रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में बिना जनम पत्रिका यानी कि रमल ज्योतिषा शास्त्र के पासे जिसे अरबी भाषा में ‘कुरा’ कहते हैं। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में इस प्रश्न के अतिरिक्त किसी भी प्रश्न में जातक का नाम, माता-पिता का नाम, जन्म तिथि, वार, घड़ी और तो पंचांग की आवश्यकता कभी किसी स्थिति में नहीं होती है। मात्र पासे द्वारा ही प्रश्न करवाकर उक्त प्रश्न का संतान सुख कब और कैसे की बावत मार्ग दर्शन व समाधान प्राप्ति किया जा सकता है।
भारतवर्ष में भविष्य कथन जानने और समाधान के वास्ते अनेक विधाओं का विद्वान समय-समय पर सहारा लिया करते हैं। रमल (अरबी ज्योतिष) विषान की अनेक शाखाएं भी वर्तमान में मौजूद है। जिसमें रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र यानी कि ‘इल्म-ए-रमल’ एक सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिष जगत की जीती जागती अगॅूठी अति शीघ्र समस्याओं के मार्ग दर्शन समाधान करने वाली पद्धति है।
जिसमें प्राणी मात्र (स्थावर और जंगम) का पूर्ण लेखा-जोखा किसी घटना विशेष से पूर्व रहते हुए शोध र खोजा जा सकता है। वैसे तो ज्योतिष की वर्तमान में और भी कई शाखाएं प्रचलित है। जिसमें मूक प्रश्न, काल नामा, केरल पद्धति, प्रश्न तंत्र इत्यादि मुख्य है। रमल की कदापि आवश्यकता नहीं होती है।
यहां तक की नाम, घड़ी, वार, दिन, समय और तो और पंचांग की भी आवश्यकता नहीं होती है। प्रश्नकर्ता मात्र रमलाचार्य के पास अपने अभिष्ट कार्य कब तक, किसके माध्यम से किस प्रकार होगा एवं अन्य तात्कालिक प्रश्न व वर्तमान समय किस ग्रह की प्रतिकूलता (अशुभता) है और कब तक बराबर परेशानीमय में रहेगी। किस शेयर्स में तेजी-मंदी कब और किस समय आएगी और इसमें कैसे लाभ होगा या नहीं।
साथ ही किस जींस में तेजी कब और मंदी कब होगी। इसमें भी लाभ प्राप्त होगा अथवा हानि इत्यादि को मन वचन और आंतरिक भावना से लेकर जाए। क्योंकि किसी भी ज्योतिष शास्त्र में श्रद्धा विश्वास का भाव प्रश्नकर्ता के मन में होना अति आवश्यक है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में जीवन के प्रत्येक कठिन से कठिन समस्या के मार्ग दर्शन और समाधान मात्र पासे डालकर किया जाता है।
पासे को अरबी भाषा में ‘कुरा’ कहते हैं। जो प्रश्नकर्ता के शकल (आकृति) को रमल अरबी ज्योतिषीय गणित के मुताबिक प्रस्तार यानी कि जायचा बनाया जाता है। उस प्रस्तार के माध्यम से प्रश्नकर्ता के समस्त प्रश्नों का मार्ग दर्शन व समाधान गणित के द्वारा तत्काल ही प्राप्त होता रहता है। यह सारी प्रक्रिया प्रश्नकर्ता के रमलाचार्य के उन्मुख होने पर होती है।
यदि प्रश्नकर्ता रमलाचार्य के सम्मुख ना हो तो प्रश्नकर्ता के समस्त प्रश्नों का जबावमय समधान सहित ‘प्रश्न फार्म’ द्वारा किया जा सकता है। जो वर्तमान में एक नवीन शोध द्वारा तैयार किया गया है। इन दोनों प्रश्न करने पर पद्धति द्वारा प्राप्त परिणाम एक ही आता है। इससे प्राप्त फलादेश में भिन्नता किसी प्रकार से कभी नहीं होती है मगर गणितीय स्थिति पूर्णतः भिन्न अवश्य ही होती हैं
