मानव का समग्र विकास शिक्षा पर ही होता है और आजकल अन्तिम लक्ष्य भी यही है। द्वितीय या पंचम भाव में बुध, बृहस्पति हो अथवा द्वितीयेश, पंचमेश बुध, बृहस्पति से संबंध करे तो जातक कुशल वक्ता और प्रबुद्ध तर्कशक्ति वाला होता है। वकालत के लिए यह जरुरी है। कानूनी विद्या में सफलता पाने या वकील बनने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को देखना चाहिए। वकालत की शिक्षा के लिए ग्रह 1 बृहस्पति ज्ञान का कारक - जज 2 शनि कानून, न्याय शास्त्र, काले कपड़े वाला वकील 3 बुध तर्क वितर्क की शक्ति, वाणी का कारक वकालत की षिक्षा के लिए भाव द्वितीय भाव वाणी का भाव पंचम भाव षिक्षा का भाव षष्ट भाव शत्रुता, कर्ज, षडयंत्र इत्यादि ये सब होगें तो ही कानून की जरुरत पडे़गी। सहायक ग्रह द्वितीयेष: द्वितीय भाव वाणी का और द्वितीयेष वाणी का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह और वाणी का कारक बुध पंचमेष पंचम भाव बुद्धि का, विद्या का और पंचमेष विद्या का प्रतिनिधित्व करता है। षष्टेष: रोग, शत्रु व कर्ज, षडयंत्रकारी योजनाएं इन सब कामों से फंसने पर कानून विजय प्राप्ति के लिए षष्टेष की आवष्यकता होती है। षष्ट भाव रोग, शत्रु व कर्ज आदि तो षष्टेष इनका प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह है।
नवमेष: अर्थात् भाग्येष जन्म कुंडली में भाग्येष की दषा-अंतर्दषा इन योगों की मिल जाए तो सफलता शीघ्र और बाधा रहित मिलती है। इस प्रकार इन भावों, भावेष व कारकों में तथा ग्रहों में संबंध हो तो जातक सफल वकील हो सकता है और भाग्य बनता है। वकील होने के विषेष योग
- पंचमेष लग्न में बुध, गुरु तथा शनि से युक्त या दृष्ट हो।
- द्वितीयेष लग्न में बुध शनि से युक्त या दृष्ट हो।
- जन्म लग्न से केंद्र में बुध, गुरु एवं शनि हो या गुरु शनि दोनों में संबंध हो। - द्वितीय या पंचम भाव में बुध-गुरु या गुरु-शनि हो।
- द्वितीय भाव तथा द्वितीयेष बुध-गुरु तथा शनि से युक्त या दृष्ट हो।
- द्वितीयेष पंचमेष केंद्र में हो तथा बुध-गुरु तथा शनि से दृष्ट या युक्त हो।
- द्वितीयेष, नवमेष या पंचमेष, नवमेष केंद्र में हो तथा बुध शनि अथवा गुरु शनि तथा बुध गुरु से युक्त या दृष्ट हो।
- नवमस्थ गुरु पर चंद्र, गुरु की दृष्टि हो।
- पंचमेष बलवान हो तथा बुध गुरु केंद्र में हो तो जातक तीक्ष्ण बुद्धि का होता है।
- चर नक्षत्रों में जन्मा जातक शीघ्र विद्या प्राप्त कर लेता है और अपने क्षेत्र की तरफ आगे बढ़ता है।
- गुरु और शनि नवम, पंचम या सम सप्तम हो या इनकी युति हो। विषेष स्थान युति के लिए 2, 5, 9, 10। - शनि-गुरु मेष, सिंह, तुला, धनु, कुंभ राषि में हो।
- षष्टेष बली होकर दषम भाव में हो और दषमेष से दृष्ट हो और शनि से संबंध करे। किन दषाओं में जातक वकील बनता है निम्नलिखित दषाएं/ अंतर्दषाएं हों तो जातक वकालत में एडमिषन लेकर सफल वकील बनता है। जिस जातक की कुण्डली में षिक्षा प्राप्ति अर्थात विद्या प्राप्ति योग होता है वही जातक गुणागुण से अलंकृत मेधावी और ज्ञान विज्ञान सम्मान बनता है। कानून की षिक्षा ग्रहण करने के लिए या एल. एल. बी. में प्रवेष परीक्षा में सफलता के लिए 3, 6, 12 के स्वामियों की दषा और इनके साथ गुरु/षुक्र/ शनि द्वितीयेष-पंचमेष-दषमेष नवमेष की दषाएं होती है। कुंडली संख्या 1 लग्नेष गुरु स्वयं ही है और शनि वाणी के कारक व द्वितीयेष है। दोनों ग्रह जन्म लग्न से केंद्र में हैं।
- सफल वकील होने के लिए षष्ठेष का द्वितीय से संबंध है दोनों परममित्र है और लग्नेष के साथ है।
- लग्नेष एकादषेष अर्थात् लाभेष व धनेष शनि के साथ है अर्थात अपने वकालत के व्यवसाय से धनोपार्जन देगा।
- चंद्र मंगल योग द्वादष भाव में। चंद्र विपरीत राजयोग बना रहा है तथा प्रभावषाली स्थिति केतु/राहु के बीच सारे ग्रहों की जातक हारे का सहारा बन सकता है। आखिरी कदम पर केस पलटने की ताकत देता है यह कालसर्पयोग।
