ ग्रहों के बीच में हो, बृहस्पति पंचमस्थ हो और बुध दोषरहित हो तो जातक तीक्ष्णबुद्धि होता है।
- यदि लग्नाधिपति नीच हो अथवा पापयुक्त हो तो जातक की बुद्धि अच्छी नहीं होती।
- यदि पंचमेश, बुध, बृहस्पति व शुक्र दुःस्थान में हों व अस्त हों तो इस स्थिति में भी जातक की बुद्धि दुर्बल होती है। स्मरण शक्ति यदि पंचम स्थान में शनि व राहु हों और शुभ ग्रह की पंचम स्थान पर दृष्टि न हो तो स्मरण शक्ति दुर्बल होती है।
पंचमेश अथवा पंचम स्थान शुभ दृष्ट या शुभ युक्त हो या बृहस्पति पंचम स्थान के स्वामी के केंद्र या त्रिकोण में हो, तो स्मरण शक्ति प्रबल होती है।