आजकल भारतीय ज्योतिष द्वारा बनायी जा रही भविष्यकाल के जानने के वास्तु जनम कुंडली कुछ लोगों के पास नहीं है अथवा पूर्ण नहीं है तथा जिसके पास है भी, तो पूर्ण रूप से सही नहीं है। जिनका फलादेश पूर्ण तथा सही घटित नहीं होता है। इस कारण से प्रश्नकर्ता पूर्ण मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं होता है और ना ही उसे इच्छित लाभ की प्राप्ति होता है मगर रमल शास्त्र मेें जन्म कुंडली आदि की आवश्यकता कदापि नहीं होती है।
रमल शास्त्र (अरबी ज्योतिष) का फलादेश इनके मुकाबले काफी सटीक प्राप्त होता है। रमल (अरबी ज्योतिष) में पासा डालने के उपरांत प्रस्तार यानी कि जायचा बनाया जाता है। प्रस्तार के 16 घर होते हैं। 13, 14, 15, 16 घर गवाह यानी कि साक्षी घर होते हैं। प्रस्तार के 1, 5, 9, 13 घर अग्नि तत्व के होते हैं।
2, 6, 10, 14 घर वायु तत्व के होते हैं। 3, 7, 11, 15 घर जल तत्व के होते हैं और अंतिम घर 13, 14, 15, 16 घर पृथ्वी तत्व के होते हैं। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के 16 शकलों (आकृतियों) को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में बिना जनम पत्रिका यानी कि रमल ज्योतिषा शास्त्र के पासे जिसे अरबी भाषा में ‘कुरा’ कहते हैं। यदि स्त्री प्रश्नकर्ता हो तो सबसे अच्छा रहता है। यदि किसी कारणवश स्त्री प्रश्नकर्ता नहीं हो तो उसके पति के द्वारा उक्त प्रश्न पासे के द्वारा कया जा सकता है।
यदि ये महाशय भी ना हो तो माता-पिता के द्वारा भी पासे उाले जा सकतग हैं। उन पासों के मुताबिक बनाए गये प्रस्तार यानी कि जायचे के अनुसार मार्ग दर्शन व समाधान प्राप्ति होता है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र में इस प्रश्न के अतिरिक्त किसी भी प्रश्न में जातक का नाम, माता-पिता का नाम, जन्म तिथि, वार, घड़ी और तो पंचांग की आवश्यकता कभी किसी स्थिति में नहीं होती है। मात्र पासे द्वारा ही प्रश्न करवाकर उक्त प्रश्न का संतान सुख कब और कैसे की बावत मार्ग दर्शन व समाधान प्राप्ति किया जा सकता है।
यह सारी कार्य प्रणाली जातक के रमलाचार्य के सम्मुख होती है। मगर रमल ज्योतिष का विक्षन ना होने कील स्थिति में ‘प्रश्न फार्म’ के माध्यम से भी उक्त कार्य को संपादित किया जा सकता हैं यह दोनों कार्य प्रणाली एक ही है मगर गणितिय स्थिति अलग-अलग है।
जो कि प्रत्येक कार्य बात में विभिन्न समयानुसार आती रहती है। रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र के प्रस्तार यानी कि जायचे के प्रथम, पांचवें, छठे घर में यदि शुभ शकलें (आकृति) हो और साक्षी घर भी शुभ हो साथ ही नजर-ए-तरवीर हो, बलावल भी शुभ हो तो प्रश्नकर्ता के संतान संख व संतान से लाभ प्राथ्प्ति का होता है।
