आज विश्व की काफी बड़ी जनसंख्या विवाहेतर संबंधों के कारण एड्स जैसी भयंकर बीमारी से प्रभावित हो चुकी है। ऐसे में इस ज्वलंत विषय पर ज्योतिष के आईने में बहु संबंध और द्विविवाह पर परिचर्चा तथा एक सही मार्गदर्शन एवं सराहनीय कार्य है। भारतीय ऋषियों का दर्शन अनादिकाल से इसीलिए विश्व में आदर्श एवं पूजनीय रहा है कि उन्होंने जो भी चिंतन किया वह हमेशा ही समाज के लिए लाभप्रद रहा। उन्होंने अपने चिंतन एवं दिव्य दृष्टि के द्वारा भविष्य में होने वाले लाभ एवं हानि को समझा तथा उनसे समाज को पहले से ही अवगत कराया।
उनके बताए हुए नियम एवं आदर्शाें पर चलकर भारतीय समाज ने हमेशा ही तरक्की की तथा विश्व में भारतीय दर्शन को एक प्रमुख स्थान दिलाया। विश्व के कई देश, जिनका दृष्टिकोण भोगवादी रहा है, आज भारतीय दर्शन की गंभीरता को समझते हुए इस ओर आकृष्ट हो रहे हैं तथा हमारे महापुरुषों के आदर्शों एवं चिंतन को अपने जीवन में उतार रहे हैं। अत्यधिक भोगवादी प्रवृŸिा का ही फल है कि आज विश्व की काफी बड़ी जनसंख्या एड्स जैसी भयानक बीमारी से ग्रस्त है।
भारतीय दर्शन ने हमेशा ही उन्मुक्त यौनाचार की आलोचना की है। उसने मानव को उन्मुक्तता से बचाने के लिए स्त्री-पुरुष को विवाह सूत्र में बांध कर समाज में मान सम्मान से रहने की एक अच्छी प्रथा की नींव डाली तथा उन्हें कुछ नियमों के अंतर्गत जीवन जीने का सिद्धांत दिया। हमारे भारतीय दर्शन में स्वच्छंद काम का कोई स्थान नहीं रहा है। विवाह केवल वंश परंपरा को जीवित रखने के लिए ही किए जाते थे। परंतु धीरे-धीरे हम अपनी संस्कृति को भूलते गए तथा विवाह को भी काम की पूर्ति का साधन मात्र समझ लिया। हमारे प्राचीन गं्रथों में एक से अधिक विवाह की प्रथा का मिलता है। परंतु आज स्वतंत्र भारत का कानून एक ही विवाह की अनुमति देता है।
फिर भी कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि मनुष्य को दूसरा विवाह करना पड़ जाता है। अगर हम दूसरे विवाह या दूसरी स्त्री से वैवाहिक संबंध को देखें, तो पाएंगे कि दोनों ही विषय अलग अलग हैं। अकसर लोग निम्नलिखित परिस्थितियों के वशीभूत होकर ही दूसरा विवाह करते हैं।
Û कुटुंब की वृद्धि में एक साथी का असमर्थ रहना।
Û वैचारिक मतभेद के कारण एक दूसरे से असंतुष्ट होकर तलाक ले लेना।
Û दुर्घटना में दोनों में से किसी एक की मृत्यु होना। हमारे ऋषि मुनियों ने अपने चिंतन एवं साधना के द्वारा बहुत पहले ही जान लिया था कि ब्रह्मांड में घूमते हुए ग्रहों का जीवों के ऊपर हमेशा ही प्रभाव बना रहता है। ग्रहों के फलाफल का ज्ञान गणित एवं फलित सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है। द्विविवाह के कुछ प्रमुख योग इस प्रकार हैं:
Û सप्तम भाव में स्थित मंगल पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक का दूसरा विवाह होता है।
Û सप्तम भाव में शनि और चंद्र की स्थित हों, तो जातक का दूसरा विवाह विवाहित परित्यकता से होता है।
