विद्या में बाधा उत्पन्न होना एक गंभीर विषय है। विद्या के अभाव से आज किसी भी व्यक्ति द्वारा जीवन को ठीक प्रकार से जी पाना असंभव है। प्रत्येक कार्य में किसी न किसी ग्रह एवं भाव की भूमिका होती है।
विद्या के लिए ज्योतिषीय आधार पर निम्न कारक हैं:
1. पंचम भाव एवं पंचमेश
2. नवम भाव एवं नवमेश
3. विद्या का मुख्य कारक देव गुरु बृहस्पति तथा द्वितीय भाव एवं उसका स्वामी। ज्योतिष का एक सामान्य नियम है कि किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में जायेगा तो जिस भाव का वह ग्रह स्वामी होता है उस भाव के कारक फलों में कमी आयेगी।
जैसे धन भाव का स्वामी यदि द्वादश भाव में बैठे तो जातक का धन अधिक खर्च होगा। परंतु पंचम भाव अर्थात विद्या पर उपरोक्त नियम लागू नहीं होता क्योंकि विद्या बांटने से बढ़ती है।
विद्या पाने में यदि बाधाएं आती हैं तो उसके निवारण के निम्नलिखित उपाय हैं:
1. यह उपाय बसंत पंचमी को ही हो सकता है। इस दिन प्रातः स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनें। निकट के मां सरस्वती की पूजा करें तथा शुद्ध घी का दीपक जलायें तथा मन ही मन विद्या बाधा दूर करने की प्रार्थना करें। साथ ही हरी इलायची का जोड़ा दो पीली चुनरी दो अभिमंत्रित गोमती चक्र मां के चरणांे में रखंे। फिर दुर्गा चालीसा और सरस्वती चालीसा का पाठ करें। दोनों गोमती चक्र उठा कर घर ले आयें और पीले वस्त्र में बांध कर अध्ययन कक्ष के द्वार पर बांध दें या अध्ययन करने वाली मेज में रख दें तथा रोज धूप-बत्ती दिखायें। इससे निश्चित लाभ मिलेगा।
2. उत्तर-पश्चिम कोने में पढ़ाई न करें। टेबल का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो। पुस्तक ईशान कोण में रखें। बच्चों के कमरे का द्वार सीढ़ियों या शौचालय के सम्मुख न हो। पढ़ते समय बच्चों का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिये। उनके कमरे में व्यर्थ का सामना कूड़ा कबाड़ आदि नहीं होना चाहिये।
3. शुक्लपक्ष की प्रथमा से शुरू करके नवमी को यह उपाय समाप्त करना चाहिये। जिसे यह बाधा हो वह निकट के किसी माता के मंदिर में जाकर शुद्ध घी का दीपक और धूप जला कर कोई पीली मिठाई एवं साबूदाने की खीर का भोग लगाये। यह नौ दिन तक करना है। अपनी बाधा दूर करने का निवेदन करना है। प्रथम दिन थोड़े गेहूं, द्वितीय दिन चने की दाल, तीसरे दिन केसर, चैथे दिन मिश्री, पांचवें दिन हरी ईलाचयी का जोड़ा, छठे दिन फिर मिश्री, सातवंे दिन भी मिश्री व चावल, आठवें दिन काले तिल तथा नवें दिन थोड़ी सी पीली सरसांे मां के चरणों में अर्पित करें। कोई चालीसा माता का करें। नवीं तिथि को 9 वर्ष या इससे कम आयु की कन्या को भोजन करायें तथा कुछ दक्षिणा भी दें। इससे विद्या की बाधा दूर होगी।
4. प्रत्येक गुरुवार को घी का दीपक जलाएं और जल से सींचे। गीली मिट्टी का तिलक लगायें। गाय को आटे के पेड़े में गुड़ और चने की दाल डाल कर खिलायें।
5. गुरुवार को मंदिर में जाकर धार्मिक पुस्तकें और कलम दान करें।
6. विद्यार्थी अपने जन्म दिन पर निर्धन विद्यार्थी को अपनी पुस्तक दान करें।
7. विद्या बाधा दूर करने के लिये तीन शनिवार सवा मीटर काला कपड़ा और सवा मीटर, नीला वस्त्र, एक जटा वाला नारियल, काला उड़द, 800 ग्राम कच्चा कोयला, काले तिल, जौ, एक रांगे का टुकड़ा, एक बड़ी कील जिसके सिरे चूने से रंगे हांे। इन सबकी पोटली बनाकर स्वयं के सिर से सात बार उतारकर जल में प्रवाहित करें, बाधायें दूर होंगी।
8. अपनी टेबल पर मां सरस्वती का फोटो रखें। उनके सामने एक पेन हमेशा पड़ा रहे और इस पेन का प्रयोग करके फिर वहीं रख दें।
9. शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार को किसी पीपल के वृक्ष का पीले चंदन से तिलक करें। थोड़ा कच्चा दूध वृक्ष की मिट्टी में डालें और गीली मिट्टी का अपने मस्तक में तिलक कर के प्रणाम करें।
10. पांच गोमती चक्र पीले वस्त्र में बांध कर अपनी टेबल पर सरस्वती जी की फोटो के आगे रखें। हर प्रकार की बाधा दूर हो जायेगी।
11. जातक के कमरे का प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में हो। सोने का विस्तर नैर्ऋत्य कोण में हो। बालक अपना सिर पूर्व में भी रख सकता है। ईशान कोण और ब्रह्म स्थान साफ हो। वहां बेवजह का सामान न हो।। बीम के नीचे न बैठें। हो सके तो कमरे में हल्के हरे रंग का पेंट करवायें।