- नवमेष दषमेष सूर्य बुध का लाभ भाव में संबंध है।
- बुध शुक्र का दषम एकादष भाव में राषि-परिवर्तन गुरु व शुक्राचार्य दोनों नीति न्याय के कारक है और शनि (वकील) कर्म भाव में है। इन सब बातों से सौम्यता से वाणी का प्रयोग करके धन कमाने वाला योग।
- इस प्रकार इस कुंडली में सफल वकील बनने के योग हैं।
- जातक की कुंडली में वर्तमान समय में शुक्र की महादषा में राहु की अंतर्दषा चल रही है।
- षष्टेष शुक्र की महादषा में राहु की अंतर्दषा और गुरु की प्रत्यंतर दषा में जातक ने एल. एल. बी. में दाखिला लिया है। (षुक्र में राहु/गुरु 19.04.2008 से 13.09.2008) षिक्षा की सफलता उसकी विद्वता से झलकती है इस समय में लिया गया दाखिला वकालत की लाइन में मील का पत्थर साबित होगा। कंुडली संख्या 2 इस कुंडली में नवमस्थ गुरु उच्च राषि का है। द्वितीयेष व पंचमेष होकर भाग्येष के साथ गजकेसरी योग बना रहा है। वाणी व विद्या का स्वामी स्वयं गुरु ही है और वाणी का कारक बुध तथा लग्नेष मंगल से यह योग दृष्ट होकर सफल अधिवक्ता बनने का योग दर्षाता है। जातिका ने एम. ए., बी. एड करने के पष्चात अभी अचानक सप्तमेष-द्वादषेष की महादषा में और इसी की अंतदर्षा शुक्र/षुक्र/राहु 17/12/2007 से 17/06/2008 में वकालत के लिए एल. एल. बी. में दाखिला लेकर षिक्षा आरंभ कर दी।
- द्वितीय भाव में बैठे नीति शास्त्र के ज्ञाता शुक्राचार्य की दषा में यह हुआ। द्वितीयेष या द्वितीय भाव में बैठे ग्रह की दषा में धनोपार्जन की षिक्षा मिलती है।
- इसी सप्तमेष की दषा-अंतदर्षा में जातिका की सगाई एक वकील से हो गई क्योंकि शुक्र सप्तमेष है और विवाह का कारक भी है। वकील बनना सुनिष्चित है। इसी प्रकार कुंडली संख्या 3 जो कि सीनियर व सफल अपराधिक अधिवक्ता की है। जन्म तारीख 21.10.1966, 06.32, सोनीपत। इस जातक की जन्म कुंडली में - तृतीयेष-षष्टेष गुरु बलवान होकर दषम भाव में दषमेष चंद्र से दृष्ट होकर बैठा है और षष्ट भाव में चतुर्थेष - पंचमेष शनि को देख रहा है शनि योगकारक है।
- वाणी भाव का स्वामी मंगल स्वयं वाणी स्थान को देख रहा है तथा वाणी का कारक लग्न में है और बुधादित्य योग बना रहा है।
- द्वितीयेष मंगल चतुर्थेष पंचमेष योगकारक शनि को भी देख रहा है।
- लग्नेष शुक्र व योगकारक शनि के बीच संबंध है। आज जातक श्रेष्ठ अधिवक्ताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं और सफल होने के साथ-साथ विनम्र भी है। इन्होंने सन् 1990 में राहु में गुरु की दषा (10.04.1990 से 1.9.1992 तक) में यानि षष्टेष की अंतर्दषा में वकालत की षिक्षा आरंभ की और फिर राहु में शनि की दषा में अपनी प्रैक्टिस प्रारंभ की। विषेष- सफल अधिवक्ता होने के साथ एक कुषल राजनीतिक बनने का भी योग है यही गुरु जो कि वकालत का भी कारक है महत्वपूर्ण बना रहा है। पंच महापुरुष योग में से हंस योग, गजकेसरी योग।
- लग्नेष शुक्र वर्गोत्तमी है।
- लग्नेष शुक्र योगकारक शनि से संबंध करके राजयोग बना रहा है। अतः हम देखते हैं कि ऐसे जातक सफल अधिकवक्ता होने के साथ-साथ सफल व प्रसिद्ध राजपुरुष अर्थात सफल राजनेता बन सकते हैं। जनता का कारक चंद्र चैथे भाव में जनता में लोकप्रिय बनाता है और सफलता हासिल करवाता है। यह योग कब घटित होगा जब योगकारक शनि व षष्टेष बृहस्पति की दषा-अंतदर्षा (जो कि वर्तमान में चल रही है 2010 तक) में उचित गोचर का सकारात्मक पक्ष मिल जाए तो क्योंकि गुरु यहां गजकेसरी व पंचमहापुरुष नामक हंस योग बना रहा है। इस समय शनि की अष्टम ढैय्या भी चल रही है जो कि 10/9/2009 तक चलेगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी जातक की कुंडली में पहले उसके योग हो जिस क्षेत्र में वह जाने की योग्यता रखता है और फिर दषा अंतदर्षा व गोचर होना चाहिए तो जातक का जीवन सफल हो जाता है।