इसी स्थिति में प्रश्नकर्ता को पंचम घर में नजर-ए-थ्मकारना साथ ही निकटवर्ती व दूरवर्ती साक्षी भी शुभ हो तो संतान विशेश सुंदर, सुशील, स्वयं भाग्यशाली और परिवारजनों की भाग्यहीनता को नष्ट करने वाली, रंग साफ (गोरा) होती है। यदि इसके विपरीत हो और नजर-ए-तसदीर की दृष्टि हो तो संतान परिवार की खुशीयालता, भाग्यशालीता को भाग्यहीनता में तब्दली करने में अच्छी सहायक ोती है। शिशु का रंग कुरूप होता है।
यदि प्रश्नकर्ता के प्रस्तार में जमात शकल लग्न पर दृष्टि रखती हो तो संतान विकलांग होती है। यदि पंचम घर में अशुभ शक्लें हो व छठे घर में किसी प्रकार से अशुभ शकल हो तो संतान के अतिरिक्त स्त्री की किसी दूष्ट आत्मा की नजर यानी कि छाया (साया) होना स्पष्ट रूप से होना पाया जाता है। जिससे प्रश्नकर्ता स्त्री को शारीरिक मानसिक आर्थिक और पारिवारिक साथ्थ ही दाम्पत्य जीवन में बराबर परेशानी व टकराव रहने का योग स्थायी तौर पर कायम होता है।
प्रश्नकर्ता का संतान सुख के अतिरिक्त मन का उदासीनता व तनावग्रस्त स्थिति भी होना पायी जाती है। साथ ही जीवन बराबर असंतुष्ट और टकरावमय जिससे शोकाकुल की स्थिति में स्थायी तौर पर होना दिखाई देता है। यदि प्रस्तार के अष्टम घर में शकल फरह हो यह शकल तुला राशि की है व स्त्री संज्ञक से संबंधित रखती है साथ ही मुनकबिल शकल है। इस स्थिति में प्रश्नकर्ता को संतान सुख विशेष ही परेशानी से साथ ही वृद्ध अवस्ािा में होगी।
यदि प्रस्तार में अधिकांशतः शकलें इज्जतमा और जमात हो तो पुरूष के वीर्य में संतानोत्पती के शुक्राणु की कमी होने के कारण संतान सुख प्राप्ति का योग नहीं होता है। यदि उसी प्रस्तार के दशम घर में महान अशुभ शकलें कब्जुल खारिज, अतवे खारिज हो व मिकारना की दृष्टपात हो तो प्रश्नकर्ता को इस वास्ते चिकित्सक द्वारा दी जाने वाली दवाओं से लाभ और वांछित शांति का योग भी नहीं होना पाया जाता है। यदि प्रश्नकर्ता के प्रस्तार के छठे घर में इज्जतमा व जमात शकल हो, जो कि बुध ग्रह की साबित शकलें हैं।
जो उक्त जातक को किसी प्रेत आत्मा (मसान) की कुदृष्टिता (नजर) का स्पष्ट रूप से संकेत देती है। जिससे गर्भाधान में परेशानी व गर्भपात का बरावर भय साथ ही गर्भपात से होने वाली बीमारियों की आशंका बराबर बनी रहती है। जिससे शिशु (संतान) को तो हानि होती है। यदि प्रस्तार के अष्टम घर में उवला शकल हो जो शनि ग्रह की महान शकल हैं माता को भी जीवनकाल की बाबत मृत्यु योग भी बनाती है।
प्रश्नकर्ता को इन समस्त स्थिति द्वारा मार्ग दर्शन होने के बावजूद यह जानना आवश्यक है कि वर्तमान में किस ग्रह की प्रतिकूलता (अशुभता) बराबर चल रही है। जिससे उक्त संतान सुख की बाबत लभ शांति द्वारा समाधान हो सके। इस वास्ते जातक रमल सिद्धयं. धारण करें अथवा उस ग्रह के वास्ते नग या ग्रह शांति विधान द्वारा कराने से लाभ व शांति प्राप्ति हो सके।