मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण तंत्र है ‘‘गुर्दे’’ जिसका मुख्य कार्य रक्त को शोधित करना है। शरीर की कोशिकाओं को अपना कार्य संपन्न करने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। जब कोशिकाओं द्वारा प्रोटीन का विभाजन किया जाता है, तो अवशेष के रूप में नाइट्रोजन रह जाता है। गुर्दे इस नाइट्रोजन को छान कर बाहर निकाल रक्त को शोधित करते हैं। गुर्दे प्रति मिनट लगभग एक लीटर रक्त का शोधन करते हैं और तत्पश्चात शोधित रक्त वृक्कीय धमनी द्वारा पुनः शरीर में आवंटित करते हैं तथा अवशेष स्वरूप मूत्र रह जाता है। गुर्दे रोगी होने पर रक्त का शोधन नहीं कर पाते, जिससे विषाक्त पदार्थ रक्त द्वारा सारे शरीर में फैल जाते हैं और मानव की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
फिर मानव रोगी हो जाता है। गुर्दा रोग के लक्षण गुर्दा रोग का एक मुख्य कारण मधुमेह है। मधुमेह के रोगी को नियमित रूप से इन्सुलिन की आवश्यकता होती है। जब रोगी को स्वस्थ हो जाने का अहसास होने लगता है, तो वह इन्सुलिन की मात्रा कम कर देता है या उसका उपयोग बिल्कुल समाप्त कर देता है। जब रोगी में शर्करा का स्तर कम होने लगता है, तो उसे लगता है कि वह ठीक हो रहा है। दरअसल यृह गुर्दे के रोग की शुरूआत है। आम लोगों की अपेक्षा रोगी के पेशाब में जलन, मवाद आना, या पेशाब बार-बार आना ज्यादा होते हैं। रोगी के गुर्दों में खून के प्रवाह में कमी होना भी मधुमेह के प्रभावों में एक है। गुर्दे की यह खास बीमारी केवल मधुमेह के रोगी को ही प्रभावित करती है। लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि यह बीमारी प्रत्येक मधुमेह रोगी को हो। इस रोग के मुख्य लक्षणों में पैरों में सूजन, पेशाब में प्रोटीन या अल्बुमिन का जाना, इन्सुलिन की आवश्यकता कम हो जाना आदि है।
गुर्दा काम न करने के अन्य लक्षण हैं भूख न लगना, उल्टी आना, पीलापन, पेशाब का कम होना। गुर्दे जब पूरी तरह काम नहीं करते, तो यूरिया तथा नाइट्रोजन जैसे नशीले पदार्थ रक्त में इकट्ठे होने लगते हैं। खून में इनकी बढ़ती हुई मात्रा ही रोग की अंतिम अवस्था का संकेत है। उपचार: प्रारंभिक अवस्था में रोग पर नियंत्रण पाने के लिए दवाओं का सेवन किया जाता है। लेकिन रोग के अंतिम चरण में चिकित्सक के पास केवल दो ही विकल्प रहते हैं: गुर्दा प्रत्यारोपण: गुर्दे का बदलवाया जाना। इसमें किसी रिश्तेदार संबंधी का गुर्दा दान के रूप में लेकर रोगी में लगा दिया जाता है। यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
डायलिसिस: इस प्रक्रिया में मशीन से कृत्रिम गुर्दे द्वारा रक्त का शोधन किया जाता है।
सप्ताह में दो-तीन बार अस्पताल जाकर यह प्रक्रिया करवानी पड़ती है। सावधानियां -रोग पर नियंत्रण पाने के लिए जल्द ही खून की जांच करवाई जाए।
- मधुमेह है, तो इस पर नियंत्रण करके गुर्दे पर होने वाले बुरे प्रभावों को रोका जा सकता है।
- उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखें। गुर्दे के रोगों में गुर्दे का दर्द, गुर्दे की पथरी आदि है। इस पर नियंत्रण पाने के लिए आयुर्वेद में कई औषधियां हंै जिनके कुछ घरेलू नुस्खे इस प्रकार हैं।
-मौसमी फलों का ताजा रस प्रतिदिन लेने से लाभ होता है।
- तरबूज के बीजों की गिरी को पानी में घोलकर पीने से भी लाभ होता है।
- गोखरू के बीजों को पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर सेवन करें। -कलौंजी को पानी में पीसकर, शहद मिलाकर लेने से लाभ होता है।