Û सप्तमेश उच्च राशिस्थ हो कर केंद्र या त्रिकोण में हो और दशमेश से दृष्ट हो, तो जातक कई स्त्रियों से विवाह करता है।
Û सप्तमेश व द्वितीयेश शुक्र के साथ त्रिक भाव में हांे और लग्न जितने पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो, उसकी उतनी ही स्त्रियों की मृत्यु होती है।
Û लग्नेश व धनेश षष्ठ भाव में हों तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, तो जातक का दूसरा विवाह होता है।
Û लग्न, द्वितीय व सप्तम भाव में पापी ग्रह हों तथा सप्तमेश निर्बल हो, तो जातक पुनर्विवाह करता है।
Û सप्तम भाव पाप ग्रह से युक्त हो तथा सप्तमेश और सप्तम भाव का कारक ग्रह त्रिक स्थान में हो, तो जातक का दाम्पत्य जीवन कष्टमय एवं नीरस होता है। सप्तम स्थान में मंगल पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक का दूसरा विवाह होगा, यह एक ज्योतिषीय अवधारणा है
हम गणित के द्वारा यह पता कर सकते हैं कि सप्तमेश की जब दशा या अंतर्दशा होगी, उस समय इस योग के घटने की संभावना अधिक होगी। अगर यह दशा या अंतर्दशा जातक की युवा अवस्था में आती है, तो उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।
परंतु अगर यही दशा जन्म से पूर्व या वृद्धावस्था में आए, तो उसका प्रभाव जातक के ऊपर नगण्य ही होगा, वह प्रतिकूल ग्रहों की सूक्ष्म दशाओं पर जातक को प्रभावित करेगी। अतः अगर ये ग्रह जन्म के समय शक्तिशाली स्थिति में जातक को कष्ट प्रदान कर रहे हों, तो उसे चाहिए कि वह हमेशा ही उस ग्रह से संबंधित शांति (दान एवं साधना) करता रहे। मनुष्य अनैतिक संबंध कई कारणों से बना लेता है जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं।
Û स्वभाव में चंचलता एवं उच्छृंखलता।
Û स्वभाव से अत्यधिक कामुक होना। नीचे लिखे ज्योतिषीय नियम एक से अधिक स्त्रियों अथवा पुरुषों से संबंधों के सूचक हैं।
Û सप्तम भाव में लग्नेश, धनेश, षष्ठेश तथा पापी ग्रह के स्थित होने पर पुरुष परस्त्री से संबंध बनाता है।
Û गुरु व बुध सप्तम स्थान में हों, तो जातक का एक से अधिक स्त्रियों से संबंध होता है।
Û सप्तम भाव में पापी ग्रह जातक की पत्नी को दुराचारिणी बनाते हैं।
Û सप्तमेश और मंगल द्वादश भाव में स्थित हों, तो जातक अत्यंत कामुक होता है।
Û सप्तम में शनि और मंगल हों तथा शुक्र लग्न से उन्हें देखता हो, तो पति और पत्नी दोनों ही चरित्रहीन होते हैं।
Û सप्तमेश द्वादश में तथा द्वादशेश सप्तम भाव में हो, तो जातक कामुक होता है।
Û द्वादश भाव में मंगल उच्च का हो तथा शनि से दृष्ट हो, तो जातक का जीवन कष्टमय होता है, वह परस्त्री गामी होता है। उपर्युक्त जन्मकालीन ग्रहीय स्थिति में जातक का नैतिक पतन हो सकता है।
परंतु ग्रहों की नक्षत्रीय स्थिति तथा उस दशा में किए हुए प्रयास उनके प्रभावों को कम कर सकते हैं। इसीलिए जरूरी है कि ज्योतिषीय गणना कुशल और विद्वान ज्योतिष से ही कराई जाए।