बहुविवाह
बहुविवाह

बहुविवाह  

शुभेष शर्मन
व्यूस : 5086 | जनवरी 2007

मानव अपनी जन्म कुंडली परमात्मा के घर से ही अंकित करवाकर लाता है। जन्म जन्मांतर की करनी-भरनी का लेखा जोखा हस्तरेखाओं में अंकित होता है। वर्तमान कर्तव्य कर्मों के अनुसार रेखाएं परिवर्तित होती रहती हैं। रेखाओं का उदय अस्त हाथों में प्रत्यक्ष देखा गया है। उसी के अनुसार घटनाएं घटित होती भी देखी जाती हैं। हस्तरेखाविद व्यक्ति के हाथ की रेखाएं देखकर उसका भविष्य कथन कर देते हैं।

उसी प्रकार जन्म कुंडली को देखकर विज्ञ ज्योतिर्विद् कुंडली का फलादेश पढ़ देते हैं। इसी को ज्योतिर्विज्ञान कहा गया है। ब्रह्मांड की ज्योति में चमकने वाले नक्षत्रों तथा नव ग्रहों का पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी पर अच्छा बुरा प्रभाव पड़ता है। उसी के अनुसार पृथ्वी पर घटना-दुर्घटना का प्रादुर्भाव होता रहता है। यह सब ब्रह्मांड के ग्रहों के परिभ्रमण के अनुसार स्वतः घटित होता है। जन्म कुंडली में बहुविवाह तथा वैध या अवैध संबंध किन ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित होते हैं इस पर प्रकाश डाला जाता है।

इसके विषय में निवेदन है कि प्राकृतिक रूप में प्रत्येक प्राणी में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, योग, वियोग, नियोग आदि गुण-अवगुण स्वभाविक रूप में विद्यमान होते हैं। मानव समस्त जीवों का प्रधान है इसलिए उसमें इनका प्रभाव विशिष्ट रूप में देखने को मिलता है। काम का विषय मानवता की आचार संहिता में सभ्यता तथा शील-संयम के रूम में अनुशासित है। इस आचार संहिता की सीमा का उलंघन एक विचारणीय प्रश्न है।

तभी यह जिज्ञासा स्वतः उत्पन्न होती है कि ऐसा किस ग्रह के प्रभाव के कारण हुआ या होगा। ब्रह्मांड में विचरण करने वाली बारह राशियों को द्वादश अंकों के चक्र में प्रतिपादित कर लिया गया है। उसके अनुसार तन, मन, सहज, सुख, सुत, रिपु, जाया, मृत्यु, धर्म, कर्म, लाभ, व्यय। इन द्वादश भावों का निरूपण किया जा सकता है। इन स्थानों पर नवग्रहों का क्या प्रभाव पड़ रहा है, ये क्या कर सकते हैं, करेंगे का आकलन इनके स्वभाव, स्वामित्व, मित्र-शत्रुता की युति तथा दृष्टि से किया जाता है काम तथा कामुकता का सप्तम भाव दाम्पत्य सुख का प्रतिपादन करता है।

इसका योगदान लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, एकादश भाव भी करते हैं। शुक्र, बुध, शनि, सूर्य, राहु, केतु विशेष रूप से कामुकता को प्रभावित करते हैं। चन्द्रमा तो स्वयं बहुपत्नियों का पति है। इसलिए वह अति कामुक भी है। चंद्र इन सभी ग्रहों राशियों को अपने प्रभाव से कामुकता की ओर अग्रसर करता है। गुरु ब्रहस्पति संयमी हैं किंतु अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण सुखोपयोग का वातावरण उत्पन्न करके विषय-भोगों का प्रतिपादन करता है। धर्म कर्म में विशेष रुचि रखने वाले व्यक्तित्व भी भोग विलासों के आदि हो जाते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.