हथेली पर चिह्नः कहीं शुभ कहीं अशुभ डा. अशोक शर्मा हाथ में स्थित चिह्नों का अपने आप में बड़ा महत्व होता है। ये चिह्न दो प्रकार के होते हैं - स्वतंत्र और परतंत्र। स्वतंत्र चिह्नों का अलग फल तथा महत्व होता है जबकि परतंत्र चिह्न हाथ की रेखाओं से मिलकर बनते हैं तथा उन्हीं के अनुरूप उनका फल होता है। स्वतंत्र चिह्न, जिनमें द्वीप, क्राॅस, नक्षत्र, त्रिभुज, चतुर्भुज, जाल, वर्ग या कंदुक, त्रिशूल, ध्वज, सर्प जिह्वा या अंग्रेजी ‘वी’ आकार की रेखा, पयोनिधि रेखा या अंग्रेजी के डब्लू आकार की आदि प्रमुख हैं। हृदय, मस्तिष्क और जीवन रेखाएं हर हाथ में होती ही हैं। किंतु हजारों में कोई ऐसा भी हाथ हो सकता है जिसमें उक्त रेखाओं में से कोई रेखा नहीं होती है। प्रसंग चिह्नों का है, इसलिए यहां उन्हीं का वर्णन समीचीन होगा। द्वीप के चिह्न अधिकांश हाथों में पाए जाते हैं। किसी रेखा में जंजीर की कड़ी की तरह दिखाई देने वाले द्वीप उस रेखा के शुभ फल को कम करते हैं। जंजीरनुमा रेखाएं अशुभ होती हैं। किसी की हथेली में भाग्य रेखा एवं शुक्र क्षेत्र पर स्थित द्वीप शुभ फलदायी होता है। जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसा द्वीप होता है, वह भाग्यशाली होता है और उसका जीवन सुखमय होता है। क्राॅस क्राॅस का चिह्न जिस स्थान पर होता है, उस स्थान से संबंधित सुख से जातक को वंचित करता है। किंतु सूर्य पर्वत पर क्राॅस का चिह्न शुभ माना जाता है। इस स्थान पर स्थित क्राॅस के फलस्वरूप जातक को प्रशासनकि योग्यता की प्राप्ति होती है। इसके रोग आदि का कारक होता है। इसके फलस्वरूप किडनी या लीवर की बीमारी का शिकार भी हो सकता है। यदि शुक्र पर्वत तथा मंगल क्षेत्रों पर यह चिह्न हो तो पथरी होने की प्रबल संभावना रहती है। ये चिह्न तर्जनी पर हो, तो जातक की साहित्य में रुचि हो सकती है। नक्षत्र अथवा तारा अंगूठे या शुक्र पर्वत पर तारा का चिह्न श्रेष्ठ मानवीय गुणों का कारक होता है। किंतु यदि इसकी छोटी बड़ी रेखाएं हों या शुक्र पर्वत उन्नत न हो तो प्रेम प्रसंग में असफलता मिलती है और विवाहित होने की स्थिति में दाम्पतय के दुखमय होने की संभावना रहती है। शनि क्षेत्र में तारा हो तो जातक लकवाग्रस्त हो सकता है। गुरु क्षेत्र में तारा हो तो जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति होती है। इसके अतिरिक्त जातक का बड़े अधिकारियों और सत्ता के लोगों से प्रत्यक्ष संपर्क होता है तथा समाज में यश और सम्मान की प्राप्ति होती है। तर्जनी पर यह चिह्न हो तो जातक का भाग्योदय हो सकता है किंतु उसे ठोकर लगने की संभावना भी रहती है। त्रिभुज किसी व्यक्ति के जीवन में त्रिभुज की भूमिका भी अहम होती है। यह यदि शुभ हो तो जातक को वांछित फल की हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा हर हाथ में होती ही हैं। किंतु हजारों में कोई ऐसा भी हाथ हो सकता है जिनमें से उक्त रेखाओं में से कोई रेखा नहीं होती है। अतिरिक्त यदि सिर्फ एक गहरी रेखा हो, तो आइ.पी.एस., आइ.ए.