विवाहार्थ कुण्डली मिलान विशेष विचार कर कीजिये
विवाहार्थ कुण्डली मिलान विशेष विचार कर कीजिये

विवाहार्थ कुण्डली मिलान विशेष विचार कर कीजिये  

शुभेष शर्मन
व्यूस : 13292 | अप्रैल 2011

विवाहार्थ कुंडली मिलान विशेष विचार कर कीजिये! श्री शुभेद्गा शर्मन भारतीय ज्योतिष परंपरा में विवाह-निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक सारिणी का प्रयोग किया जाता है। तथापि वर-वधू के जीवन के सामंजस्य का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय तथा अनेक कमियों से त्रस्त हो जाता है जिससे दांपत्य जीवन में अनेक विकट विडम्बनाएं उत्पन्न हो जाती हैं जिन्हें संभालना कठिन हो जाता है। साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, वर्ग, नाड़ी, योनी, ग्रह, गुण आदि के आधार पर सभी पंचागों में ''वर-वधु मेलापक सारिणी'' मुद्रित होती है। उसमें गुणों की संखया के साथ दोषों के संकेत भी दिये जाते हैं। सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना गया है। उससे आधे अर्थात 18 गुण से अधिक होना ही कुंडली-मिलान का धर्म कांटा मान लिया जाता है।

इससे अधिक जितने भी गुण मिलें, वह श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक होता है। जहां दोषों का संकेत होता है उनमें भी शुभ नव पंचम, अशुभ नवपंचम अथवा सामान्य नव पंचम या श्रेष्ठ द्विर्द्वादश, प्रीति षडाष्टक, केंद्र के शुभ-अशुभ का आकलन करके सभी ज्योतिर्विद मिलान करते आये हैं और करते रहेंगे, सामान्यतया इन मिलानों का लाभ राम भरोसे सभी सज्जन उठाते हैं। इस प्रकार के मिलानों में दोषों का परिहार भी हमें मिल जाता है जैसे- नाड़ी दोषोऽस्ति विप्राणा, वर्ण दोषोऽस्ति भूभुजाम्। वैश्यानां गणदोषाः स्यात् शूद्राणां योनि दूषणम्॥ ब्राह्मणों में नाड़ी दोष मानना आवश्यक है, क्षत्रियों को वर्ण दोष की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। वैश्यों में गण दोष को प्रधान माना गया है। शूद्रों के लिए योनी दोष की उपेक्षा न करना ज्योतिष शास्त्र सम्मत है किंतु आज के वर्णहीन समाज की स्थिति में ब्राह्मण कौन हैं? क्षत्रिय कहां हैं? वैश्य कौन है? शूद्र किसको माने? क्योंकि समाज की संपूर्ण कार्य और कर्त्तव्य प्रणाली आज गड्ड मड्ड हो गयी है।

जाति का अलंकार जन्म से या कर्म से किससे मानना चाहिए आज सबके सामने यह एक ज्वलंत प्रश्न खड़ा होता जा रहा है। जन्मकुंडली में चंद्र नक्षत्र के आधार पर हम राशि, राशि स्वामी, नाड़ी, वर्ण, वश्य अंकित करते हैं। इन सबका उपयोग कुंडली मिलान के समय किया जाता है। वर्ण दोष आ रहा है तो क्या निर्णय किया जाये, आज यही समस्या सामने है। वैश्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा शूद्र अपने को शूद्रादि किस रूप में मानें, जन्म से या कर्म से। एक श्लोक के अनुसार इस निर्णय को भी धराशायी कर दिया गया है- जन्मना जायते शूद्र, संस्कारात् द्विज उच्यते। वेदपाठीभवेद् विप्र, ब्रह्मो जानाति ब्राह्मण॥ जन्म कुंडली मिलान करते समय गुण मिलान के निर्णय के अनुकूल होने पर भी कुंडली में स्थित ग्रहों के उच्च नीच, शत्रु मित्रों के योगायोग तथा उनके स्वभाव प्रकृति के अनुसार दशा, महादशा, अंतर्दशा तथा कुंडली के मारकेशों एवं आयु का प्राकलन श्रेष्ठ हो तो मिलान को श्रेष्ठता का निर्णायक मानना चाहिए। मंगली जातकों की कुंडली में मंगल, सूर्य, शनि, राहु, केतु की स्थिति पर विचार करना अतिआवश्यक है लग्न सप्तम में सूर्य, शनि, राहु, केतु, मंगल आदि क्रूर विघटनकारी ग्रहों का सामंजस्य बैठाये बिना दांपत्य में अनावश्यक रूप से विघटन होगा ही होगा।

अतः सप्तम स्थान में सूर्य तथा राहु की स्थिति पर अत्यंत ध्यान पूर्वक विचार करके मिलान का निर्णय करना चाहिए। कन्या की कुंडली में सप्तम स्थान में स्थित सूर्य का समुचित आकलन करना चाहिए। ऐसे दोषों को अवश्य मानना चाहिए जैसे लग्न में शनि है और चतुर्थ में मंगल है, अष्टम में राहू है। उनका मंगल दोष दुगुना हो जाता है। क्रूर ग्रह अपनी क्रूरता नहीं छोड़ता। कुछ न कुछ ऐसी बिडंवना उत्पन्न करता है कि जीवन छिन्न-भिन्न हो जाता है। वक्री ग्रहों के स्वभाव तथा स्थान पर विचार करना भी उचित है। केवल गुण मिलान पर संतोष कर लेना भावी दंपति के जीवन से खिलवाड़ करना है। इसी प्रकार 4, 8 और लग्न में, सप्तम में और 12वें भाव में मांगलिक दोषों का ध्यान रखना चाहिए।

सामान्य से सामान्य कुंडलियां मिलान करते समय मांगलिक दोष ध्यान में रखना चाहिए। लग्न से लेकर 12वें भाव तक शत्रु, मित्र अथवा सम-मिलान सिद्धांत पर भी ध्यान देना चाहिए। विशेषतः लग्नेश 2, 3, 5 और सातवें भाव के स्वामी आपस में मित्र हों। अगर मंगल के साथ चंद्र भी हो तो मांगलिक दोष का प्रभाव कम हो जाता है। शुक्र से भी मंगली विचार पर ध्यान देना चाहिए। मंगली विशेष होने पर लड़की के लिए विष्णु विवाह, घट विवाह आदि का परिहार किया जा सकता है। वैसे ही सप्तम में राहू होने की स्थिति में लड़का अथवा लड़की की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल होने पर राहू का दोष कम हो जाता है अगर उपरोक्त दोषों के साथ विवाह हो भी गया है तो उसके लिए विशेष समाधान पुनः उसी जोड़े से करवाना चाहिए और निरंतर गाय की सेवा करनी चाहिए।

शनि, सूर्य, राहू सप्तम में होने पर दोष पूर्ण माने गये हैं, परंतु अकेले शुक्र और बृहस्पति भी इस स्थान पर होने पर पत्नी अथवा पति हंता योग बनाते हैं। प्रयत्न करना चाहिए कि दोषों को टाला जाए। विशेष परिस्थितियों में ही उपाय का सहारा लेना चाहिए अन्यथा जीवन में कुछ बड़ी कमियां जरूर रह जाती हैं।



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