- सूखी तुलसी की पत्तियां, अजवाइन, सेंधा नमक तीनों को पीसकर चूर्ण बना कर, सुबह शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से तुरंत लाभ मिलता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिष की दृष्टि से कालपुरूष की कुंडली में सप्तम भाव गुर्दे का स्थान है। सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र होता है। इसलिए शुक्र, सप्तमेश, सप्तम भाव का दुष्प्रभावों में रहने के कारण गुर्दे का रोग होता है। इसके साथ अगर लग्नेश भी दुष्प्रभावों में हो, तो गुर्दे के रोग के कारण जातक की मृत्यु भी हो जाती है। विभिन्न लग्नों में गुर्दा रोग के कारण मेष लग्न: लग्नेश मंगल षष्ठ या अष्टम् भाव में शुक्र के साथ हो, बुध सप्तम भाव में अस्त न हो पर राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो गुर्दा रोग हो जाता है।
वृष लग्न: सप्तमेश मंगल अष्टम भाव या द्वादश भाव में गुरु लग्न या सप्तम भाव में, राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो गुर्दा रोग दे सकता है।
मिथुन लग्न: लग्नेश बुध अस्त होकर षष्ठ अष्टम् या द्वादश भाव में हो, मंगल चतुर्थ भाव, सप्तम भाव में राहु-केतु से युक्त हो, शुक्र लग्न-सप्तम या अष्टम भाव में हो तो गुर्दा रोग हो सकता है।
कर्क लग्न: शनि लग्न में, चंद्र सप्तम भाव में राहु केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु षष्ठ भाव एवं शुक्र अष्टम भाव में हो तो गुर्दा रोग की संभावना रहती है।
सिंह लग्न: शनि लग्न, पंचम या दशम भाव में, शुक्र से युक्त, दृष्ट हो, लग्नेश सूर्य राहु-केतु से युक्त हो तो जातक को गुर्दा रोग का सामना करना पड़ सकता है।
कन्या लग्न: मंगल सप्तम भाव में चंद्र से युक्त हो, बुध, शुक्र सूर्य से अस्त हो और राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में हो तो जातक को गुर्दा रोग हो सकता है।
तुला लग्न: लग्नेश शुक्र शनि से युक्त होकर तृतीय भाव/षष्ठ भाव या अष्टम् भाव में हो, गुरु सप्तम भाव में मंगल से युक्त और राहु केतु से दृष्ट हो तो जातक को गुर्दा रोग से कष्ट होता है।
वृश्चिक लग्न: बुध-लग्न या सप्तम् भाव में शुक्र से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो। मंगल शनि से युक्त या दृष्ट होकर षष्ठ या अष्टम् भाव में हो तो जातक को गुर्दे जैसे रोग से जूझना पड़ता है।
धनु लग्न: सप्तमेश अस्त होकर षष्ठ या अष्टम भाव में, शुक्र सप्तम भाव में राहु-केतु से युक्त हो, गुरु अस्त हो तो जातक को गुर्दा रोग हो सकता है।
मकर लग्न: गुरु सप्तम भाव में राहु-केतु से युक्त हो, सप्तमेश चंद्र षष्ठ भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो और लग्नेश नीच के हों तो जातक को गुर्दा रोग से कष्ट हो सकता है।
कुंभ लग्न: चंद्र सप्तम भाव में राहु-केतु से युक्त हो, गुरु लग्न, तृतीय या एकादश भाव में मंगल से युक्त हो, शुक्र अस्त हो तो जातक को गुर्दे का रोग होता है।
मीन लग्न: शनि षष्ठ भाव में, शुक्र अष्टम, भाव में, राहु सप्तम भाव में, मंगल से युक्त या दृष्ट, गुरु अस्त हो तो जातक को गुर्दे के रोग का कष्ट होता है।
उपरोक्त सभी योग संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने पर होता है, इसके उपरांत रोगी स्वस्थ हो जाता है। यदि दीर्घ-आयु योग प्रबल हो तो ठीक है। अन्यथा रोग जान लेवा हो सकता है।