एस. या सैनिक सेवा में प्रशासनिक पद की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है। क्राॅस का चिह्न गहरा हो एवं सूर्य पर्वत अच्छी उभार वाला हो, तो विशेष सफलता, यश तथा धन की प्राप्ति होती है। सूर्य पर्वत पर यदि छोटी बड़ी रेखाओं से क्राॅस चिह्न बना हो तो इसकी शुभता कम होती है। शुक्र पर्वत पर क्राॅस का चिह्न गुप्त रोग, पेट के अंदर के अंगों में प्राति होती है और उसका जीवन सुखमय होता है। मंगल क्षेत्र में स्थित त्रिभुज अत्यंत शुभ होता है। जातक साहसिक कार्य करता है। उसे सैन्य सेवा में उच्च पद की तथा खेलकूद में यश, विजय, मान सम्मान, धन आदि की प्राप्ति होती है। तर्जनी पर त्रिभुज हो तो जातक बुद्धिजीवी होता है। मध्यमा पर त्रिभुज हो तो पारिवारिक जीवन सुखमय होता है, किंतु उसके किसी के षड्यंत्र का शिकार होने की संभावना रहती है। सूर्य पर्व या अनामिका पर त्रिभुज हो, तो जातक प्रभावशाली तथा कला प्रेमी होता है। बुध क्षेत्र का त्रिभुज व्यक्ति को सफलता देता है। शनि क्षेत्र पर त्रिभुज होने से व्यक्ति दुःसाहसी होता है। शुक्र क्षेत्र पर त्रिभुज हो तो जातककला प्रेमी और यशस्वी तथा जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता है। चंद्र पर्वत पर त्रिभुज का चिह्न तो जातक को प्रेम में सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त उसे धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति भी होती है। शून्य, वर्ग या कंदुक शून्य, वर्ग या कंदुक का चिह्न भी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी स्थान पर इसकी स्थिति शुभ होती है तो किसी दूसरे स्थान पर अशुभ। अंगूठे या शुक्र पर्वत पर वर्ग, शून्य या कंदुक हो तो जातक को हर क्षेत्र में असफलता मिलती है। वह एकाकी जीवन जीता है। अधिक धन कमाने की चेष्टा में वह अपना धन भी गंवा बैठता है। वह नशे का सेवन करता है और उसे हमेशा आलस्य घेरे रहता है। जीवन के उŸारार्द्ध में उसे अधिक संकटों का सामना करना पड़ता है। उसकी मानसिकता कुंठित होती है और वह बहस, तर्क-वितर्क रुचि रखता है। गुरु के क्षेत्र में या उंगली पर यह चिह्न हो, तो जातक महत्वाकांक्षी और परिश्रमी होता है। वह अपना लक्ष्य प्राप्त करता है और उसकी आकांक्षाएं पूरी होती हैं। शनि के क्षेत्र में यह चिह्न हो तो जातक गुप्त विद्या का ज्ञाता होता है। उसे विदेश से धन की प्राप्ति होती है, किंतु समाज में उसे अपयश सामना करना पड़ता है। सूर्य पर्वत व अनामिका पर वर्ग का चिह्न हो तो व्यक्ति धनी तथा समाज में प्रतिष्ठित होता है। उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। जिस व्यक्ति के हाथ में बुध पर्वत या कनिष्ठिका पर वर्ग होता है वह व्यापार में सफल होता है। किंतु उसके मन में चोरी और फरेब की भावना रहती है। उसकी अकाल मृत्यु की संभावना भी रहती है। मंगल के क्षेत्र पर यह चिह्न होने से दुर्घटना, रक्त संबंधी पीड़ा, आंखों में कष्ट आदि की संभावना रहती है। जातक ऋण से ग्रस्त रहता है और ऋण की अधिकता के कारण वह आत्महत्या भी कर सकता है। चंद्र क्षेत्र पर वर्ग की विद्यमानता प्रेम में असफलता, हानि, अपयश, गुप्त रोग, विदेश में मृत्यु, स्त्री के कारण मृत्यु या धन तथा यश की हानि का सूचक होता है। इस प्रकार ऊपर वर्णित विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि करतल पर स्थित विभिन्न चिह्न किसी जातक के व्यक्तित्व के विकास, उसके जीवन की सफलता आदि में अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। ये चिह्न यदि शुभ और अनुकूल हों तो व्यक्ति आसमान की ऊंचाइयों को छू लेता है। वहीं यदि ये चिह्न अशुभ और प्रतिकूल हों तो उसकी उन्नति में बाधाएं आती हैं। ऐसे में किसी कुशल और विद्वान हस्तरेखाविद के परामर्श से इन बाधाओं से बचाव हो सकता है और उसके जीवन में खुशहाली आ सकती है।